मणिपुर में जिस प्रकार की हिंसा देखी जा रही है, उसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है। राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह है, लेकिन जिस प्रकार से कम्युनिस्ट समूहों, ईसाई मिशनरियों और एजेंडाधारी समूहों ने मिलकर मणिपुर में माहौल खराब किया है, वह पूरे देश के लिए एक बड़ा संकेत है।
बड़ा संकेत यह है कि जिस दिन इन कम्युनिस्टों, मिशनरियों और एजेंडा चलाने वाले समूहों की सरकार केंद्र में आ गई, उस दिन ऐसी स्थिति पूरे देश में देखने को मिल सकती है। जो हालत आज मणिपुर के मूलवनिवासी 'मैतेई' हिंदुओं की है, वही स्थिति भारत के हिंदुओं की हो सकती है।
दरअसल, इस मामले को लेकर कई वीडियो, लेख और रिपोर्ट बन चुकी है कि कैसे कुकी-नागा ईसाइयों ने मणिपुर में मैतेई हिंदुओं के साथ हिंसा की है, कैसे उनके घरों को जलाया गया है, और कैसे मैतेई समूह की महिलाओं के साथ अत्याचार हुए हैं।
लेकिन इन सब के बीच यह जानना भी आवश्यक है कि आखिर मणिपुर के मैतेई राजाओं ने जिन कुकी और नागा को अपने राज्य में शरण दी, उन्हीं लोगों ने मैतेई समाज को जड़ से खत्म करने का काम क्यों शुरू किया हुआ है।
दरअसल सबसे पहले बात करते हैं वर्तमान में चल रही हिंसा की। मणिपुर में बीते 3 मई को पहली हिंसा देखी गई। अब तक इस हिंसा में 160 से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं, वहीं सैकड़ों लोग घायल हैं।
विपक्षी राजनीतिक दलों के द्वारा की गई ओछी राजनीति, सामाजिक वैमनस्यता को बढ़ाने के लिए की गई गतिविधियां एवं भ्रम के मायाजाल ने इस हिंसा में आग में घी डालने का काम किया।
कभी परस्पर दुश्मन रहे कुकी और नागा समूह भी अब ईसाइयत के नाम पर एक हो चुके हैं, और इन्होंने मिलकर मणिपुर के मूलनिवासी मैतेई हिंदुओं को निशाना बनाया है।
हालांकि तमाम न्यूज़ रिपोर्ट्स और विश्लेषणों में कहा जा रहा है कि यह 'जातीय हिंसा' है, जिसमें कुकी और नागा 'जनजातीय अस्मिता' की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन इस पूरे हिंसा की वास्तविकता यही है कि ईसाई समूह ने मिलकर 'हिंदुओं' को निशाना बनाया है, जिसमें क्षेत्र के ईसाई उग्रवादी और आतंकी संगठन भी शामिल हैं।
आपने यह जरूर पढ़ा होगा कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस बात को लेकर चर्चा होती है कि संबंधित प्रांत के मूलनिवासी जनजातियों को विशेष अधिकार, आरक्षण एवं प्राथमिकता दी जाती है।
उदाहरण के लिए देखें तो छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण एवं विशेष अधिकार हैं, वहीं महाराष्ट्र में मराठा, हरियाणा में जाट, राजस्थान में राजपूत समेत देश के विभिन्न हिस्सों में अनेक समाज इस तरह के अधिकारों की बात करते हैं।
वहीं जनजातीय क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव के कारण समाज के भीतर हुए अवैध कन्वर्जन के कारण इनके बीच भी ईसाइयों का एक अलग गुट बन चुका है, बस यहीं है मणिपुर में हो रही हिंसा की पूरी कहानी।
दरअसल मणिपुर हमेशा से वैष्णव हिंदुओं की भूमि रहा है, जहां मूल रूप से मैतेई समाज निवास करता आया है।
यदि ऐतिहासिक स्त्रोतों का अध्ययन करें तो यह दिखाई देगा है कि मणिपुर में तथाकथित 'कुकी' समूह को मैतेई राजाओं ने ही बसाया था।
