नरेंद्र मोदी की कूटनीति से ही होगा गिलगित-पीओजेके का मिलन एवं CPEC का हल

पाकिस्तान ने 1947 से गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पी.ओ.के. पर अवैध कब्जा कर रखा है। हास्यास्पद बात तो यह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर तो कबायलियों ने हमला कर कब्जा किया था, किन्तु गिलगित - बाल्टिस्तान तो वैसे ही हमारे हाथ से निकल गया।

The Narrative World    21-Sep-2023   
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आईये जानते हैं कि गिलगित का सामरिक महत्व क्या है
? क्यों पी..के.हर हाल में हमें चाहिए? क्या सीपेक (चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर) का उद्देश्य केवल आर्थिक है? यदि हम सतर्क नहीं हुए तो होगी अपूरणीय क्षति? क्या है यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति और रणनीति? भारत जी - 20 की बैठक की सफलता से क्या इस संदर्भ में लाभ उठाएगा?


यद्यपि प्राचीन भारतवर्ष (जम्बूद्वीप) 15 देशों का समुच्चय था, जिसे पुनः प्राप्त करने का सपना एवं संकल्प हम सभी का है, परंतु आधुनिक भारत के वर्तमान परिदृश्य को लेकर यह विमर्श है।


यह अत्यंत खेदजनक रहा कि सन् 1947-48 के मध्य प्रथम भारत- पाकिस्तान युद्ध में भारत विजयी हुआ परंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और उनकी सरकार की विफलता के कारण कश्मीर के एक भाग पर पाकिस्तान का गैरकानूनी कब्जा स्वीकार कर लिया गया और कश्मीर समस्या ने जन्म लिया।


इतना ही नहीं भारत अधिकृत कश्मीर को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत पृथक राज्य का दर्जा देकर समस्या को और भी जटिल बना दिया गया था।


भारत में कश्मीर की जटिल समस्या के हल का श्रेय यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी भाजपा सरकार को जाता है, जिन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के बलिदान और सपने को साकार करते हुए अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया।


मोदी जी ने सोच समझ कर लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया था - जिस कारण पकिस्तान भी बौखला गया था और आज तक मिर्गी के दौरे पड़ रहे हैं।


आपको स्मरण हो कि जैसे ही मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख को पृथक - पृथक केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा की, वैसे ही रोते हुए फारुख अब्दुल्ला सामने आये और बोले - जिस्म से रूह को अलग किया जा रहा है | ऐसा क्यों कहा फारुख अब्दुल्ला ने ?


दरअसल वे इसका कूटनीतिक महत्व जानते हैं। आईये थोड़ा विस्तार से इसको देखते हैं।


वास्तव में जम्मू-कश्मीर का उतना सामरिक महत्व जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं है, जितना गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण है।


गिलगित जो अभी पी..के. में है विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है अफगानिस्तान, तजाकिस्तान (जो कभी रुस का हिस्सा था ), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत -चीन।


भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक, हूण, कुषाण, मुग़ल) वह सारे गिलगित से हुए। किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना बेस गिलगित में बनाना चाहता था, रूस भी गिलगित में बैठना चाहता था, यहां तक कि पाकिस्तान ने तो 1965 में गिलगित रूस को देने का वादा तक कर लिया था। आज चीन गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर वहाँ तक पसार भी चुका है।



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भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए। क्या आपको पता है गिलगित से सड़क मार्ग द्वारा आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं।


गिलगित से दुबई, रूस, सेन्ट्रल एशिया, लंदन यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह जा सकते हैं। आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे वहां बड़ी-बड़ी यूरेनियम और सोने की खदाने हैं, और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग जबरदस्त पाकिस्तान के विरोधी हैं।


जम्मू कश्मीर का कुल क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है, उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है, जबकि 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है और उसी का एक हिस्सा है गिलगित-बाल्टिस्तान। यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था, वास्तव में सच्चाई यही है।


प्रधानमंत्री मोदी यह बात जानते हैं और देश को भी जानना चाहिए कि स्वयं ब्रिटिश संसद ने मार्च 2017 में एक प्रस्ताव पारित कर गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान के कब्जे को अवैध बताया है।


पाकिस्तान ने 1947 से गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पी..के. पर अवैध कब्जा कर रखा है। हास्यास्पद बात तो यह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर तो कबायलियों ने हमला कर कब्जा किया था, किन्तु गिलगित - बाल्टिस्तान तो वैसे ही हमारे हाथ से निकल गया।


सन् 1947 में विभाजन के समय यह क्षेत्र जम्मू एवं कश्मीर की तरह न तो भारत का हिस्सा था और न ही पाकिस्तान का। सन् 1935 में ब्रिटेन ने इस हिस्से को गिलगित एजेंसी को 60 साल के लिए लीज पर दिया था, लेकिन इस लीज को एक अगस्त 1947 को रद्द करके क्षेत्र को जम्मू एवं कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया गया। संभवतः अब स्पष्ट हो रहा होगा कि लद्दाख को जम्मू कश्मीर से पृथक क्यों किया गया है।


पाकिस्तान में भी गिलगित-बाल्टिस्तान, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर राज्य का भाग नहीं है, बल्कि वह सीधे तौर पर पाकिस्तान की केंद्र सरकार के ही अधीन है।


अतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यही स्वर गुंजाने वाले हैं कि कश्मीर विवादास्पद हो सकता है, लेकिन गिलगित-बाल्टिस्तान तो निर्विवाद रूप से भारत का ही भाग है और उस पर से पाकिस्तान को कब्ज़ा छोड़ना चाहिए। वहां के लोग भी यही चाहते हैं। तो अब्दुल्ला का रोना समझ में आता है।


गिलगित-बाल्टिस्तान के बारे में कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ यह हैं कि गिलगित -बाल्टिस्तान, लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है।


भारत में आयोजित एक संगोष्ठी में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि ["we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT"] उसने दुःख जताया कि दुर्भाग्य से हमारा देश हमारी बात ही नहीं जानता। गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका उल्लेख तक नहीं आता है।


गिलगित- बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाक विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिए। क्योंकि सबसे बड़ी बात यह कि वे भारत को ही अपना देश मानते हैं। विमर्श में ज्ञान कुमार का आभार है।


चीन गिलगित बाल्टिस्तान का महत्व भलीभाँति जानता है, उधर पाकिस्तान भी पी..के. अपने हाथों से नहीं निकलने देना चाहता है, इसलिए चीन के सामने शरणागत होकर, ग्वादर पोर्ट देकर सीपेक (चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर - चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) बनाने के लिए सहमत है, जो ग्वादर से काशकर को जोड़ेगा (2442 किलोमीटर)


इसका उद्देश्य तेल गैस सहित अन्य साम्रगी की आपूर्ति है परंतु इसकी आड़ में वास्तविक उद्देश्य है गिलगित - बाल्टिस्तान को हथियाना! इसलिए इस गंभीर विषय पर न केवल विचार - विमर्श वरन् लोक व्यापीकरण आवश्यक है, ताकि किसी भी प्रकार परिस्थितियों में हम तैयार रहें।


भारत ने जी - 20 की बैठक आयोजित कर विश्व राजनीति में शीर्ष स्थान प्राप्त कर लिया है और यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व में सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रुप में स्थापित हो गए हैं। अतः अब समय आ गया है कि गिलगित - पी. . के. का भारत में मिलन हो और सीपेक समस्या का समाधान हो।

लेख

डॉ. आनंद सिंह राणा
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय
इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत