छत्तीसगढ़ की गौरवमयी संस्कृति बहुत ही समृद्ध और प्राचीनतम है, इसका भूगोल और इतिहास दोनों ही अनूठा और रोचक है। छत्तीसगढ़ में कई ऐसे जीवन्त स्थल है - जो छत्तीसगढ़ की गाथा सुनाते है। ऐसी ही एक जीवंत स्थल है मांडूक्य ऋषि की तपः स्थली मदकू द्वीप।
नानृतं, सत्येन पन्था विततो देवयानः।।
येना कर्मन्त्युषयो हयाप्तकामा, यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम्।।
मुण्डकोपनिषद, प्रथमखण्ड, षष्ठ मन्त्र ।।
मदकू द्वीप सुनकर लग रहा होगा, ये सागर या महासागर से घिरा कोई मनोरम द्वीप होगा। लेकिन नहीं, ये द्वीप मनोरम तो है परंतु सागर से घिरा नहीं, बल्कि शिवनाथ नदी से घिरा हुआ एक नदी द्वीप है।
आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा, यह द्वीप छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग भाटापारा नगर से दो कोस उत्तर दिशा में है ।
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सन 2011 में पुरातात्विक दृष्टि से यहाँ उत्खनन किया गया। उत्खनन से यहाँ नयनाभिराम, आश्चर्यचकित कर देने वाले दृश्य सामने आये। एक नहीं पूरे 19 मंदिरों का समूह और अनेक प्रतिमाएं उद्घटित हुई। ये मंदिर एक लाइन में है।
मध्य का मंदिर सबसे बड़ा है एवं पश्चिमाभिमुखी है। इसके दोनों ओर के मंदिर पूर्वाभिमुखी एवं आकार में क्रमशः छोटे होते गए है। इनकी एक और खासियत है कि सभी मंदिरों का शिखर भिन्न आकृति वाला है।
मध्य का मंदिर पश्चिमाभिमुखी तथा शेष सभी पूर्वाभिमुखी होना अपने आप में एक रहस्य व खोज का विषय है। इनके गर्भगृह में स्मार्त लिंग और योनिपीठ स्थापित है। एक-एक मंदिर उमामहेश्वर और गरुडारूढ़ लक्ष्मीनारायण का है।
पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि ये मंदिर 11वीं से 14वीं सदी के मध्य का कल्चुरी काल का है। वेणुवादक कृष्ण, अम्बिका, नृत्यगणेश, महिषासुर मर्दिनी, उपासन-रत राजपुरुष ,योद्धा आदि की भी मूर्तियां मिली है।
इस स्थान की सबसे विशिष्ट विशेषता बारह स्मार्त लिगों का प्राप्त होना है। इससे साबित होता है कि यह स्थान कल्चुरी काल में स्मार्त पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ साथ धार्मिक सहिष्णुता का जीवंत क्षेत्र था।
कई मंदिरों के सामने राजपुरुषों की उपासक मुद्रा में प्रतिमाएँ मिलीं है, जिससे प्रतीत होता है कि रतनपुर के कल्चुरी शासको के वंशजो ने यहाँ पर मन्दिर का निर्माण करवाया था।
राजा प्रताप मल्लदेव (ई.1198- 1218 ) का तांबे का एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है। उत्खनन से यह भी ज्ञात हुआ कि यह प्राचीन देव केंद्र नदी के बाढ़ के कारण ध्वस्त हो गया था।
मदकू द्वीप में उत्खनन कार्य पुरातत्वविद श्री अरुण कुमार शर्मा के मार्गदर्शन में तथा श्री प्रभात सिंह के नेतृत्व में किया गया।
यहां की प्रमुख रूप से पुन्नी मेला लगता है एवं अनेक वर्षों से हनुमान जयंती शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, साथ नौका दौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।
प्रथम सावन सोमवार की पूजा, पितृ मोक्ष अमावस्या, कार्तिक पूर्णिमा, जल देवता पूजन एवं दीपदान का पर्व मनाने की भी परंपरा है।
वर्तमान में श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप सेवा समिति जिला मुंगेली (छ. ग.) के द्वारा श्री रामरूप दास महत्यागी जी जो के द्वीप पर ही निवास करते हैं उनके मार्गदर्शन में द्वीप पर विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक सद्भाव को आगे बढ़ाने के लिए सीता रसोई से सैकड़ों लोगों को भोजन प्रसादी वितरण किया जाता है और अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
इस आयोजन के कारण आस पास लोगों के में द्वीप के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति भाव का जागरण हो रहा है, साथ ही साथ समरसता के भाव का भी दृढ़ीकरण हो रहा है।
मदकू द्वीप अपने गर्भ में बहुत से राज को संजोए हुए है जिसे बताने का छोटा प्रयास हमने किया है।