18 सितम्बर से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। पाँच दिवसीय इस विशेष सत्र की घोषणा के साथ ही इसमें आने वाले विषयों की अटकलें और विपक्षी गठबंधन द्वारा आक्षेपों की बौछार आरंभ हो गई है। इन सबके बीच संभावना है कि इस सत्र के माध्यम से नरेंद्र मोदी सरकार कोई नया इतिहास रचने जा रही है। सबसे महत्वपूर्ण तो यही है संसद के नव निर्मित भव्य भवन में "सदन सत्र "का "श्रीगणेश" गणेशोत्सव में ही हो रहा है।
18 सितम्बर से आरंभ संसद का यह विशेष सत्र 22 सितम्बर तक चलेगा। 18 सितंबर को पहले दिन की बैठक संसद के वर्तमान संसद भवन में हुई और अगले दिन 19 सितंबर से नव निमित्त भवन में सत्र आरंभ होगा। श्री नरेंद्र मोदी ने इस भवन का लोकार्पण मई माह में किया था पर अभी तक सत्र की बैठकों का आरंभ नहीं हुआ था। अब इस विशेष सत्र द्वारा मानों नये भवन का औपचारिक शुभारंभ है।
विशेष सत्र में विचारार्थ विन्दुओं की कार्यसूची जारी न होने के कारण विचारार्थ मुद्दों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। हालाँकि महिला आरक्षण की जानकारी कुछ सूत्रों से सामने आइ है। पर इन अटकलों और विपक्ष के आक्षेपों से बहुत दूर संसदीय सचिवालय विशेष सत्र की तैयारी में जुटा है।
विशेषकर नये भवन की व्यवस्थाओं को भव्य और गरिमामय बनाया जा रहा है। इन तैयारियों से ही लगता है कि इस विशेष सत्र की कार्यवाही में कोई ऐसा विशेष कार्य अवश्य संपादित होगा जो इतिहास में सहेजने का विषय बने। इसके दो कारण हैं एक तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को अभूतपूर्व कार्यशैली के लिये जाना जाता है । और फिर इस विशेष सत्र की पृष्टभूमि में तीन ऐसी उपलब्धियाँ हैं जिनसे भारत राष्ट्र का मस्तक संसार में बहुत ऊँचा हुआ है। पहली उपलब्धि है भारत की अर्थ व्यवस्था में सुधार। पूरी दुनियाँ का जीडीपी गिर रहा है वहीं भारत की जीडीपी में वृद्धि हुई है ।
दूसरा भारत के चन्द्र और सूर्य अभियान की सफलता एवं तीसरा जी-20 देशों के सम्मेलन की सफलता। वस्तुतः पिछले दिनों रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत की भूमिका तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बनाने के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति वायडेन का झुककर भारत की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाना आदि ऐसे विन्दु हैं जिसने भविष्य में भारत की प्रतिष्ठा उन्नयन का मार्ग प्रशस्त किया है। भारतीय गौरव की इस अंगड़ाई के बीच आयोजित इस विशेष सम्मेलन के प्रति जन सामान्य की उत्सुकता बढ़ी है। और यह माना जा रहा है कि इस विशेष सत्र में कुछ विशेष अवश्य होगा । चूँकि इससे पहले भी जब संसद के विशेष सत्र आयोजित हुये वे सब विशेष उद्देश्य केलिये ही बुलाये गये थे।
अब तक कुल छै अवसरों पर संसद के विशेष सत्र बुलाये गये हैं। इतिहास में सबसे पहली बार 1972 में संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था। यह पहला विशेष सत्र स्वतंत्रता के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर "स्वतंत्रता के रजत जयंती" उत्सव के अंतर्गत आयोजित हुआ था। वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने भी जून 2017 में संसद का विशेष सत्र बुला चुके हैं। वह सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (GST) कानून पारित करने के लिये बुलाया गया था। वह विशेष बैठक संसद के सेंट्रल हॉल में हुई थी । वह लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्यों का संयुक्त सत्र था।
