गदर 2 - भगवत गीता या कुरान शरीफ या फिर...

इंटरवल के बाद फिल्म तेजी से आगे बढती है और गंतव्य तक पहुँचती है। फिल्म के अंतिम दृश्य में तारा सिंह हाथ में तलवार लिए उसी पाकिस्तानी अधिकारी से पूछता है- भगवत गीता या कुरान शरीफ? और स्वयं के सामने सत्य को खड़े देख भय से युक्त अधिकारी कुरान शरीफ के स्थान पर भगवत गीता को चुनता है।

The Narrative World    26-Aug-2023   
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'विभाजन से उठती लपटों ने भारत के हर वर्ग को झुलसाया और उसी झुलस को नासूर बनाकर भी रखा गया। विभाजन के बाद पकिस्तान की सेना का अधिकारी गजवा ए हिन्द के सपने के साथ हाथ में तलवार लिए पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओ के सामने दो में से एक विकल्प चुनने के लिए कहता है - भगवत गीता या कुरान शरीफ। पाकिस्तानी अधिकारी की बात सुन धर्मनिष्ट हिन्दू अपने ५ साल के बेटे को भगवत गीता के पास लेटा देता और इससे नाराज पाकिस्तानी अधिकारी तलवार से उस छोटे बालक की गर्दन काट देता है।'


भय साथ भर देने वाला यह दृश्य है वर्तमान में प्रदर्शित हो रही ग़दर २ मूवी का, जिसमे बड़े ही बेहतर ढंग से विभाजन के समय पकिस्तान में बसने वाले हिन्दू सहित सभी गैर मुस्लिमो की स्थिति को बताने का प्रयास किया गया है। और यह स्थिति वर्ष 1947 से लेकर वर्तमान तक जस की तस बनी हुयी है।


विभाजन की त्रासदी में भारत के हुए हिस्सों ने सभी लोगो को अनेक दुःख दिए किन्तु एक वर्ग द्वारा पाकिस्तान के रूप में भारत के दो हिस्सों को लेने के बाद भी यह भूख शांत क्यों नहीं हुयी। यह समझ से परे या फिर यह कहा जाए कि जिस पाकिस्तान के नक़्शे का सपना दिखाकर भारत के मुस्लिमो को विभाजन के लिए तैयार किया गया था। उस स्वरुप में भारत को विभाजित नहीं किया जा सका और उसी की टीस आज तक बनी हुईं है।


बात करते है ग़दर २ की तो इसमें वर्ष २००१ में आयी 'ग़दर - एक प्रेम कथा' की कहानी को ही आगे बढ़ाया गया है। १९६२ और १९६५ के युद्ध के बाद अब १९७१ में युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है। लेकिन ग़दर २ १९७१ के युद्ध की कहानी नहीं है। और ना ही उस समय पाकिस्तान में चल क्रश इंडिया मूवमेंट की कहानी को कहती है।


जिस प्रकार से २००१ में आयी ग़दर विभाजन को दिखाने के बाद भी विभाजन की कहानी नहीं थी। वैसे ही ग़दर २ भी आगे बढती है। विभाजन की आग को अपने अंदर सुलगाए रखे पाकिस्तानी अधिकारी ने अपने चालीस जवानो की मौत का बदला लेने का संकल्प ले रखा है।


और समय के साथ घटनाक्रम आगे बढ़ता है और उस अधिकारी को अवसर मिल जाता है। तारा सिंह बने सनी देओल अब संवेदनशील पिता की भूमिका है। और जिस प्रकार हर पिता अपने बेटे को बड़ा आदमी बनते देखना चाहता है, वही चाहत तारा सिंह में भी दिखाई देती है।


उत्कर्ष शर्मा जो चरणजीत सिंह 'जीते' के रूप में परदे पर है। लड़कपन के शिकार बने नजर आते है। जिसका उद्देश्य फिल्म कलाकार बनना है। तारा सिंह अपने परिवार के साथ पठानकोट में ट्रांसपोर्ट के व्यापर में लगे है और सेना के कैंपो में सामान पहुंचाने का काम भी करते है। युद्ध की आहट है इसलिए भारतीय सेना के अधिकारी तारा सिंह से व्हीकल सपोर्ट की बात भी करते है। तारा सिंह तैयार है।


फिर कुछ ऐसा घटता है कि जीते को पाकिस्तान जाना पड़ता है और वहां उसे बंदी बना लिया जाता है और तब तारा सिंह को पता चलता है कि जीते पाकिस्तान में है। और शुरू होता है ग़दर २ का धमाकेदार सनी देओल वाला एक्शन, जिसमे भावना के साथ साथ जोश और जज़बा दोनों दिखाई देते है।


ग़दर २ को भी 90 के दशक में बनने वाली फ़िल्मी शैली में बनाया गया है, जो हमें दोबारा उसी डोर में लेकर जाती है। सनी देओल का धांसू एक्शन फिल्म को ऊपर लेकर जाता है। पिता पुत्र के बीच का प्रेम फिल्म में ऊपर उठाता और परिवार के महत्व को बतलाने का काम करता है।


इंटरवल के बाद फिल्म तेजी से आगे बढती है और गंतव्य तक पहुँचती है। फिल्म के अंतिम दृश्य में तारा सिंह हाथ में तलवार लिए उसी पाकिस्तानी अधिकारी से पूछता है- भगवत गीता या कुरान शरीफ? और स्वयं के सामने सत्य को खड़े देख भय से युक्त अधिकारी कुरान शरीफ के स्थान पर भगवत गीता को चुनता है।


यह एक दृश्य बताता है की शांति स्थापना के लिए सभी को भारत के 'स्व' के विचार को आत्मसात करना होगा। किन्तु जिस प्रकार की पीठ पर वार करने की पकिस्तान के प्रवृत्ति रही है। ऐसा ही कुछ घटता है और पाकिस्तानी अधिकारी का अंत होता है। और पिता पुत्र अपने घर लौटते है।


कुल मिलाकर कहा जाए तो 80 करोड़ के बजट में एक बेहतरीन फिल्म बनाने का एक सफल प्रयास किया गया है। जिसे दर्शक वर्ग ने हाथो हाथ लिया है। दर्शको की भीड़ जस की तस बानी हुयी है और ग़दर २ कमाई के मामले में भी उम्दा प्रदर्शन कर रही है।


आधुनिकता के साथ भावनात्मक जुड़ाव फिल्म को बेहतर बनाता है। संगीत के मामले फिल्म थोड़ी कमजोर दिखती है यदि संगीत पहले वाली ग़दर की तरह होता तो गदर २ और ग़दर मचती। फिल्म को एक बार सभी को देखना चाहिए।


लेख

सनी राजपूत

अधिवक्ता