जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पूर्वोत्तर की ओर भी कदम बढ़ाए जहाँ उनको चाय के साथ तेल मिला। उनको इन संसाधनों पर डाका डालना था। उन्होंने वहां पाया कि यहाँ के लोग बहुत सीधे एवं सरल हैं और ये लोग वैष्णव सनातनी हैं।
किंतु जंगल और पहाड़ों में रहने वाले ये लोग पूरे देश के अन्य भाग से अलग हैं, तथा इन सीधे-सादे लोगों के पास बहुमूल्य सम्पदा है, अतः अंग्रेज़ों ने सबसे पहले यहाँ के लोगों को देश के अन्य भूभाग से पूरी तरह अलग करने का सोचा। इसके लिए अंग्रेज ने एक नई व्यवस्था शुरू की, जिसे कहा गया 'इनर परमिट' और 'आउटर परमिट' की व्यवस्था।
इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति इस क्षेत्र में आने से पहले परमिट बनवाएगा और एक समय सीमा से अधिक नहीं रह सकता। किंतु इसके उलट अंग्रेजों ने अपने भवन बनवाए और ईसाई अंग्रेज अफसरों को यहां रखा जो चाय की पत्ती उगाने और उसको बेचने का काम करते थे।
इसके साथ अंग्रेज़ों ने देखा कि इस क्षेत्र में ईसाई धर्म का कोई अनुयायी नहीं है, अतः अंग्रेजी सत्ता ने ईसाई मिशनरियों को इस क्षेत्र में ईसाइयत के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा। मिशनरी समूह ने क्षेत्र के लोगों को आसानी से अपने धर्म में परिवर्तित करने का काम शुरू किया।
जब बड़ी संख्या में लोग ईसाई मत में परिवर्तित हो गए तो अंग्रेज इनको 'स्वतंत्र' ईसाई राज्य बनाने का सपना दिखाने लगे। इसके साथ ही उनका आशय था कि पूर्वोत्तर से चीन, भारत तथा पूर्वी एशिया पर नजर बना कर रखा जा सकता है।
इन सब के बीच स्वाधीनता के बाद भी धर्म परिवर्तित करके ईसाई बने लोगों का अनुसूचित जनजाति दर्जा बरकरार रखा गया। साथ ही उनको संविधान प्रदत्त सुविधाएं भी मिलती गईं। प्रांत के अधिकांश कुकी जनजातियों ने कन्वर्जन कर लिया था और ईसाई बन चुके थे, लेकिन इन परिस्थितियों में भी मैतेई समाज ने अपनी ना ही अपनी परंपराओं को छोड़ा था, ना ही अपने धर्म को।
हालांकि तत्कालीन दौर में पूर्वोत्तर क्षेत्र के अलग-अलग राज्य नहीं थे। यह वो दौर था जब क्षेत्र के बहुत सारे नगा जनजाति के लोग भी धर्म परिवर्तित करके ईसाई बन गए। धीरे-धीरे ईसाई पंथ मानने वालों की संख्या वैष्णव लोगों से अधिक या बराबर हो गयी।
मूल लोग सदा अंग्रेजों से लड़ते रहे जिसके कारण अंग्रेज इस इलाके का भारत से विभाजन करने में नाकाम रहे। किंतु वो मैतेई समाज की संख्या कम करने और परिवर्तित लोगों को अधिक करने में सफल हुए।
मणिपुर के अधिकांश भू-भाग पर कुकी और नगा का कब्जा हो गया जबकि कुछ-एक स्थानों पर ही मैतेई रह गए। अंग्रेजों ने इस इलाके में अफीम की खेती को भी बढ़ावा दिया और उस पर ईसाई कुकी लोगों को कब्जा करने दिया।
