अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्विस : जमानत पर रिहा दो ऐसे अर्बन नक्सली जो आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं

यह दोनों व्यक्ति भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे में से एक माओवादी आतंक के ऐसे पैरोकार हैं जो ना सिर्फ माओवादी विचारधारा का समर्थन करते हैं, बल्कि उसके प्रसार-प्रचार और उसके माध्यम से किए जाने वाले षड्यंत्रों एवं घटनाओं की योजना भी बनाते हैं। कुल मिलाकर यदि हम एक सामान्य भाषा में कहें तो यह दोनों "अर्बन नक्सल" हैं।

The Narrative World    01-Aug-2023   
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बीते शुक्रवार से सोशल मीडिया में दो नाम ट्रेंड कर रहे हैं
, एक है वर्नोन गोंजाल्विस और दूसरा है अरुण फरेरा। इन दोनों नामों के चर्चा का कारण है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने इन्हें सशर्त जमानत दे दी है।


दरअसल यह दोनों व्यक्ति भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे में से एक माओवादी आतंक के ऐसे पैरोकार हैं जो ना सिर्फ माओवादी विचारधारा का समर्थन करते हैं, बल्कि उसके प्रसार-प्रचार और उसके माध्यम से किए जाने वाले षड्यंत्रों एवं घटनाओं की योजना भी बनाते हैं। कुल मिलाकर यदि हम एक सामान्य भाषा में कहें तो यह दोनों 'अर्बन नक्सल' हैं।


दोनों आरोपियों को भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की साजिश रचने एवं प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन से संबंध रखने के आरोप में वर्ष 2018 में गिरफ्तार किया था, जिसके बाद से दोनों जेल में बंद थे।


इस बीच कई बार न्यायालय ने उनकी जमानत याचिका को खारिज किया और जांच एजेंसी के द्वारा लगाए गए आरोपों एवं उसकी पुष्टि के लिए पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर उन्हें जमानत नहीं दी गई।


हालांकि इस बार भी जांच एजेंसी ने जमानत का विरोध किया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 28 जुलाई, 2023 को इस मामले की सुनवाई करते हुए इन दोनों आरोपियों की जमानत को मंजूर किया है।


हालांकि दोनों पर कई प्रकार की शर्तें भी लगाई गईं हैं। कोर्ट की शर्तों के अनुसार दोनों पर महाराष्ट्र से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, साथ ही उन्हें पासपोर्ट जमा करने के लिए भी कहा गया है।


इसके अतिरिक्त दोनों केवल एक ही फोन उपयोग कर सकते हैं, जिसका लोकेशन पूरे समय एनआईए की निगरानी में रहने वाला है।


कौन है अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्विस ?


भीमा कोरेगांव के मामले को लेकर पुलिस ने अरुण फरेरा पर आरोप लगाया था कि शहरी माओवादी अरुण फरेरा ने ना सिर्फ दंगों की साजिश रची बल्कि प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठनों से संबंध भी रखे हुए है।


31 दिसंबर 2017 को भीमा कोरेगांव में एल्गार परिषद की एक बैठक हुई थी, जिसमें अरुण फरेरा ने भड़काऊ भाषण दिया था जिसके बाद पूरे क्षेत्र में अगले दो दिनों में हिंसा भड़की थी और दंगे हुए थे।


पुणे पुलिस ने यह भी आरोप लगाया था कि अरुण फरेरा अपने अन्य शहरी माओवादी साथी वर्नोन गोंजाल्विस के साथ मिलकर प्रतिबंधित नक्सली-माओवादी संगठन में भर्ती के लिए लोगों को उकसा रहे थे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए नए कैडर तैयार कर रहे थे।


पुणे पुलिस ने कोर्ट में बताया था कि यह अरुण फरेरा चार ऐसे संगठनों से जुड़ा था जो प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन के मुखौटे के रूप में कार्यरत है।


अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्विस के ऊपर यूएपीए के तहत गिरफ्तारी हुई थी। अरुण फरेरा ने अदालत में यह भी माना था कि वह मार्क्सवादी और वामपंथी विचारधारा से प्रभावित है।


सरेंडर माओवादी पहाड़ सिंह ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि कथित तौर पर अरुण फरेरा प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उच्च स्तरीय बैठक में शामिल था।


भीमा-कोरेगांव की हिंसा


महाराष्ट्र के पुणे में एक क्षेत्र है कोरेगांव। भीमा नदी के तट पर यह क्षेत्र स्थित है जिसकी वजह से इसे भीमा कोरेगाव भी कहा जाता है। यहाँ एक जनवरी 2018 को बड़े स्तर पर जातीय हिंसा फैली थी। धीरे धीरे इस हिंसा की आग पूरे महाराष्ट्र में फैल गई थी।


इन दंगों की वजह से राज्य में लोगों के जीवन में बड़ा बुरा असर फैल रहा था। इन दंगों में कुल 500 से अधिक गाड़ियां जलाई गई थी और 1 व्यक्ति की मौत हुई थी।


इस पूरी गतिविधि में वामपंथी शक्तियों और माओवादी आतंकियों के शामिल होने की बात सामने आई। जब महाराष्ट्र पुलिस और उसके बाद एनआईए ने अपनी जांच को आगे बढ़ाया तो धीरे-धीरे पूरे देश भर में आरोपियों की गिरफ्तारी देखने को मिली।


कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, स्वघोषित पत्रकार, मीडिया के बनाए हुए सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथ के सिपहसालार पुलिस की गिरफ्त में आए।


इन सभी लोगों ने अपने माओवादी आतंकवादी सोच के ऊपर जो चोला पहन रखा था उसे सुरक्षा एजेंसियों ने जनता के सामने निकाल फेंका। माओवादियों ने समाज में जातीय दुर्भावना फैलाकर बड़े स्तर पर दंगे फैलाने का काम किया।


भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 के बाद से हुए दंगों में पूरी तरह से माओवादी शक्तियां शामिल थी, इसकी पुष्टि हुई। सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन जैसे तमाम शहरी माओवादी गिरफ्तार हुए।


कुछ ऐसे लोगों की भी गिरफ्तारियां हुई जो माओवादियों से सीधे संपर्क में थे और अलग-अलग माध्यमों से इस हिंसा की योजना बना रहे थे। इसमें ऐसे लोग भी शामिल थे जिनके संबंध पाकिस्तानी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों से भी हैं। इस पूरे कनेक्शन का जांच एजेंसियों ने भंडाफोड़ किया है।


जांच एजेंसियों ने चार्ज शीट से लेकर हाईकोर्ट में दिए गए हलफनामा में भी इस बात का जिक्र किया है कि गिरफ्तार हुए लोगों के माओवादियों से लिंक है और इन्होंने समाज में विद्वेष फैलाने के इरादे से इन दंगों को भड़काने का काम किया है।