चीन की विदेश नीति

चीन की विस्तारवादी नीति के कारण मंगोलिया, लाओस, वियतनाम, म्यांमार, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान के साथ आर्थिक सम्बन्ध अच्छे होते हुए भी चीन के इरादों पर किसी को भरोसा नहीं है।

The Narrative World    29-Jul-2023   
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चीन का अपने सभी पड़ोसी देशों से सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है। इसके पीछे चीन की विस्तारवाद की कूटनीति काम करती है।


चीन की विस्तारवादी नीति के कारण मंगोलिया, लाओस, वियतनाम, म्यांमार, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान के साथ आर्थिक सम्बन्ध अच्छे होते हुए भी चीन के इरादों पर किसी को भरोसा नहीं है।

दक्षिण चीन सागर पर चीन एकछत्र राज करना चाहता है। वहां वो कृत्रिम द्वीपों का निर्माण भी कर रहा है। इस क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों पर मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और ब्रुनेई जैसे देश भी अधिकार जताते हैं। इन सब के पीछे चीन की महत्वकांक्षी विस्तारवादी सोच काम करती है।


पड़ोसी देशों को छोड़ भी दे तो पीछले एक दशक से यह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार युद्ध में लगा हुआ है।


वह अपने सैन्य, नौसैनिक और राजनयिक प्रयासों का विस्तार करते हुए प्रशांत और हिंद महासागर में अमेरिकी प्रभुत्व को भी चुनौती दे रहा है। इसका एक हिस्सा हिंद महासागर और मलक्का जलडमरूमध्य क्षेत्र में रणनीतिक स्थानों को सुरक्षित करने वाली स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति है।


चीन की सैन्य ताकत पर नजर डाली जाए तो इस समय उसके पास सक्रिय सेना 34,40,000 आरक्षित सेना 12,00,000 वायुसेना 4,00,000 एवं नौसेना 2,55,000 है।


एक अध्ययन के अनुसार चीन के पास साढ़े चार सौ परमाणु हथियार हैं। इतनी बड़ी आर्थिक व सामरिक शक्ति से कोई भी पड़ोसी देश बेर मोल लेना नहीं चाहता। लेकिन उसकी विस्तारवादी सोच के सामने भारत विश्व शांति व सद्भावना की नीति के साथ खड़ा है।


जो चीन के लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती है। भले वर्तमान में चीन हथियारों व आर्थिक रूप से मजबूत है, लेकिन वह भारत के सामने विश्व शाँति, सांस्कृतिक व सद्भावना के मामलों में दिनोंदिन पीछे होता जा रहा है।


अगर चीन असाधारण कूटनीतिक कौशल दिखाता है और अपने विस्तारवादी रवैये पर अंकुश लगाता है और एशिया को युद्ध में नहीं ढकेलता है, तो इसके अच्छे परिणाम दिख सकते हैं। विश्व पटल पर एशिया ऊपर उठ सकता है। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब चीन इस महाद्वीप में अशांति पैदा न करे।


ला ट्रोबे यूनिवर्सिटी एशिया सुरक्षा रिपोर्ट में चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर तथ्य दिए गए हैं। चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान के 16.55 लाख वर्ग किलोमीटर का भूभाग हड़प रखा है। 1934 में पहली बार इसे अंजाम दिया।


1949 तक चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। यहां की 45 फीसद आबादी उइघुर मुसलमानों की है। चीन ने उइघुर मुसलमानों को कैसे दबा रखा है विश्व इसे भलिभाँति जानता है।


इसके बाद चीन ने 12.3 लाख वर्ग किलोमीटर वाले तिब्बत पर सात अक्तूबर 1950 को कब्जा कर लिया। 80 फीसद बौद्ध आबादी वाले तिब्बत पर हमला कर उसने अपनी सीमा का विस्तार भारत तक कर लिया। जो कि इससे पहले चीन कभी भारत का पड़ोसी देश नहीं रहा था।


उसे यहां अपार खनिज, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, मीकांग जैसी नदियों का स्रोत मिल गया। जिसके कारण तिब्बती धर्मगुरु दालाई लामा व उनकी अस्थाई सरकार 1950 से भारत में शरण लिये हुए हैं।


चीन ने 11.83 लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग वाले मंगोलिया पर अक्तूबर 1945 में हमला कर कब्जा जमा लिया। यहां दुनिया का 25 फीसद कोयला भंडार है। यहां की आबादी तीन करोड़ है।


चीन ने 1997 में हांगकांग पर कब्जा कर लिया। इन दिनों वह वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर शिकंजा कसने की फिराक में है।


450 वर्ष के शासन के बाद 1999 में पुर्तगालियों ने चीन को मकाउ सौंप दिया। रूस से 52 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन का विवाद है।


चीन देंग शियाओ पिंग के जमाने मेंहाइड एंड बाइड’ (छिपकर मौके का इंतजार करने की नीति) को छोड़करसीजिंग अपॉरचुनीटीज’ (मौकों को पैदा करने में) नीति पर अमल करने लगा है। जो कि विस्तारवादी सोच का ही विस्तार है।


चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति से पिछले 6-7 दशकों में अपने आकार को लगभग दोगुना कर लिया है। दरअसल, चीन ने 1949 में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना के बाद से जमीन हथियाने की नीति अपनाई।


राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 2013 में सत्ता में आने के बाद से चीन ने भारत से लगी सीमा पर मोर्चेबंदी तेज की। लेकिन उसे कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जो कि समय समय पर आपसी टकराव व संघर्ष का कारण बनता है जो कि एशिया क्षेत्र के लिए आगे बड़ी अशांति का कारण बन सकता है। जिसके लिए पूर्णतः चीन की विस्तारवादी नीति जिम्मेदार रहेगी।


कुछ समय पहले ही भारत के मामले में एक अमेरिकी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि भारत के खिलाफ चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में आक्रामक विदेश नीति अपनाई है और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) स्पष्ट करने की कोशिशों को रोका है।


इससे दोनों देशों के बीच शांति कायम करने में रुकावटें पैदा हुईं है। यदि चीन ऐसे ही अपनी विस्तारवादी सोच व षड्यंत्र को निरंतर रखता है तो ना सिर्फ एशिया पर विश्व शांति के लिए भी यह घातक व घोर अनैतिक नीति खतरा बन सकती है।


लेख 


भूपेन्द्र भारतीय

देवास, मध्यप्रदेश