उज्जैन हो या खंडवा हो या महिदपुर हो या इंदौर हो या सहारनपुर हो या दिल्ली हो या फिर मेवात को हम आज देख सकते है कि किस प्रकार से भीडतंत्र व्यवस्था पर हावी हैं। कश्मीर और बंगाल में हुए नरसंहार को भी हम सभी भुगत चुके हैं।
इन सभी स्थानों पर एक समानता यह कि भीड़ तंत्र को हथियार बनाकर उपयोग करते हुए स्थानीय शासन प्रसाशन को आंख दिखाना और दूसरे समुदाओ को उकसाने का काम करना। उनकी नियती बन चुकी हैं।
मुहर्रम के जुलूस के बाद अनेक स्थानों से पर पत्थरबाजी और हिंसा की खबरे देखने के मिली है। और यह प्रत्येक वर्ष होता रहा है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से निकलने वाली श्रवण मास की सवारी को रोकने की धमकी देना उसी भीड़ तंत्र से निकला एक वाक्य था।
यदि उज्जैन के स्थानीय हिन्दू लोग जोरदार प्रतिक्रिया नहीं करते, तो शायद हो सकता है कि पत्थरबाजी और हिंसा की घटना उज्जैन में भी देखने के लिए मिलती।
ऐसी ही एक गंभीर घटना हरियाणा के मेवात में भी हुयी। जिसमे शोभा यात्रा में जाने वाले हिन्दुओ पर पत्थरबाजी के साथ साथ गोलीबारी और आगजनी भी हुयी और अनेको वाहनों को आज लगा दी गयी| हिंदू महिलाओं के साथ दुरव्यवहार करने का प्रयास किया गया। घटना को अनजान मुस्लिम समुदाय के द्वारा दिया गया था।
जिसके कारण मीडिया में इसकी चर्चा ना के बराबर ही हो रही, जबकि मेवात दिल्ली के नजदीक ही स्थित हैं। यदि मेवात में भी उज्जैन या मणिपुर में हिन्दुओ के द्वारा क्रिया की प्रतिक्रिया हुयी तो मामला पकिस्तान तक भी पहुंच जाता।
उज्जैन की घटना में कुछ ऐसा ही हुआ और भारत को बदनाम करने के लिए पकिस्तान के समाचार पत्र द डॉन में उज्जैन की एक कांग्रेस महिला नेता का नाम और कांग्रेस के ट्वीट के स्क्रीन शॉट के साथ खबर छापी गयी और कहा गया कि भारत में मुसलमानो पर अत्याचार हो रहे हैं| लेकिन मेवात में हुए हिंसक प्रदर्शन को लेकर कही कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दे रही है।
हर बार की तरह देश विरोधी लोग एक ही बात का रोना रो रहे है कि हिन्दुओ को मुस्लिम इलाको से निकलने की जरुरत क्यों है। ऐसे में एक प्रश्न यह उठता है कि क्या मुहर्रम में निकलने वाला जुलूस केवल मुस्लिम इलाको से निकलता है या फिर हिन्दू उन पत्थर बरसाते है।
लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है, यदि हिन्दू इलाके से मुस्लिमो का जुलुस निकले तो पत्थर खाने का काम हिन्दू करता है और मुस्लिम इलाको से हिन्दुओ की यात्री निकलती है तो भी हिन्दुओ को ही हिंसा का शिकार बनाया जाता है|
उज्जैन से लेकर मेवात तक की घटना में स्थानीय प्रशासन की उदासीनता भी एक बड़ा कारण है कि समय पर उचित बंदोबस्त और कार्यवही ना करते हुए केवल बहुसंख्यक समाज को कानून कर डर दिखाया जाता है| जबकि भीड़तंत्र के आगे प्रशासन भी घुटने टेकता नजर आता है। CAA के विरोध में हो रहे अवैध धरना प्रदर्शनों में भी हमें यह सभी कुछ देखने के लिए मिला था।
लेख
सनी राजपूत
अधिवक्ता, उज्जैन