26 जुलाई, एक ऐसा दिन जिसे कोई भारतीय नहीं भूल सकता। भारत और भारत के लोगों के लिए यह एक शौर्य का दिवस है, बलिदान का दिवस है, विजय का दिवस है।
26 जुलाई, 1999 में भारत के जांबाज सिपाहियों ने जम्मू-कश्मीर के करगिल क्षेत्र में हुए पाकिस्तान की नापाक घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब दिया था और लगभग 2 महीने तक चले इस युद्ध में विजय प्राप्त किया था।
यह युद्ध 24 वर्ष पहले 1999 में हुआ था। पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में भारत की जीत हुई थी। 26 जुलाई को पूर्ण रूप से भारत ने इस युद्ध को जीता था। देश के वीर जवानों के बलिदान और शौर्य की गाथा जन जन तक पहुंची थी। इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को "कारगिल विजय दिवस" मनाया जाने लगा।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में बनी कांग्रेस पार्टी की सरकार द्वारा कारगिल विजय दिवस मनाये जाने पर रोक लगा दी गई? जी हाँ, देश के सैनिकों के बलिदान और विजय की गाथा सुनाने वाले दिवस को सोनिया गांधी के नेतृत्व में चल रही यूपीए सरकार ने मनाना बंद कर दिया था।
सिर्फ इतना ही नहीं गांधी परिवार के करीबी कांग्रेस नेता और तत्कालीन सांसद राशिद अल्वी ने कारगिल विजय दिवस को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की थी।
कांग्रेस सरकार द्वारा 2004 से लेकर 2009 तक अपने पहले कार्यकाल में कारगिल विजय दिवस नहीं मनाया गया। भाजपा के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुए 2017 में इस बात का खुलासा किया था कि "जब तक उन्होंने लेटर लिखकर कारगिल विजय दिवस मनाने के लिए नहीं कहा तब तक सरकार ने विजय दिवस नहीं मनाया।"
राजीव चंद्रशेखर ने इस पत्र को 21 जुलाई 2009 को लिखा था और वह इस मुद्दे को राज्यसभा में उठाना चाहते थे। इसके बाद 16 जुलाई 2010 को कांग्रेस नेता एके एंटनी ने इस लेटर का जवाब देते हुए कहा था कि "इस वर्ष कारगिल युद्ध में बलिदान हुए जवानों को सम्मान देने के लिए अमर जवान ज्योति पर श्रद्धांजलि दी जाएगी।"
युद्ध किसी भी देश की सेना लड़ती है हालांकि यह बात भी मायने रखती है कि राजनीतिक नेतृत्व और उसकी इच्छा शक्ति कितनी है लेकिन बावजूद इसके देश के वीर जवानों की बदौलत ही किसी युद्ध में विजय प्राप्त होती है।
क्या थी इस युद्ध की पृष्ठभूमि ?
28 मई 1998 को भारत के साथ पूरा विश्व सकते में था, क्योंकि पाकिस्तान जैसे असफल, गैरजिम्मेदार और इस्लामिक अतिवादी राष्ट्र ने अपने देश में परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था, जो कि 28 से 30 मई तक चला, जिसमें पाकिस्तान सफल हुआ।
एक ऐसा देश जहाँ लोकतंत्र सिर्फ एक शब्द है, जहाँ आतंकियों को पनाह दी जाती हो, जो चाँद में कदम रखने ज्यादा भारत में अवैध कदम रखने में रुचि रखता हो, उस देश का परमाणु शक्ति बनना पूरी मानवता के लिए खतरा था।
इस परीक्षण के बाद पाकिस्तान को यह भ्रम हो चला कि अब वह भारत को अपनी गीदड़ भभकी से डरा सकता है साथ ही कश्मीर पर कब्जा कर भारत की अखंडता पर सेंध लगा सकता है।
अपने परमाणु परीक्षण की सफलता के जोश में होश खोकर पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ के नापाक रणनीति बनाई थी जिसके तहत वो जम्मू कश्मीर के हिस्से पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता था।
मार्च 1999 में पाकिस्तानी सेना के जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारतीय सीमा के 11 किमी अंदर जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान में पाकिस्तान के 80 ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम के साथ एक रात बिताई थी, इसकी खबर भारतीय खुफिया तंत्र को बाद में पता चली और यह एक बड़ी चूक साबित हुई।
भारत में घुसपैठ की पूरी रणनीति को आखिरी मुकाम देने का समय था। इसके बाद से पाकिस्तानी सेना की कुछ सैन्य टुकड़ी जिसमें पाक सेना समर्थित आतंकी भी शामिल थे, उन्होंने भारत में घुसपैठ शुरू की।
3 मई, 1999 को एक गड़रिए ने पहाड़ियों में पाकिस्तानी सेना की एक टुकड़ी को हथियारों के साथ चलते देखा था, जिसके बाद इसकी सूचना सेना के जवानों को ई गई। सूचना मिलने के बाद सेना ने अपनी पेट्रोलिंग पार्टी भेजी जिसपर पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला किया। भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया गया और बर्बता पूर्वक उनको तब तक शारीरिक यातना दी गई जब तक उनकी सांसे थम ना गई।
पेट्रोलिंग पार्टी के बलिदानी जवानों के शव मिलने के बाद पूर्ण रूप से सेना को लामबंद किया गया. 8 मई को ऑपेरशन विजय की घोषणा कर पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने की शुरुआत की गई। थल सेना की मदद के लिए वायुसेना ने 11 मई से ही कमान संभाल लिया।
क्या था पाकिस्तान का उद्देश्य ?
