'इथियोपिया संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य', जो इथियोपिया के नाम से जाना जाता है, वह उत्तर पूर्व अफ्रीका का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र है और अदीस अबाबा नामक शहर इसकी राजधानी है। इस इथियोपिया में भी विश्व के दूसरे हिस्सों की तरह कम्युनिज्म का प्रभाव पड़ा है, और यह इतना गहरा है कि इसके दिए हुए घाव अभी भी दिखाई देते हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाओं समेत अन्य आंतरिक घटनाओं ने इथियोपिया के समाज एवं राजनीति में गहरा प्रभाव डाला, एवं साथ ही साथ इथियोपिया की भौगोलिक सीमाओं में भी बदलाव देखे गए। इसके बाद इथियोपिया ने अपने राजनीतिक इतिहास का सबसे भयानक दौर देखा, कम्युनिस्ट सैन्य तानाशाही का।
दरसअल वर्ष 1974 के सितंबर माह में इथियोपिया के सुरक्षा अधिकारियों ने पूरी तरह से सत्ता पर अपना कब्जा जमा लिया। सशस्त्र बल, पुलिस और प्रादेशिक सेना के अधिकारियों ने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था। इस सैन्य तख्तापलट को 'डर्ग' कहा गया, जो मूल रूप से मार्क्सवाद और लेनिनवाद के विचार के साथ उपजा था।
मेंगिस्तु हेली मरियम को इस कम्युनिस्ट सैन्य तानाशाही का प्रमुख चुना गया था और उसने इस तानाशाही के खत्म होने तक (वर्ष 1987) इथियोपिया में राज किया। अपनी कम्युनिस्ट तानाशाही के दौरान मेंगिस्तु ने सभी विरोधियों को या तो जेल भिजवा दिया या मरवा दिया।
स्थितियां इतनी विपरीत हुई कि 1975-77 के दौर में इथियोपिया ने गृह युद्ध भी देखा, जिसमें बड़ी संख्या में जान-माल की हानि हुई।
हालांकि यह कम्युनिस्ट रक्तरंजित इतिहास ही है कि उसने सत्ता के अपने ही नागरिकों की बलि चढ़ाई है, चाहे वह सोवियत संघ हो या चीन, या इथियोपिया ही क्यों ना हो।
कम्युनिस्ट तानाशाही के इस दौर में आस्तिक इथियोपियाई नागरिकों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शुरू हुआ।
अपनी मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को आगे रखते हुए इथियोपिया की इस वामपंथी तानाशाही सैन्य सरकार ने 'राज्य नास्तिकता' की नीति को अपनाया, जिसके तहत पूरे देश में धर्म और धार्मिकता स जुड़े प्रतीकों को खत्म करने की मुहिम चलाई गई।
इस नीति के चलते सदियों से ईसाई समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे इथियोपियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च को भी बंद कर दिया गया। आम जनता ने कम्युनिस्ट तानाशाही सरकार के विरुद्ध विरोध करने की कोशिश की लेकिन कम्युनिस्ट सरकार ने उनके तमाम विरोधों को कुचल दिया।
इथियोपिया की कम्युनिस्ट सरकार ने जैसे ही सत्ता पर पूरा नियंत्रण स्थापित किया एवं आलोचकों पर भारी पड़ने लगे, उन्होंने सभी तरह के विरोधियों एवं विद्रोहियों के विरुद्ध जंग छेड़ दी।
इस दौरान इरिट्रिया की स्वाधीनता के लिए लड़ रहे समूह, टिग्रे में विरोध कर रहे विद्रोही और कम्युनिस्ट तानाशाही के खिलाफ अपनी मुहिम चला रहे लोग शामिल थे, जिनका इथियोपिया के तानाशाही नेता ने कत्लेआम करवाया।
1975 के मार्च महीने में इथियोपिया की इस सैन्य कम्युनिस्ट तानाशाही सरकार ने ऐसा फैसला किया, जिसने पूरी इथियोपिया की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया। जिस तरह सोवियत में कम्युनिस्ट सत्ता के दौरान कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण किया गया था, थी उसी विचार के साथ इथियोपिया में भी कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