एक बार जुलाई 2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने विशेष सत्र आमंत्रित किया था। वह विशेष सत्र वाम दलों द्वारा तत्कालीन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद विश्वास मत प्राप्त करने के लिए बुलाया गया था। श्री अटल बिहारी बाजपेई के शासन काल में भारत की स्वतंत्रता के पचास वर्ष पूरे होने पर अगस्त 1997 में छह दिनों का विशेष सत्र बुलाया गया था।
अगस्त 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन के पचास वर्ष पूरे होने पर 9 अगस्त की मध्य रात्रि को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था। 3 जून 1991 को हरियाणा प्राँत में राष्ट्रपति शासन लगाने की स्वीकृति के लिए भी संसद का विशेष आयोजित हुआ था। 1977 में तमिलनाडु और नागालैंड में राष्ट्रपति शासन के विस्तार की अनुमति लेने के लिए राज्यसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था । इसलिये विशेष सत्र बुलाने में नया कुछ नहीं है। जन सामान्य की जिज्ञासा उस कार्रवाई के प्रति है जो इस विशेष सत्र में होने वाली है ।
संभावित विन्दु
यह पाँच दिन का गणेशोत्सव के अंतर्गत आयोजित हो रहा है इसलिए इसमें कुछ अति विशेष होने की संभावना व्यक्त की जा रही है । सबसे महत्वपूर्ण तो इस सत्र आयोजन की तिथियाँ ही हैं। ये गणेशोत्सव के दिन हैं। भारतीय परंपरा में कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व गणोजी का पूजन होता है। भले भारत की प्रशासनिक धारा में अभी भी अंग्रेजियत मौजूद है पर भारतीय जनमानस में कार्य शुभारंभ के देवता गणेशजी ही हैं। भारतीय परंपराओं के अनुरूप ही शासन प्रशासन चलाने का संदेश संविधान निर्माताओं ने भी दिया था। जो हमारे संविधान में दर्शाये गये प्रतीकों से बहुत स्पष्ट रूप से झलकता है पर राजनैतिक उतार चढ़ाव के चलते भले वे प्रतीक केवल संविधान की शोभा ही रह गये हैं।
पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलग धारा के व्यक्तित्व हैं। उनका प्रत्येक कदम और निर्णय भारतीय संस्कृति और परंपराओ के पालन से ही होता है। इसका संकेत उन्होंने ने संसद की सीढ़ियों पर पहले दिन ही दे दिया था। जिस प्रकार उन्होंने संसद भवन में प्रवेश से पहले सीढ़ियों को प्रणाम किया था उससे उनकी कार्यशैली का संकेत मिल गया था। और उसी के अनुरूप नये संसद भवन का लोकार्पण पवित्र सेंगौल की स्थापना करके और साष्टांग दंडवत किया था । अब इसी परंपरा के एक कदम आगे नये भवन में सत्र का शुभारंभ गणेशोत्सव में किया जा रहा है निसंदेह यह भारत के संसदीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा।
इस विशेषता के साथ कुछ विशिष्ट मुद्दे भी हैं जिनपर चर्चा हो सकती है । इनमें देश का आधिकारिक नाम "इंडिया देट इज भारत" के बजाय केवल "भारत" होना, सभी नागरिकों के लिये "समान नागरिक आचार संहिता" का प्रावधान, सभी चुनावों को एक साथ करने केलिये "एक देश एक चुनाव" प्रावधान और महिला आरक्षण विधेयक पर भी चर्चा होना संभावित है । फिर भी यह संभावना प्रबल है कि नये भवन में भारतीय संसद चंद्र और सूर्य अभियान की सफलता पर वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया जाये।
चन्द्रयान और सूर्य अभियान की सफलता एवं जी-20 देशों के सफल समागम की पृष्ठभूमि में नये संसद भवन में आयोजित इस विशेष सत्र में क्या विशेष होगा यह तो समय के साथ ही स्पष्ट हो सकेगा । पर इतना निश्चित है इसकी कार्यवाही भी ऐतिहासिक होगी और भारत की प्रगति एवं प्रतिष्ठा वृद्धि में सहायक होगा।
लेख
रमेश शर्मा