कुछ दिनों पूर्व मुंबई से एक रिपोर्ट आई थी कि मुंबई के गॉस्पेल चर्च से जुड़े एक आश्रम से 8 नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू कर बचाया गया है। ये सभी बच्चे उदयपुर के थे जिनमें 7 बालिकाएं एवं एक बालक शामिल है।
मिली जानकारी के अनुसार इसी चर्च से पूर्व में भी तीन नाबालिग लड़कियों से यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था, जिसके बाद चर्च से जुड़े आश्रम से 45 बच्चों को छुड़ाया गया था। उस दौरान महिला एवं बाल विकास बोर्ड के अधिकारियों द्वारा की गई काउंसिलिंग में 3 बच्चियों ने इस बात को स्वीकार किया था कि उनके साथ यौन शोषण की घटना घटित हुई है। पुलिस ने इसके बाद ईसाई पादरी येसु के विरुद्ध अपराध दर्ज किया था।
दरअसल चर्च में यौन शोषण की घटनाएं हाल ही में नहीं, वरन दशकों से घटित हो रही है, और चर्च इसे छिपाने में भी लगा हुआ है। चर्च के भीतर यौन उत्पीड़न का मायाजाल काफी बड़ा और भयावह है। नोबेल पुरस्कार विजेता 75 वर्षीय रोमन बिशप कार्लोस फिलिपे जिमेनेस बेलो पर भी यौन शोषण का आरोप लगा है।
एक डच पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में ईसाई बिशप के द्वारा किए गए कुकृत्यों की जानकारी दी गई थी, जिसके सामने आने के बाद एक बार फिर वेटिकन को सामने आना पड़ा था। वेटिकन ने कहा था कि अब इस मामले में वह खुद जांच करेगा, हालांकि इस जांच के क्या परिणाम आएंगे ये सभी अनुमान लगा सकते हैं।
पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार 1980 एवं 1990 के दशक के दौरान ईसाई बिशप द्वारा यौन शोषण का शिकार हुए पीड़ितों ने अपने बयान भी साझा किए थे, जिसमें कहा गया था कि बिशप कार्लोस ने उनके साथ गंदी हरकतें की और उसके बाद उन्हें पैसे दिए।
पीड़ितों ने बताया कि उस दौरान वो किशोरावस्था में होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी कमजोर परिवारों से आते थे, इसीलिए वो काफी डरे हुए थे। यह उस दौर की बात है जब ईसाई बिशप कार्लोस दक्षिण-पूर्वी एशिया के एक पूर्वी तिमोर में बिशप के रूप में कार्य कर रहे थे और इस दौरान वहां का चर्च स्थानीय लोगों के बीच काफी सम्मानजनक स्थिति में था।
जर्मन पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार एक पीड़ित का कहना है कि वो इस घटना को लेकर अब ईसाई बिशप के साथ-साथ चर्च से भी माफीनामा चाहता है। पीड़ित का कहना है कि यह घटना पूरी दुनिया के सामने आनी चाहिए और आगे से कभी कोई अपने ताकत के नशे में चूर होकर इस तरह की यौन हिंसा ना करे।
हालांकि इस आरोप के सामने आने के बाद डच पत्रिका ने कहा था कि उन्होंने आरोपी ईसाई बिशप से इस मुद्दे पर बातचीत करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं की। वहीं वेटिकन के प्रवक्ता ने कहा था कि इस मामले में ध्यान दिया जाएगा।
दरअसल यह वही बिशप कार्लोस है जिसके लिए वर्ष 1996 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करते हुए कहा गया था कि इसने अपनी मातृभूमि पूर्वी तिमोर पर इंडोनेशिया के कब्जे के विरुद्ध अहिंसक अभियान चलाया था।
यह कोई पहली घटना नहीं थी जब किसी बिशप पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा है। दरअसल इससे पूर्व विभिन्न पादरियों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगने के साथ-साथ यह भी आरोप लग चुका है कि चर्च द्वारा इनको बचाया जा रहा है।
जर्मनी से एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया था कि कैथोलिक पादरियों ने दशकों तक यौन उत्पीड़न की घटनाओं को छुपाए रखा था। इस मामले में बनाए गए एक स्वतंत्र आयोग की अंतरिम जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि यौन उत्पीड़न करने वाले लोगों को डायोसिस के भीतर और कैथोलिक संस्थाओ में दूसरे स्थानों में भेजा गया, जिसका मुख्य उद्देश्य उन्हें कानूनी कार्यवाइयों से बचाना भी था।