स्वाधीनता के समय मणिपुर के राजा थे बोधचंद्र सिंह और उन्होंने भारत में विलय करने का फैसला किया। 1949 में उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू को कहा कि मूल वैष्णव जो कि 10% भूभाग में रह गए हैं, उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए। जवाहरलाल नेहरू ने उनको कोई आश्वासन नहीं दिया।
फिर वर्ष 1950 में संविधान अस्तित्व में आया तब प्रधनमंत्री नेहरू ने मैतेई समाज को कोई लाभ नहीं दिया। 1960 में नेहरू सरकार द्वारा लैंड रिफार्म एक्ट लाया जिसमे 90% भूभाग वाले कुकी और नगा ईसाईयों को अनुसूचित जनजातियों में डाल दिया गया।
इस एक्ट में ये भी आया जिसके तहत 90% कुकी-नगा वाले कहीं भी जा/रह सकते हैं और जमीन खरीद सकते हैं, परन्तु 10% क्षेत्र में रहने वाले मैतेई समाज को यह सब अधिकार नहीं था। यहीं से मैतेई लोगों का दिल्ली से विरोध शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नेहरू एक बार भी पूर्वोत्तर के हालत को ठीक करने नहीं गए।
उधर ब्रिटेन की MI6 (जासूसी संस्था) और पाकिस्तान की ISI मिलकर कुकी और नगा को हथियार देने लगी, जिसका उपयोग वो भारत के विरुद्ध तथा मैतेई वैष्णवों को भगाने के लिए करते थे। मैतेई समाज ने इन ईसाई अतिवादियों का बिना दिल्ली के समर्थन, जम कर मुकाबला किया।
सदा से इस क्षेत्र में कांग्रेस और कम्युनिस्ट लोगों की सरकार रही और वो कुकी तथा नगा ईसाईयों के समर्थन में रहे। चूँकि लड़ाई पूर्वोत्तर में जनजातियों के अपने अस्तित्व की थी, तो अलग-अलग फ्रंट बनाकर सबने हथियार उठा लिया।
पूरा पूर्वोत्तर आईएसआई के द्वारा एक 'रणभूमि' बना दिया गया, जिसके कारण मिज़ो जनजातियों में सशत्र विद्रोह शुरू हुआ। बिन दिल्ली के समर्थन जनजाति समाज के लोग आईएसआई समर्थित कुकी, नगा और म्यांमार से भारत में अनधिकृत रूप से आये चिन जनजातियों से लड़ाई करते रहे।
जानकारी के लिए बताते चलें कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट दलों ने मिशनरी समूहों के साथ मिलकर म्यांमार से आये इन चिन जनजातियों को मणिपुर के पहाड़ी इलाकों और जंगलों की नागरिकता देकर बसा दिया। ये चिन लोग आईएसआई के पाले कुकी तथा नगा ईसाईयों के समर्थक थे तथा वैष्णव मैतेई से लड़ते थे।
पूर्वोत्तर का हाल ख़राब था जिसका राजनीतिक समाधान नहीं निकला गया और एक दिन इंदिरा गांधी ने जनजाति इलाकों में एयर स्ट्राइक का आदेश दे दिया, जिसका आर्मी तथा वायुसेना ने विरोध किया परन्तु राजेश पायलट तथा सुरेश कलमाड़ी ने एयर स्ट्राइक किया और अपने लोगों की जान ले ली। इसके बाद विद्रोह और खूनी तथा सशत्र हो गया।
1971 में पाकिस्तान विभाजन और बांग्लादेश अस्तित्व आने के बाद आईएसआई के एक्शन को झटका लगा, परन्तु म्यांमार उसका एक खुला क्षेत्र था। उसने म्यांमार के चिन लोगों को मणिपुर में वहांघुसाया। ओपियम यानि अफीम की खेती शुरू कर दी गई।
