शारदीय देवी आराधना, न्‍यायालय और हिंसा से मुक्‍ति की उम्‍मीद

इस बार यह अच्‍छा हुआ है कि कलकत्‍ता न्‍यायालय ने शारदीय नवरात्र आरंभ होने से पूर्व ही अपने निर्णय में यह स्‍पष्‍ट कर दिया कि दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने वाला एक व्यापक धर्मनिरपेक्ष माध्यम भी है। ऐसे में उम्‍मीद करें, शारदीय नवरात्र के सभी दिनों में पश्‍चिम बंगाल में न कहीं आगजनी होगी और न कहीं पत्‍थर फैंके जाएंगे।

The Narrative World    28-Aug-2023   
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कोलकाता हाईकोर्ट का शारदीय नवरात्र स्थापना स्थान को लेकर जिस प्रकार का निर्णय आया है उसने एक नई उम्मीद जगाई है। भारत जैसे सर्वपंथ सद्भाव वाले देश में अनेक घटनाएं अब तक घट चुकी हैं, जब मजहब, पंथ, रिलिजन की आड़ लेकर न जाने कितनी ही हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी जैसी वारदातें और अब तक न जाने कितने बेगुनाहों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है।


पश्चिम बंगाल जैसी सरकार जोकि कई बार अपने निर्णयों से यह साबित कर चुकी है कि उसका झुकाव एक धर्म विशेष के प्रति है। वह जब चाहती है बहुसंख्‍यक समाज के धार्म‍िक आयोजनों को होने से रोक देती है, उनके स्‍थान बदल देती है।


हाँ! जिसे छूट देनी होती है उसे छूट जरूर वह दे देती है और जिन्‍हें नहीं देनी है उसके लिए तमाम नियम आड़े आ जाते हैं। अब तक इन परिस्‍थ‍ितियों में यह कई बार हुआ है कि न्‍याय पाने के लिए बहुसंख्‍यक समाज को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी है।


इस बार यह अच्‍छा हुआ है कि कलकत्‍ता न्‍यायालय ने शारदीय नवरात्र आरंभ होने से पूर्व ही अपने निर्णय में यह स्‍पष्‍ट कर दिया कि दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने वाला एक व्यापक धर्मनिरपेक्ष माध्यम भी है। ऐसे में उम्‍मीद करें, शारदीय नवरात्र के सभी दिनों में पश्‍चिम बंगाल में न कहीं आगजनी होगी और न कहीं पत्‍थर फैंके जाएंगे।


वस्‍तुत: कलकत्ता उच्च न्यायालय में उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने एक सामुदायिक दुर्गा पूजा आयोजक की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। इसमें राज्य सरकार के स्वामित्व वाली भूमि पर पूजा आयोजित करने की अनुमति मांगी गई थी।


क्‍योंकि राज्य-नियंत्रित न्यू टाउन डेवलपमेंट अथॉरिटी के नियंत्रण वाली संपत्ति, न्यू टाउन फेयर ग्राउंड में नवरात्र पूजा आयोजित करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था।


अथॉरिटी ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत कानून का संदर्भ देकर मना किया था, जोकि सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक आयोजनों की अनुमति नहीं देता है। स्‍वभाविक है कि जब कोई रास्‍ता नहीं बचा तो जिन्‍हें मां दुर्गा की पूजा करनी है, उन्‍हें उच्च न्‍यायालय की शरण में जाना पड़ा


वस्‍तुत: यहां न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने न्यू टाउन डेवलपमेंट अथॉरिटी के इस तर्क को पूरी तरह से नकारा जोकि इस प्रकरण में संविधानिक अनुच्छेद 25 की आड़ में स्‍थान नहीं देना चाहता था।


वास्‍तव में यदि यह लागू होता तो फिर हर पार्क, सड़क, यहां तक कि अन्‍य खुले स्‍थान, मेला मैदान सभी ज्‍यादातर शासकीय अथवा अर्धशासकीय ही होते हैं, ऐसे तो धर्म एवं सामाजिक सद्भाव संबंधी आयोजन ही देश में बंद हो जाएंगे?


बड़ा प्रश्‍न है, क्‍या भारतीय संविधान यह सभी सामाजिक गतिविधियां सार्वजनिक स्‍थान के नाम पर बंद कर देने की अनुमति देता है? इसलिए इस मामले में न्यायमूर्ति भट्टाचार्य द्वारा दिया गया यह निर्णय बहुत मायने रखता है।


उन्‍होंने सीधे तौर पर कह दिया है कि दुर्गा पूजा को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन के रूप में पहचानना अनुचित होगा। दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने वाला एक व्यापक धर्मनिरपेक्ष माध्यम भी है।


न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने कहा, न्यू टाउन डेवलपमेंट अथॉरिटी अनुमति देने से मना करना उचित नहीं है, क्योंकि पूजा के लिए प्रस्तावित भूमि का भूखंड सड़क, फुटपाथ या खेल के मैदान की श्रेणी में नहीं आता है।


प्रत्येक भारतीय नागरिक को बिना हथियारों के शांतिपूर्ण सभा करने और भारतीय क्षेत्र के भीतर स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार है। इस अधिकार की गारंटी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के द्वारा देश के प्रत्‍येक नागरिक को दी गई है। इसलिए मेला मैदान में पूजा आयोजित करने की अनुमति दे दी जाती है।


सही भी है, अकेली एक ही यह पूजा न जाने कितने परिवारों के लिए वर्ष भर के रोजगार की व्‍यवस्‍था कर देती है। कितने प्रकार की भौतिक सामग्री मां भगवती के सिंगार, उनके आह्वान से लेकर विसर्जन तक लगती हैं। उनका निर्माण करने वाले लोग, संस्‍थान किसी जाति, मत, पंथ, मजहब या धर्म देखकर इन्‍हें तैयार नहीं करते और न हीं बाजार में बेचने के लिए जाते हैं।


इस एक त्‍यौहार का ही अर्थ चिंतन बहुत गहरा है जो समाज के प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को कहीं न कहीं आर्थ‍िक सबलता देता है। फिर विशेषकर दुर्गा पूजा तो प. बंगाल समेत संपूर्ण भू-भाग के लिए विशेष महत्‍व रखती है।


अच्‍छा हो कि इसकी समाप्‍ति वाले दिन रामनवमी पर कोई सांप्रदायिक घटना न घटे। हम सभी अब प्रार्थना करें कि आज आया निर्णय का सम्‍मान हम सभी सहजता से करेंगे और पूरे बंगाल में दुर्गा पूजा हर्षोल्‍लास के साथ अपने पूरे नौ दिनों में सम्‍पन्‍न होगी

लेख

डॉ मयंक चतुर्वेदी