कम्युनिस्टों की तीन प्रवृत्तियां

अब चाहे वह रूस हो, अमेरिका हो अथवा भारत हो कम्युनिज्म ने सदैव ही संस्कृति एवं परंपराओं की अवहेलना की है, ऐसे में एनईपी कम्युनिस्टों के सिद्धांतों से अलग हटती हुई दिखी इसलिए अब यहां से कम्युनिस्टों की भूमिका प्रारंभ होती है।

The Narrative World    31-Aug-2023   
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बीते कुछ वर्षों में भारत में ऐसी कईं घटनाएं हुईं जिससे कम्युनिस्टों के कार्य करने की पद्धति अथवा प्रारूप को समझा जा सकता है। समय
- समय पर कम्युनिस्टों की तीन प्रवृत्तियां उभरकर आईं हैं - पहली, मिथक गढ़ना एवं प्रसारित करना - भारत औपनिवेशकता से तो स्वतंत्र हो गया किंतु औपनिवेशक शिक्षा पद्धति व मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाया।


इतने वर्षों से भारतीय विद्यार्थियों को मैकोले पद्धति की विद्यालयीन शिक्षा दी जा रही थी ; जो कि भारतीय संस्कृति विरोधी शिक्षा थी, जिसमें आक्रांताओं का महान शासकों की तरह वर्णन एवं महिमामंडन किया गया, भारतीय शिल्पकला को औपचारिकता पूर्ण छोटा सा स्थान दिया एवं सनातन संस्कृति व परंपराओं का दुष्प्रचार किया गया एवं भारत का इतिहास तो संपूर्णत: वामपंथी इतिहासकारों (कम्युनिस्टों) की ही भेंट चढ़ गया, जिससे युवा स्वाभाविक रूप से औपनिवेशक मानसिकता का शिकार हो रहे थेकिन्तु अब नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों को वास्तविक इतिहास से अवगत कराने के एवं भारतीय संस्कृति से जोड़ने के प्रयत्न कर रही है।


अब चाहे वह रूस हो, अमेरिका हो अथवा भारत हो कम्युनिज्म ने सदैव ही संस्कृति एवं परंपराओं की अवहेलना की है, ऐसे में एनईपी कम्युनिस्टों के सिद्धांतों से अलग हटती हुई दिखी इसलिए अब यहां से कम्युनिस्टों की भूमिका प्रारंभ होती है।


चूंकि लाल आतंकियों को सदैव ही इन वामपंथी/ कम्युनिस्ट मीडिया का पुरजोर समर्थन प्राप्त हुआ है इस कारण कम्युनिस्ट मैगजीन 'सरिता' ने इस शिक्षा नीति के बारे में मिथक गढ़ने शुरू किए।


इस मैगजीन के एक लेख में लिखा है कि "असल में यह कोरी साजिश है कि छोटे शहरों और पिछड़े राज्यों के हिंदी या भाषाई मीडियम से आने वाले बच्चों को उच्च शिक्षा पाने से रोका जाए और शिक्षा को इतना महंगा कर दिया जाए कि देश में शिक्षित बेरोजगार रहें...."


सी.यू..टी. (प्रवेश परीक्षा) के बारे में यह पत्रिका कहती है कि - "अतिरिक्त परीक्षा का अर्थ है, गरीब मां - बाप पर 2 से 5 लाख रुपए का अतिरिक्त खर्च। अब विद्यार्थी 12 की परीक्षा के साथ सीयूइटी परीक्षा की भी तैयारी करनी होगी और उन पर दोहरा बोझ बनेगा।"


जबकि वास्तविकता यह है कि सी.यू..टी के अंतर्गत 12वीं कट-ऑफ-आधारित परीक्षाओं ने 12वीं कक्षा में प्राप्त सभी अंकों को महत्व दिया। साथ ही CUET के आने से अब प्रत्येक विद्यार्थी को इस सामान्य प्रवेश परीक्षा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने और सर्वोत्तम संभव विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने का उचित मौका मिल सकता है।


CUET की शुरुआत के साथ, एक छात्र अपने डोमेन विषय के आधार पर एक परीक्षा दे सकता है जिससे 12 वीं कक्षा के अन्य विषयों का वेटेज कम हो जाता है। किंतु अब एक छात्र उचित अवसर के साथ अपनी रुचि के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है।


इसके बावजूद ऐसे मुद्दों को, संघर्ष बनाए रखने हेतु,मैनिपुलेट करना एवं मिथकों का प्रसार करना कम्युनिस्टों का 'कर्तव्य' रहा है। इसी मामले में सुप्रसिद्ध पुस्तक विषैला वामपंथ के लेखक डॉ. राजीव मिश्रा जी लिखते हैं - "भ्रम फैलाना वामपंथियों का एक और हथियार है। बात कितनी भी स्पष्ट हो, वे विद्वता और कुतर्क का ऐसा गुबार खड़ा कर देंगे कि सच छुप जाए।"


वामपंथियों/कम्युनिस्टों की दूसरी प्रवृत्ति है ; दो गुटों अथवा वर्गों के बीच का संघर्ष जारी रखते हुए स्वयं को लाभान्वित करना एवं उदरभरण करना। जैसे लाल आतंकियों द्वारा हाल ही में जारी किए गए विस्तृत सीसी दस्तावेज़ के अनुसार पिछले वर्ष राजधानी में 1 वर्ष तक चले किसान - आंदोलन की सफलता (जिस आंदोलन के अंतर्गत लगाए जा रहे नारे एवं गतिविधियों को देखकर यह स्पष्ट था कि वह किसान आंदोलन से अधिक राष्ट्र विरोधी आंदोलन था) में इनका हाथ था।