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड दशकों तक कुकियों और चिन लोगों के अफीम की खेती तथा तस्करी का खुला खेल का मैदान बन गया। मयंमार से आईएसआई तथा एमआई-6 ने इस अफीम की तस्करी के साथ हथियारों की तस्करी का एक पूरा इकॉनमी खड़ा कर दिया, जिसके कारण पूर्वोत्तर के इन राज्यों का बड़ी जनसंख्या नशे की भी आदि हो गई। नशे के साथ हथियार उठाकर भारत के विरुद्ध युद्ध फलता फूलता रहा।
2014 के बाद की परिस्थिति
मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पालिसी के अंतर्गत पूर्वोत्तर पर ध्यान देना शुरू किया। NSCN - तथा भारत सरकार के बीच हुए नगा संधि के बाद हिंसा में कमी आई। भारत की सेना पर आक्रमण बंद हुए। भारत सरकार ने अभूतपूर्व विकास किया जिससे वहां के लोगों को दिल्ली के करीब आने का मौका मिला।
धीरे-धीरे पूर्वोत्तर से हथियार आंदोलन समाप्त हुए। भारत के प्रति यहाँ के लोगों का दुराव कम हुआ। रणनीति के अंतर्गत पूर्वोत्तर में भाजपा की सरकार आई, वहां से कांग्रेस और कम्युनिस्ट का लगभग समापन हुआ।
इसके कारण इन पार्टियों का एक प्रमुख धन का श्रोत जो कि अफीम तथा हथियारों की तस्करी था वो चला गया। इसके कारण इन लोगों में किसी भी तरह पूर्वोत्तर में हिंसा और अराजकता फैलाना जरूरी हो गया था, जिसका ये लोग बहुत समय से इंतजार कर रहे थे।
दो घटनाएँ घटीं
पहला, मणिपुर उच्च न्यायालय ने फैसला किया कि अब मैतेई जनजाति को अनुसूचित जनजाति का दर्ज मिलेगा। इसका परिणाम ये होगा कि नेहरू के बनाए फार्मूला का अंत हो जाएगा जिससे मैतेई लोग भी 10% के सिकुड़े हुए भूभाग के जगह पर पूरे मणिपुर में कहीं भी रह बस और जमीन खरीद सकेंगे। ये कुकी और नगा को मंजूर नहीं था।
दूसरा, मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने कहा कि उनकी सरकार पहचान करके म्यांमार से आए अवैद्य चिन लोगों को बाहर निकालेगी और अफीम की खेती को समाप्त करेगी। इसके कारण तस्करों का गैंग सदमे में आ गया।
इसके बाद ईसाई कुकियों और नगाओं ने अपने दिल्ली बैठे आकाओं, कम्युनिस्ट लुटियन मीडिया को जागृत किया। पहले इन लोगों ने अख़बारों और मैगजीन में लेख लिखकर गलत और भ्रामक जानकारी देकर शेष भारत के लोगों को बरगलाने का काम शुरू किया।
उसके बाद दिल्ली से सिग्नल मिलते ही कुकियों और नगाओं ने मैतेई वैष्णव लोगों पर हमला बोल दिया, जिसका जवाब मैतियों दुगुने वेग से दिया और इन लोगों को बुरी तरह कुचल दिया जो कि कुकी - नगा के साथ दिल्ली में बैठे इनके आकाओं के लिए भी आश्चर्यचकित करने वाला था। इसके बाद ये लोग अदातानुसार 'विक्टिम कार्ड' खेलने लगे।
अभी भारत की वामपंथी मीडिया, जो कम्युनिस्ट तथा कांग्रेस का एजेंडा परोसती है, वह और चीखेगी, और प्रोपेगैंडा चलाएगी। क्योंकि पूर्वोत्तर में मिशनरी, अवैध घुसपैठियों और तस्करों के बिल में मणिपुर तथा केंद्र सरकार ने खौलता तेल डाल दिया है। अब बस यह देखना है कि ये अपना प्रोपेगैंडा फैलाने के नाम पर कहाँ तक जाते हैं।
लेख
सचिन त्रिपाठी