चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की स्थापना हुए 100 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और इस पार्टी को चीन में एकाधिकार से शासन करते हुए दशकों का समय हो चुका है जो एक बहुत बड़ा और व्यापक कलखंड है।
मार्क्सवाद-लेनिनवाद के साथ-साथ माओ एवं डेन जियोपिंग के विचारों के माध्यम से विकसित समाजवाद के चीनी विशेष स्वरूप को चीनी प्रचार के केंद्र में रखा गया है।
चीनी तानाशाह शी जीनपिंग के समाजवाद के विचार को नई पीढ़ी के लिए पूरी तरह से लागू करने की भी स्वीकृति हुई है। चीन में प्रचार माध्यम से देश के सभी युवाओं, बुज़ुर्गों, महिलाओं और पुरुषों को शी जीनपिंग के विचारों की तरह एवं पार्टी के समर्थन में आकर्षित किया जाता है। ताकि चीनी समाज का हर वर्ग शी जीनपिंग के प्रति और अधिक ईमानदार हो सके।
इन सभी गतिविधोयों को समझने से पहले हमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना को भी समझना होगा। दरअसल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वास्तविकता में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आतंकी विचार वाले संगठन "कम्युनिस्ट इंटरनेशनल" के द्वारा चीन में स्थापित की गई एक शाखा है।
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (जिसे अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में भी जाना जाता है) एक कम्युनिस्ट संगठन है जिसने 1919 में सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा सत्ता हासिल करने के बाद यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों को उलझा दिया। इस संगठन को मास्को में स्थापित किया गया था।
इन कम्युनिस्ट संगठनों ने "सोशल डेमोक्रेसी" (जिसे लोकतांत्रिक समाजवाद के रूप में भी जाना जाता है) का पुरज़ोर विरोध किया। यही कारण कि आज भी कम्युनिस्ट देशों में लोकतंत्र पूरी तरह नष्ट हो चुका है। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (CPSU) के शासन के तहत, कम्युनिस्ट इंटरनेशनल वास्तव में सोवियत के कम्युनिस्ट पार्टी का एक राजनीतिक हथियार था।
यह एक अंतरराष्ट्रीय "लाल आतंकवादी संगठन" है जिसकी स्थापना दुनिया भर में चल रही लोकतांत्रिक और गणतंत्रिक सरकारों को हटाने और दुनिया में साम्यवाद फैलाने की साजिश रचने के लिए किया गया था।
1920 की पहली छमाही में, कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की योजना के लिए पूर्व ब्यूरो (चार या पांच लोगों का एक समूह) को बीजिंग भेजा। चीन में वे ली डझाओ से मिले जो पेकिंग विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे उनसे समूह ने कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना पर चर्चा की।
ली डझाओ ने उनकी चेन डक्सियू से मुलाक़ात करवाई और इसके बाद चेन डक्सियू की सहायता से विकिंस्की (कम्युनिस्ट इंटेरनेशनल से आए व्यक्ति) ने शंघाई में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के पूर्वी एशियाई सचिवालय की स्थापना की एवं इसके बाद तत्काल चीन, उत्तर कोरिया और जापान में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की योजना बनाई।
चेन डक्सियू ने कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के द्वारा दिए गए पैसों से बंद पड़े पत्रिका "न्यू यूथ" को दोबारा प्रारंभ किया। उन्होंने इसके साथ ही कई नए ऐसे प्रकाशक शुरू किए जो साम्यवाद अर्थात वामपंथ का प्रचार कर सके। इसके बाद उन्होंने मज़दूर यूनियन बनाना शुरू किया, श्रमिक क्राम स्कूल खोले और कई सोवियत कम्युनिस्ट समर्थित संस्थानों की स्थापना की।
उसी वर्ष, बीजिंग, शंघाई, वुहान, ग्वांगझू, जिनान, टोक्यो (जापान) और कई अन्य स्थानों में कम्युनिस्ट समूह स्थापित किए गए, जो सभी चीन में विजिंस्की की गतिविधियों का परिणाम थे। परिणामस्वरूप, कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने चीन में अपने लाल पंजे बढ़ा दिए। और अंततः चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की स्थापना 1920 में की गई थी।
जुलाई 1921 में शंघाई में आयोजित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के "प्रथम राष्ट्रीय कांग्रेस" के लिए बैठक में भाग लेने वाले 13 प्रतिनिधियों के यात्रा व्यय भी कम्युनिस्ट इंटरनेशनल द्वारा अग्रिम रूप से भेजे गए थे।
इस बैठक के योजनाकार और मेजबान कम्युनिस्ट इंटरनेशनल द्वारा भेजे गए एक अन्य प्रतिनिधि मैरिन (डच) थे। पार्टी संविधान और पार्टी कार्यक्रम कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के आदर्श संस्करण के अनुसार ही था।