सिर्फ कृषि का ही नहीं बल्कि उद्योग, बैंक, बीमा, व्यापक स्तर के व्यापार एवं शहरी भूमि का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। लेकिन जैसा कि हर कम्युनिस्ट शासन में होता है, वैसा ही भ्रष्टाचार, अराजकता एवं अव्यवस्था की स्थिति के कारण उत्पादकता में भारी गिरावट दर्ज की गई, और इसके बाद इथियोपिया ने 80 के दशक में भीषण अकाल देखा।
यह स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी जैसी सोवियत संघ एवं चीन में कम्युनिस्ट शासन में देखी गई, जहाँ इसी तरह के बे-सिरपैर के भूमि-कानून लाए गए और फिर उन दोनों देशों में इतना भीषण अकाल पड़ा कि लाखों लोग मारे गए एवं करोड़ों लोग प्रभावित हुए।
इथियोपिया में स्थापित इस सैन्य तानाशाही सत्ता चूंकि मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचार को मानती थी, इसीलिए तत्कालीन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार उसका हर तरह से समर्थन कर रही थी।
तानाशाही सत्ता के प्रमुख मेंगिस्तु आर्थिक एवं सैन्य उपकरणों की सहायता के लिए सोवियत संघ से मांग करते थे, जिसे सोवियत के द्वारा पूरा भी किया जाता था।
हालांकि एक दौर ऐसा भी आया भी सोवियत संघ खुद टूटने की कगार पर आ चुका था और उसने इथियोपिया के तानाशाह को सैन्य मदद देने से इंकार भी कर दिया।
यही कारण है कि मेंगिस्तु ने 1987 में सैन्य कम्युनिस्ट तानाशाही को खत्म कर संविधान को अंगीकार करने की घोषणा की, क्योंकि उसे पता था कि सोवियत संघ की सहायता के बिना इथियोपिया में उसका कम्युनिस्ट तानाशाही शासन अधिक दिनों तक नहीं चल पाएगा, क्योंकि इथियोपिया में तो उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा था, साथ ही साथ टिग्रे और इरिट्रिया के विद्रोहियों ने भी अपनी शक्ति को बढ़ा लिया था और वे सभी अब इथियोपिया की कम्युनिस्ट सत्ता पर भारी पड़ रहे थे।
इस इथियोपियाई कम्युनिस्ट तानाशाही सत्ता ने कितनों की जान ली इसके कोई आधिकारिक आँकड़े दर्ज नहीं हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि कम्युनिस्ट दमन के कारण 5 लाख से अधिक लोग केवल 1978 तक में ही मारे गए थे।
मेंगिस्तु की वामपंथी नीतियों का ही परिणाम था कि भीषण अकाल के चलते 1 लाख से अधिक इथियोपियाई नागरिक भूख की वजह से मारे गए। लाखों लोगों ने गरीबी, इनकी नीतियों, जबरन मजदूरी, जबरन जनसंख्या स्थानांतरण एवं प्रताड़ना से तंग आकर इथियोपिया से पलायन कर लिया।
1970 के दशक के अंतिम वर्षों में इथियोपिया में हूबहू सोवियत संघ के शासन की नकल की गई, उसी तरह का राजनीतिक आतंक, रेड टेरर, राष्ट्रीयकरण और ठीक उसी तरह देश की अर्थव्यवस्था को भीषण संकट में ले जाना, सबकुक वैसा ही होता गया।
सोवियत की तरह ही इथियोपियाई कम्युनिस्ट तानाशाही की रक्तपिपासा इतनी थी कि उसने सोमालिया पर भी हमला किया और इरिट्रिया के साथ तो कम्युनिस्ट शासन खत्म होते तक सशस्त्र संघर्ष चलता रहा।
1989 में सोवियत की कम्युनिस्ट सरकार ने भी इथियोपियाई कम्युनिस्ट तानाशाह को हथियार देने से मना कर दिया। वहीं इसके बाद जब मेंगिस्तु की सत्ता 1991 में खत्म हुई तब क्यूबा और सोवियत ने सभी तरह के आर्थिक और सैन्य सहयोग को रोक दिया। हालांकि यह वो दौर था जब सोवियत खुद टूटने वाला था।
1991 में कम्युनिस्ट सत्ता खत्म होने के बाद जब इसके द्वारा किए गए दुष्कृत्यों की जांच हुई तब कई तरह के खुलासे सामने आए। 1995 में एक गवाह का कहना था कि फरवरी 1977 से जून 1978 के बीच ही करीब 10,000 से अधिक राजनीतिक हत्याएं की गईं, और यह सभी हत्याएं केवल राजधानी में हुई, अन्य स्थानों की संख्या इसमें शामिल नहीं है।
हजारों की संख्या में कोर्ट ट्रायल शुरू हुए और अंततः कम्युनिस्ट तानाशाह मेंगिस्तु को अन्य 71 अधिकारियों के साथ वर्ष 2006 में नरसंहार का दोषी पाया गया।