कुकी समूह को लेकर जो ऐतिहासिक तथ्य हैं, उसके अनुसार कुकी कोई एक जनजाति नहीं है। कुकी विभिन्न जनजातियों का समूह है, जिसे एक नाम के भीतर डाल दिया गया, जो एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है।
कुकी समूह में उत्तरपूर्वी राज्यों की 20 से अधिक जनजातियां आती हैं, जिन्हें एक खास एजेंडा के तहत एक नाम दिया गया है।
ऐतिहासिक स्त्रोतों एवं विशेषज्ञों के अनुसार कुकी समूह वास्तव में म्यांमार (बर्मा) और बांग्लादेश की मूलवनिवासी हैं।
कुकी शब्द की भी बात करें तो इस शब्द को लेकर दो तथ्य सामने आते हैं, जिसमें पहला है कि इसे बंगाल क्षेत्र के लोगों के द्वारा लुशाई पहाड़ी में रहने वाले लोगों के लिए बोला जाता था।
वहीं ब्रिटिश ईसाइयों की ओर से देखें तो वर्ष 1777 में चटगांव के प्रमुख अंग्रेज अधिकारी ने इसका उपयोग किया था।
कुकी समूह का मणिपुर में आने को लेकर जो प्रमाणिक जानकारी है, उसके अनुसार 17वीं शताब्दी में लुशाई समूह के द्वारा भारत के मिज़ोरम क्षेत्र में प्रवेश किया गया।
इसके बाद जो वर्तमान कुकी समूह हैं, उनमें से अधिकांश ने 18वीं एवं 19वीं शताब्दी के मध्य मिज़ो और चिन पहाड़ियों से मणिपुर के रुख किया।
मणिपुर के राजा ने उन्हें शरण दी एवं उन्हें जमीने दीं। एक तरफ जहां ब्रिटिश ईसाई उत्तरपूर्वी भारत को पूरी तरह जीत नहीं पाए थे, वहीं उन्हें क्षेत्र की जनजातियों के द्वारा बार-बार मुंह की खानी पड़ रही थी।
इसी बीच अंग्रेजों ने षड्यंत्र के तहत मैतेई बाहुल्य मणिपुर में नागा जनजातियों का विरोध करने के उद्देश्य से कुकी समूहों को ईसाई बनाकर यहां बसाया। इसके बाद से ही इस पूरे क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों का गंदा खेल शुरू किया गया।
कुकी समूह के सभी जनजातियों को धीरे-धीरे निशाना बनाकर ईसाई बनाया गया और इसके बाद नागा समूह को भी इस षड़यंत्र में शामिल कर लिया गया।
मैतेई समूह को भी इन मिशनरियों ने ईसाई बनाने का प्रयास किया, लेकिन मैतेई हिंदुओं ने अपना धर्म नहीं छोड़ा।
इसके बाद कम्युनिस्टों ने ईसाइयों के साथ आंतरिक गठजोड़ करते हुए मैतेई समाज में घुसपैठ की और बड़े स्तर पर उन्हें कट्टरपंथ के रास्ते में लाने का प्रयास किया।
अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ा तब उन्होंने भारत के कई हिस्सों में ऐसे पॉकेट्स का निर्माण कर दिया था, जो आगे चलकर भारत की आंतरिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के किए खतरा बन सकते हैं।
मणिपुर में कुकी और नागा का कन्वर्जन भी इसी षड़यंत्र का हिस्सा है और आज जो ईसाइयों के द्वारा मणिपुर में किया जा रहा है, उसे जनजातियों की लड़ाई बताई जा रही है।
कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों का षडयंत्र कुछ ऐसा था कि मणिपुर के मूलनिवासी मैतेई केवल 10% जमीन में अधिकार रख पाते हैं, वहीं ईसाई बन चुके नागा और कुकी 90% जमीन से साथ-साथ मैतेई समूह के 10% जमीनों पर अधिकार जमाते हैं।
इन षड्यंत्रों का परिणाम यह हो रहा है कि मणिपुर की ऐतिहासिक पौराणिक भूमि के वैष्णव मैतेई समाज को अपनी ही मूल भूमि में दोयम दर्जा मिल रहा है, जिसका कारण केवल और केवल ईसाई कन्वर्जन है।