चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके प्रमुखों ने करोड़ों बेगुनाहों का नरसंहार किया है, चीन में हुए नरसंहारों की कहानियाँ सुनकर आज भी ऐसा लगता है कि क्या कभी ऐसा हुआ होगा कि किसी देश ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अपने ही देश के लाखों नागरिकों को मौत के घाट उतरने पर मजबूर कर दिया हो.
दरअसल, चीन हमेशा से ही तानाशाही रवैये के लिए जाना जाता रहा है अपनी विस्तारवादी नीति, आर्थिक सम्पन्नता और हथियारों को दौड़ में कम्युनिस्ट ड्रैगन हमेशा ही खुद को आगे करने का प्रयास करता रहा है चाहे इसके लिए उसे कुछ भी क्यों न करना पड़े.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके तानाशाहों की सनक के विषय में एक खुलासा यह भी हुआ था, जिसमें मशहूर पत्रिका 'द नेशनल इंटरेस्ट' ने बताया था कि चीन द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों से एक लाख चौरानवे हजार (194000) चीनी नागरिक मारे गए थे जबकि 10 लाख से अधिक लोग कई घातक बीमारियों से पीड़ित हो गए थे.
द नेशनल इंटरेस्ट पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पीटर सुसीउ ने कहा था कि, "रेडिएशन एक्सपोजर (विकिरण) से 194,000 लोग मारे गए हैं जबकि लगभग 10 लाख से अधिक लोगों को इस रेडिएशन एक्सपोजर (विकिरण) से ल्यूकेमिया और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के जोखिम का अनुमान है. दुनिया की पांचवीं परमाणु शक्ति बनने के बाद जून 1967 में अपने पहले परमाणु परीक्षण के ठीक 32 महीनों के बाद चीन ने अपना पहला थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण किया."
पीटर सुसीउ ने आगे बताया है कि, "इस परमाणु परीक्षण से 3.3 मेगाटन की ऊर्जा उतपन्न हुई, जो अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से भी 200 गुना अधिक थी."
उल्लेखनीय है कि, सुसीउ ने यह भी कहा कि, "इस पर अभी बड़े पैमाने पर अध्ययन नहीं किया गया है, जिसके कारण फिलहाल आधिकारिक आंकड़ों में कमी है. झिंजियांग क्षेत्र जहां लगभग 2 करोड़ लोग रहते हैं, यहां रेडिएशन ने बुरी तरह से लोगों को प्रभावित किया, हालांकि अभी यह कहना आसान नही होगा कि रेडिएशन ने इस क्षेत्र की जनसंख्या को कैसे प्रभावित किया है."
द नेशनल इंटरेस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, एक जापानी शोधकर्ता ने रेडिएशन के लेवल का अध्ययन किया, उन्होंने सुझाव दिया था कि शिनजियांग में पीक रेडिएशन डोज 1986 के बाद चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर की छत पर मापी गई मात्रा से अधिक है.
ज्ञात हो कि, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1964 में लोप नू–प्रोजेक्ट 596 में अपना पहला परमाणु बम परीक्षण किया था, जिसे अमेरिकी इंटेलिजेंस कम्युनिटी द्वारा दिए गए कोड वर्ड 'Chic-1' के नाम से जाना जाता है, इसके बाद चीन ने कई वायुमंडलीय परीक्षण किए, जिनमें से आखिरी, जो दुनिया में अंतिम वायुमंडलीय परीक्षण भी था।
वह 16 अक्टूबर 1980 को लोप नूर के एरिया 'डी' में हुआ था. यह परीक्षण पहले परीक्षण के सोलह साल बाद किया गया था, इसके बाद, 1996 में संपन्न व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि के कारण सभी परमाणु परीक्षण भूमिगत रूप से ही किए गए हैं.