नतीजतन, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की चीनी शाखा के रूप में चीन की राष्ट्रवादी सरकार को हटाने के लिए अपनी 29 वर्षीय कम्युनिस्ट क्रांतिकारी गतिविधियों को शुरू किया।
मैरिन ने यह महसूस किया कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में केवल कुछ दर्जन सदस्य हैं और एक भी सैनिक नहीं है। इसलिए, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के बाहर सोवियत तानाशाह वलादिमीर लेनिन के निर्देशों के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट क्रांति को बढ़ावा देने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के साथ सहयोग करने हेतु चीनी समाज के अन्य राजनीतिक विपक्षी दलों की तलाश की गई।
चेन डक्सियु और झांग टेलाई (अगस्त 1920 में बीजिंग कम्युनिस्ट समूह में शामिल होने वाले) द्वारा मिलने के बाद मैरिन ने दिसंबर 1921 में सन-यात-सेन से मिलने के लिए गुआंग्शी गए। इसी घटना ने कुआमिंतांग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच सहयोग की नींव रखी।
सन-यत-सेन ने उत्तरी अभियान के चीन गणराज्य की बीजिंग सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आर्थिक सहायता और सैन्य उपकरण सहायता मिलने के उम्मीद से इस गठबंधन को अंजाम दिया।
सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी की मंशा थी कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कुआमिंतांग में पूरी तरह घुसपैठ कर लें और उसकी लीडरशीप पर क़ब्ज़ा कर चीन को पूरी तरह कम्युनिस्ट क्रांति में शामिल किया जा सके।
रूसी तानाशाह लेनिन मुख्य रूप से रूसी सेना में छुपे हुए बोल्शेविकों पर भरोसा करते थे और सत्ता को हासिल करने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते थे, लेकिन उनकी गतिविधियाँ बहुत अलग और आक्रामक हिंसक थी और दुनिया के अधिकांश देशों ने इसे कभी मान्यता नहीं दी थी। विशेष रूप से यूरोपीय और अमेरिकी देशों में समाजवादी विचार वाले दलों ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया।
1918 में कार्ल कौत्स्की (एक वरिष्ठ मार्क्सवादी सिद्धांतकार, द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय और जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता) ने लेनिन की कम्युनिस्ट क्रांति को आतंकवाद बताया था।
यूरोप और अमेरिका के विकसित पूँजीवादी देशों में साम्यवाद अर्थात वामपंथी क्रांति की लालसा लिए सोवियत तानाशाह लेनिन ने औपनिवेशिक एवं अर्ध-औपनिवेशिक देशों में साम्यवादी क्रांतियों की शुरूआत की। इसके साथ ही उसने एक "राष्ट्रीय एवं औपनिवेशिक सिद्धांत" बनाया। इसमें लेनिन ने दुनिया के देशों को दमनकारी देशों और औपनिवेशिक राष्ट्रों में विभाजित किया।
इस सिद्धांत के तहत लेनिन ने कहा कि "पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी (पूंजीवादी) देशों के लोग ज्यादातर औपनिवेशिक और अर्द्ध-औपनिवेशिक देशों के लोगों पर अत्याचार करने और उनका शोषण करने में अपनी बुर्जुआ सरकारों का समर्थन करते हैं, इसलिए वे दमनकारी राष्ट्र हैं।"
लेनिन ने इसमें कहा कि "कम्युनिस्ट इंटरनेशनल को इन देशों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता और वहाँ लोकतंत्र की स्थापना के लिए उनके संघर्ष में शोषित राष्ट्रों का समर्थन और नेतृत्व करना चाहिए।" जबकि वास्तविकता यह है कि लेनिन ने अपने देश में सत्ता हासिल करने के बाद कभी भी सोवियत में लोकतंत्र स्थापित नहीं होने दिया।
इसी कारण से, कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने चीन सहित तथाकथित औपनिवेशिक और अर्ध-औपनिवेशिक देशों के क्रांतिकारी मुद्दों का अध्ययन करने और नेतृत्व करने के लिए 'राष्ट्रीय और औपनिवेशिक मुद्दे समिति' की स्थापना की है।
यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में कम्युनिस्ट क्रांति शुरू करने की लालसा को छोड़कर लेनिन ने अपनी पूरी योजना चीन सहित "पिछड़े देशों" में स्थानांतरित कर दिया।
इसी क्रम में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की ओर से मैरिन सन-यात-सेन से मिलने के लिए गुइलिन गए और केएमटी और कम्युनिस्ट पार्टी को एक मंच में लाने का प्रयास किया। इसका मुख्य उद्देश्य "अर्ध-औपनिवेशिक" चीन में कम्युनिस्ट क्रांति को अंजाम देने की लेनिन की रणनीति को लागू करना था।
इस रणनीति को बाद में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास की पाठ्यपुस्तक में "क्रांतिकारी एकजुट मोर्चा" स्थापित करने के की रणनीति कहा गया।
इसके बाद शुरू हुई तथाकथित चीनी कम्युनिस्ट क्रांति !!!