दस्तावेज में दावा किया गया था कि इन्होंने ही आंदोलन को हिंसक रूप दिया। इसी प्रकार, माओवादियों ने सरकार द्वारा भारतीय सेना के हित में आई 'अग्निवीर' योजना के विरोध में घुसपैठ का भी उल्लेख किया। ऐसे संघर्ष खड़े करने में इन कम्युनिस्टों का मुख्य रूप से लाभ है विदेशी फंडिंग, साथ ही दुर्भाग्यवशपूर्ण इन्हें प्रसिद्धि भी भरपूर मिलती है, जिसे आमशब्दों में लाइमलाइट में आना कहा जा सकता है। स्वार्थ हेतु यह लाल आतंकी, देश में संघर्ष स्थापित करते हैं एवं निर्दोष जनता को अपना प्यादा बनाकर दिग्भ्रमित करते हैं। इन्हें फंडिंग स्वयं के उदरभरण हेतु तो मिलती ही है साथ साथ ऐसे दंगों को स्पॉन्सर करने के लिए भी प्राप्त होती है।


इसी संदर्भ में विषैला वामपंथ के लेखक कहते हैं - "कोई भी समीकरण हो...समाज में कहीं ना कहीं, कोई ना कोई अन्याय हो ही रहा होगा... और हर स्थिति में ये कोई ना कोई समीकरण निकाल कर एक अन्यायी वर्ग और एक एक पीड़ित वर्ग ढूंढ ही लेते हैं और अगर कहीं अन्याय आज नहीं हो रहा हो तो तीन सौ साल पहले हुआ होगा...कहीं नहीं तो किसी के मन में किसी पूर्वाग्रह के रूप में छुपा होगा... और अगर यह कहानी ठीक-ठाक नहीं बिक रही हो तो उन्हीं के बीच से एक व्यक्ति ऐसा एक काण्ड कर देगा जिसे उनके मनपसंद अन्याय के नैरेटिव में फिट किया जा सके। एक आध सवर्ण-पुरुष- बहुसंख्यक-सम्पन्न अन्यायी तो ये स्पॉन्सर कर ही सकते हैं।"


तीसरी प्रवृत्ति है - राई का पहाड़ बनाना उदाहरणार्थ कर्नाटक के हिजाब विवाद को ही ले लीजिए। यह हिजाब विवाद का आरंभ एक विद्यालय से हुआ जहां प्री यूनिवर्सिटी की छात्राओं ने कहा कि उन्हें हिजाब पहनने के कारण कक्षा में बैठने से रोका गया।

भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है यहां प्रत्येक संस्कृति का पारंपरिक परिधान है, यदि सभी संस्कृति की छात्राएं अपने पारंपरिक परिधान को धारण कर विद्यालय में आने की बात कहेंगी तो विद्यालय के गणवेश निरर्थक हो जाएगा। इसमें विवाद का कोई दूर - दूर तक विषय ही नहीं था, किंतु यदि कम्युनिस्ट ऐसी बातों का विवाद खड़ा न करें तो वे अपने आकाओं को क्या उत्तर देंगे...!!


इसलिए सम्पूर्ण कम्युनिस्ट मीडिया इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में लग गई एवं विद्यालय में हिजाब पहनकर आना किस प्रकार मुस्लिम लड़कियों के अधिकार की बात है, इस बात को संविधान के आर्टिकलस का हवाला देते हुए (जिन्हें निश्चित तौर पर अपने एजेंडे के हेतु तोड़ मरोड़कर पेश किया गया) हिजाब के समर्थन में अपने मीडिया पेज पर लेखों की लड़ी लगा दी।


इसी संदर्भ में वामपंथी/कम्युनिस्ट पेज, द क्विंट (the quint) अपने एक लेख में कहता है कि - "कर्नाटक उच्च न्यायालय के हिजाब प्रतिबंध आदेश ने मौलिक अधिकारों और अंतरिम राहत कानून की अनदेखी की है।न्यायालय न केवल मुस्लिम छात्राओं के अधिकारों की अनदेखी कर रही है, बल्कि यह पूछने में भी विफल रहती है कि राज्य हिजाब पर प्रतिबंध क्यों लगाना चाहता है।"


इस प्रकार यह कम्युनिस्ट मीडिया न केवल निरर्थक एवं अनुचित बातों का समर्थन कर संघर्ष पैदा कर रही है अपितु साथ ही में मुस्लिम तुष्टिकरण का कार्य भी 'सफलतापूर्वक' कर रही है।


ऐसे में हम देखते हैं कि कम्युनिस्ट षड्यंत्रों का एक पैटर्न है, बस उस पैटर्न को पहचानने की आवश्यकता है। इनका उद्देश्य ही है लगातार बदलाव और भ्रम की स्थिति बनाए रखना। इन भ्रमों को तथ्यों से ही तोड़ा जा सकता है।


यह कम्युनिस्ट वही आतंकी हैं जिन्होंने कभी शासन व्यवस्था को सशस्त्र क्रांति से हटाने का उद्देश्य रखा था, किंतु अब इन्होंने कम्युनिस्ट की विचारधारा का प्रसार करने के लिए वैचारिक आतंक फैलाना शुरू किया है, जिस दिन इनके विचारों को भारत के लोगों द्वारा स्वीकार्यता मिलना बंद हो जाएगी, उस दिन माओवादी, उदारता का चोंगा उतारकर अपने असली (आतंकी) स्वरूप में बाहर आ जाएंगे।