नूह का प्रायोजित दंगा : देशभर में बढ़ती मजहबी हिंसक घटनाओं की डिकोडिंग

यह इसलिए भी चिंतनीय है क्योंकि कश्मीर में हिंदुओ और सेना के विरुद्ध दंगा करने की इस तरह की ट्रेनिंग विदेशी एजेंसियों द्वारा दी गई थी, नूह पूरे एशिया में सबसे संवेदनशील क्षेत्र बन चुका है इसलिए संभव है की विदेशी एजेंसियों द्वारा इस प्रकार का प्रशिक्षण यहां भी दिया गया हो।

The Narrative World    02-Aug-2023   
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हिंदू श्रद्धालुओं द्वारा शांतिपूर्वक निकल रही ब्रज मंडल
84 कोस शोभायात्रा पर हरियाणा के मेवात (नूह) में मजहबी उन्मादी भीड़ ने जानलेवा हमला कर दिया।


घटना के बाद सामने आए अलग-अलग वीडियो और सीसीटीवी फुटेज से स्पष्ट होता है की हिंदू श्रद्धालुओं पर हुआ यह जानलेवा हमला कोई तात्कालिक घटना नही बल्कि पूरी तरह से प्रायोजित थी।


अचानक हुए इस हमले में पत्थर, लाठी, धारदार हथियारों का जमकर प्रयोग हुआ जबकि प्रत्यक्षदर्शियों ने हमले के दौरान लगातार गोलियां चलने की आवाज भी सुनने की बात कही।


इस मजहबी हमले में यात्रियों की जान बचाने में दो होमगार्ड जवान मौके पर ही वीरगति को प्राप्त हुए जबकि कुल 24 घायलों में इलाज के दौरान 03 अन्य की मृत्यु होने की सूचना है जबकि 4 की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है।


मजहबी भीड़ ने इंसानों के साथ वाहनों को भी अपना निशाना बनाया। आग लगा कर फूंक दिए गए 80 वाहनों में 8 वाहन पुलिस के थे, जबकि कुल 135 से 150 वाहनों को क्षतिग्रस्त किया गया।


आसपास के जिलों के पुलिसबल के घटनास्थल पर पहुंचने तक मजहबी उन्मादी भीड़ लगभग 6 घंटो तक उत्पात मचाती रही।


देश में इस प्रकार के दंगे और हिंदुओ की धार्मिक यात्राओं पर हमले होना कोई नई बात नही है किंतु पिछले 10 सालों के मध्य हुए मामलों को गौर से देखें तो इसमें एक पैटर्न नजर आता है।


दंगा फसाद करने वाली भीड़ एक निश्चित तरीके से हमला करती है, हमले की पूर्व योजना तैयार की जाती है, घरों की छतों पर पहले से पत्थर जमा किए जाते है, हथियार जुटाए जाते है, स्थानीय संसाधनों को हथियारों के रूप में रूपांतरित कर लिया जाता है। इस तरह के हमले में महिलाओं और बच्चों का भी जमकर उपयोग किया जा रहा है।


हमला करने वाले सबसे पहले अपनी पहचान छुपाने के लिए अपने चेहरे को कपड़ो से ढक लेते है और सबूत न रहे इसलिए क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ देते है।


दंगाइयों का एक जत्था हमला करता है और पीछे हट जाता है, तब तक दूसरा जत्था पत्थर और हथियारों के साथ फ्रंट मोर्चा सम्हलता है।


घरों की छतों से औरते, बच्चे और वृद्ध पत्थरों की बारिश करते है। दिल्ली दंगों में तो छतों पर बड़ी-बड़ी गुलेल बनाई गई थीं, जिस प्रकार से बड़े-बड़े पत्थर तेज गति से आ रहे थे संभव है वैसी ही गुलेल नूह में प्रयोग में लाई गई होंगी।


कश्मीर, पश्चिम बंगाल और दिल्ली दंगों में भी इसी प्रकार की रणनीति का प्रयोग दंगाइयों द्वारा किया गया था।


यह इसलिए भी चिंतनीय है क्योंकि कश्मीर में हिंदुओ और सेना के विरुद्ध दंगा करने की इस तरह की ट्रेनिंग विदेशी एजेंसियों द्वारा दी गई थी, नूह पूरे एशिया में सबसे संवेदनशील क्षेत्र बन चुका है इसलिए संभव है की विदेशी एजेंसियों द्वारा इस प्रकार का प्रशिक्षण यहां भी दिया गया हो।


सबसे बड़ी चिंता की बात यह है की देशभर में इस प्रकार के अनेक नूह तैयार हो रहे है और नियमित रूप से उनका प्रशिक्षण भी हो रहा है, जबकि हमारे समाज में शत्रु बोध का अभाव ही बना हुआ है।


इस तरह के हमलों से बचाव की रणनीति तो दूर सामान्य जनमानस में इन विषयो को लेकर जागरूकता का भी सर्वथा अभाव है।


लेख

डॉ. उत्तम मोहन सिंह मीणा

लेखक समाज कार्य विषय के व्याख्याता है