वर्ष 2011 के बाद से चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युआन को आगे बढ़ाने की रणनीति अपनाई थी, लेकिन वर्तमान में जिस तरह से उसके हालात हैं, उससे यह कहा जा सकता है कि चीनी मुद्रा लगातार नीचे ही गिरती जा रही है।
एक तरफ जहां बीते 4 दशकों में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार एवं गति लाकर दुनिया को चौंका दिया था, वहीं अब स्थित ऐसी आ चुकी है कि चीनी अर्थव्यवस्था कभी भी ढह सकती है।
हाल ही के कुछ वर्षों में चीनी अर्थव्यवस्था की सुस्त गति और एक के बाद एक अलग-अलग सेक्टर के विफल होने से चीनी अर्थव्यवस्था के सामने बड़ा संकट आ गया है।
चीनी अर्थव्यवस्था के विकास दर में गिरावट है, उपभोक्ता दरों में गिरावट है साथ ही साथ रियल स्टेट कारोबार पूरी तरह से गिरने की कगार पर है।
अर्थव्यवस्था की मार चीन के रोजगार क्षेत्र में भी देखने को मिल रही है। चीन में बेरोजगारी का स्तर इतना अधिक हो चुका है कि इन हालातों से घबराई हुई चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ें जारी करना बंद कर दिया है।
वहीं देश की दो सबसे बड़ी रियल स्टेट कंपनियों ने स्वयं को डिफॉल्ट घोषित कर दिया है। बीते वर्ष एवरग्रांडे ने खुद को डिफॉल्ट घोषित किया था, और अब कंट्री गार्डन नामक कंपनी ने खुद को डिफॉल्ट घोषित कर दिया है।
एक रिपोर्ट में यह जानकारी निकलकर सामने आई है कि चीन की अर्थव्यवस्था ऐसी कमजोर होती हालातों के बाद दुनियाभर के निवेशकों के मन में भय पैदा हो गया है।
वहीं इस मामले को लेकर विषेशज्ञों का कहना है कि चीनी अर्थव्यवस्था ठीक उसी प्रकार ढलान पर है जैसे विखंडित होने से पहले सोवियत संघ 1980 के दशक में था।
दरअसल युआन का कमजोर होना, प्रॉपर्टी सेक्टर का पूरी तरह से विफल होना और अर्थव्यवस्था गिरने की हालत में आना, यह सबकुछ इस ओर इशारा कर रहे हैं कि चीन की आर्थिक शक्ति कमजोर हो रही है।
इस मामले को लेकर द गार्डियन में आर्थिक मामलों की विषेशज्ञ लैरी इलियट का कहना है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जिस प्रकार से वर्तमान नीतियों के साथ कार्य कर रही है, उससे अर्थव्यवस्था में कोई सुधार की संभावना कम है।
उनका कहना है कि कम्युनिस्ट पार्टी को संरचनात्मक आर्थिक परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ने जो कठोर राजनीतिक नियंत्रण स्थापित किया है, उसे कम करना भी जरूरी है।
लैरी इलियट का कहना है कि शी जिनपिंग लोकतंत्र एवं नागरिक स्वतंत्रता में किसी प्रकार की ढील देते हुए नहीं दिखाई दे रहे, जिसका परिणाम यह हो सकता है कि चीन को भी सोवियत संघ वाले परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
हालांकि एक तथ्य यह भी है कि 1980 के दशक में जब सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था ढलान पर थी, तब वैश्विक अर्थव्यवस्था और ग्लोबल सप्लाई चेन में सोवियत संघ का वैसा महत्व नहीं था, जैसा वर्तमान में चीन का है।
हालांकि वैश्विक स्तर पर चीन को लेकर जिस तरह का विमर्श खड़ा हुआ है, उसने भी चीन के सप्लाई चेन को प्रभावित किया है।
कोरोना काल के दौरान चीन के द्वारा की गई गतिविधियां एवं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के रवैये ने भी वैश्विक निवेशकों को चीन से दूर किया है।
इसके अतिरिक्त शिनजियांग क्षेत्र में मानवाधिकार के उल्लंघन, जबरन मानव श्रम एवं अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले को लेकर भी वैश्विक मीडिया में चीनी कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना हुई है, जिसके बाद ऐसे आरोप लगे कि चीन जबरन मजदूरी कराकर सस्ते श्रमिक उपलब्ध करा रहा है।
इन आरोपों के बाद कई कंपनियों ने चीन के अलावा दुनिया के अन्य देशों में अपने कारखाने स्थापित करने के विकल्प भी तलाशने शुरू कर दिए हैं।
हालांकि वर्तमान में चीनी अर्थव्यवस्था बाहर से काफी मजबूत दिखाई देती है, लेकिन यह एक ऐसा गुब्बारा है, जिसके अंदर से केवल हवा भरा हुआ है और यह कभी भी फूट सकता है।