इस घुसपैठ में पाकिस्तान ने लेह और कश्मीर के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग 1A में कब्जा कर दोनों के बीच संपर्क तोड़ने की योजना बनाई थी। इस क्षेत्र में कब्जा करने से कश्मीर से संपर्क टूटने की पूरी गुंजाइश थी, जिसके बाद पाकिस्तान अतिरिक्त सैनिकों को बुलाकर कश्मीर में भी हमला कर सकता था।
ऑपेरशन विजय
ऑपेरशन विजय शुरू होने के बाद से ही भारतीय सेना पुरे जोश के साथ पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी। भारत के 2 लाख सैनिक इस युद्ध में परोक्ष रूप से शामिल हुए थे वहीं 30,000 नियमित सैनिक ऑपेरशन विजय से जुड़े थे। ऑपेरशन विजय के अंतर्गत द्रास, टाइगर हिल और बटालिक क्षेत्र के लिए ऑपेरशन चलाए गए थे।
कड़ी लड़ाई लड़ने के बाद भारतीय सेना ने 13 मई को द्रास को वापस अपने कब्जे में ले लिया। वहीं सबसे मुश्किल माने जाने वाले क्षेत्र टाइगर हिल पर भारतीय सेना ने 5 जुलाई को तिरंगा फहराया था। बटालिक क्षेत्र से पाकिस्तानी सैनिकों को 7 जुलाई तक पूरी तरह खदेड़ दिया गया।
ऑपेरशन सफेद सागर
थल सेना की मदद के लिए वायुसेना ने 26 मई को "ऑपेरशन सफेद सागर" की शुरुआत की। इसमें मिग-21, मिग-27, जगुआर और मिराज-2000 का इस्तेमाल किया गया। बड़े मुश्किलों और घाटी क्षेत्रों में भी वायुसेना के जांबाजों ने 16000-20000 तक कि ऊँचाई में उड़ाने भरी थी और पाकिस्तानी सेना की हालत पस्त कर दिया था।
हमले और रक्षा के लिए लड़ाकू विमानों ने 580 और लड़ाकू हेलीकॉप्टर ने लगभग 2500 उड़ाने भरी थी। भारत का लड़ाकू विमान एमआई-17 क्षतिग्रस्त भी हुआ था जिसमें 4 जवान शामिल थे। भारतीय वायुसेना के पराक्रम को देखते हुए पाकिस्तान ने अपने वायुसेना प्रमुख को युद्ध में शामिल होने को कहा था जिसे पाक वायुसेना प्रमुख ने तैयारी और पूरी जानकारी नहीं होने की बात कहकर ठुकरा दिया था।
ऑपेरशन तलवार
पाकिस्तान को हर मोर्चे पर पटखनी देने के उद्देश्य से भारतीय नौसेना द्वारा चलाए गए ऑपेरशन को "तलवार" नाम दिया गया था। भारतीय सैन्य जहाजों को अरब सागर में खड़े कर पाकिस्तान के समुद्री व्यापार के रास्ते को ठप कर दिया गया था। युद्ध के समय पाकिस्तान नौसेना के पास मात्र 6 दिन की युद्ध सामग्री शेष थी।
करीब 84 दिन तक चले इस युद्ध में पाकिस्तान के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 367 सैनिक मारे गए थे जबकि असल में लगभग 4000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक और मुहाजिदीन के लड़ाके मारे गए थे, वहीं भारतीय सेना के 527 जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।
26 जुलाई, 1999 को पाकिस्तान के समर्पण के साथ युद्ध विराम की घोषणा हुई, जिसमें भारत विजयी हुआ। देश की अखंडता के सम्मान में भारतीय सेना ने जो मिसाल पेश की है, आज उससे पूरा देश गौरवान्वित महसूस करता है। नमन है उन बलिदानियों को जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, मातृभूमि के लिए ही अपना सर्वोच्च बलिदान किया।
ऐसी वीर गाथा का कांग्रेस पार्टी ने किया अपमान
एक ऐसा युद्ध जो इस्लामिक आतंक पोषित करने वाले मुल्क द्वारा हम पर थोपा गया, जिसे भारत के शूरवीरों ने अपने अदम्य साहस से जीता, उसका सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी ने यह कहकर अपमान किया था कि यह युद्ध विजय उत्सव के "योग्य" नहीं है। यह कहकर वर्ष 2004 के बाद कांग्रेस सरकार द्वारा कारगिल विजय दिवस नहीं मनाया गया।
इस दौरान कम्युनिस्ट पार्टी भी सरकार का हिस्सा रही। कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों की गठबंधन सरकार ने मिलकर यह निर्णय लिया था कि भारत में कारगिल युद्ध की जीत की तिथि पर कोई "विजय दिवस" नहीं मनाया जाएगा।