इस रिपोर्ट में यह जानकारी भी सामने आई थी कि यौन उत्पीड़न की कुछ घटनाओं के बाद जब एक पादरी के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ तब चर्च ने इसमें दखलंदाजी कर उस पादरी को ना सिर्फ कानूनी कार्यवाई से बचाया बल्कि भविष्य में भी किसी अन्य कार्यवाई से बचाने के लिए उसे पराग्वे भी भेज दिया गया।
ठीक इसी प्रकार एक अन्य पादरी ने भी ऑस्ट्रिया में यौन शोषण की गतिविधियों को अंजाम दिया और इस घटना के बाद उसे जब दोषी करार दिया तो बावजूद इसके चर्च ने उसे डायोसिस में एक पद पर नियुक्ति दी और इसके बाद उस पादरी ने फिर अपने प्रभावों का दुरुपयोग कर यौन शोषण किया।
जर्मनी से सामने आई इस रिपोर्ट में 195 दोषियों और 513 पीड़ितों का की जानकारी सामने आई थी, हालांकि यह केवल अंतरिम रिपोर्ट है, संख्या में और बढ़ोतरी भी हो सकती है।
वर्ष 2018 में भी जर्मन बिशप कांफ्रेंस ने यौन दुर्व्यवहार को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें ट्रियर डायोसिस के 442 पीड़ितों की पहचान की गई थी।
ऐसा नहीं है कि ईसाई पादरियों द्वारा यह घटनाएं केवल यूरोप या पश्चिमी देशों में घटित हुई हैं, पादरियों के द्वारा यौन शोषण एवं बलात्कार करने की घटनाएं भारत में भी कम नहीं है, हालांकि चर्च में हमेशा से इस मामले में चुप्पी साधी हुई है।
भारत में चर्च से जुड़ी ननें कहती हैं कि पादरियों ने उनके साथ दुष्कर्म जैसी घटनाओं को अंजाम दिया लेकिन बावजूद इसके चर्च ने उनकी सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाए। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एपी की एक विस्तृत रिपोर्ट में इस बात की जानकारी सामने आई थी कि वेटिकन को भी इस बात की जानकारी है कि एशिया, यूरोप, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में पादरी और बिशप ननों का यौन शोषण करते हैं।
वर्ष 2018 में एपी के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि ननों के साथ हो रहे यौन शोषण को रोकने के लिए वेटिकन ने बहुत कम प्रयास किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में दशकों से चर्च परिसर में ननों के साथ यौन दुर्व्यवहार हो रहा है और ननों ने यह बात खुद से बताई है कि कैसे पादरियों और बिशपों के द्वारा उनपर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का दबाव डाला जाता है एवं उनका यौन शोषण किया जाता है।
भारत में ननों की स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब ननों ने चर्च परिसर के भीतर हो रहे इन कुकृत्यों को उजागर करने का प्रयास किया तो उन्हें ही चुप कराने वालों की फौज खड़ी हो गई। केरल से लेकर वेटिकन तक चर्च में बवाल मच गया और ननों पर दबाव बनाया जाने लगा।
एक नन का कहना है कि चर्च के अधिकारियों से बार-बार शिकायत करने के बाद भी जब कोई कदम नहीं उठाए गए तब 44 वर्षीय नन ने पुलिस में केस दर्ज कराया था। नन ने कहा था कि ईसाई बिशप ने उसके साथ दो वर्षों तक दुष्कर्म किया।
वहीं एपी की रिपोर्ट में एक नन के हवाले से बताया गया कि जब वह युवावस्था में थी तब उससे करीब 40 वर्ष बड़े ईसाई पादरी ने रात्रिकाल में शराब के नशे में उसके घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था।
नन ने जब इसकी शिकायत अपने सुपरवाइजर को दी तो उन्होंने इस पर कोई कदम नहीं उठाया, उल्टा नन को ही पादरी से दूर रहने की बात कही। इसके बाद पीड़िता ने गुप्त रूप से चर्च के अधिकारियों को पत्र लिखें, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। आज चर्च में स्थिति ऐसी हो चुकी है कि किसी पादरी की इन अनैतिक यौन इच्छाओं को रोकना ईसाइयत के साथ बगावत की तरह देखा जा रहा है।