हाल ही में कनाडा के द्वारा उकसाए जाने वाले कृत्यों के बाद भारत ने कनाडाई सरकार को मुँहतोड़ जवाब दिया है। जिस प्रकार से कनाडाई प्रधानमंत्री ने प्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद करने वाले समूह और व्यक्तियों का समर्थन किया है, उसने लम्बे समय से चली आ रही "खालिस्तानी बहस" को एक नया रूप दिया है।
स्थिति ऐसी है कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्तानियों की कठपुतली बन गए हैं और यह बात कनाडा के लोग ही कह रहे हैं। कनाडा के अखबार, कनाडा के विपक्षी नेता इसी बात पर जस्टिन ट्रूडो को घेर रहे हैं।
दरअसल इस समस्या की जड़ में कनाडा की हंग असेंबली है। 2021 में जब आम चुनाव हुए थे, तब जस्टिन ट्रूडो कि लिबरल पार्टी को 160 सीट मिली थी। इसी तरह से मुख्य विपक्षी दल कंजरवेटिव पार्टी को 110 सीट मिली और जगमीत सिंह की पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक को मिली 25 सीट।
कनाडा में कुल 348 सीटें हैं, इसीलिए सरकार बनाने के लिए 175 सीटें चाहिए। चूँकि जस्टिन ट्रूडो के पास लगभग 15 सीटें कम थी, इसीलिए उन्होंने जगमीत सिंह की पार्टी के 25 सांसदों का समर्थन लिया और अब खालिस्तान विचारधारा का जगमीत सिंह जस्टिन ट्रूडो से वही सब करवा रहा है, जो वह चाहता है।
कई लोग यह दावा भी कर रहे हैं कि जस्टिन ट्रूडो का विमान दिल्ली में इसलिए नहीं रुका था, क्योंकि उनके विमान में कोई खराबी थी। बल्कि उनके विमान में कोई आपत्तिजनक या संदिग्ध वस्तु बरामद हुए और इसीलिए उनके विमान को रोका गया।
हालाँकि जो भी हुआ हो, लेकिन इससे जस्टिन ट्रूडो की बहुत बदनामी हुई और इसीलिए अपनी बदनामी का बदला लेने के लिए उन्होंने भारत के खिलाफ अनर्गल बयान दिया।
पूरे प्रकरण में प्रेरणा लेने वाली बात यह है कि कनाडा में सिखों की आबादी लगभग आठ लाख है और वह सिर्फ 2.1 प्रतिशत हैं, लेकिन इसके बाद भी सिखों ने अपनी एक पार्टी बनाई।
इसके बाद इस न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने 25 सांसद जीत लिए। जगमीत सिंह भले ही खालिस्तान विचारधारा का है, लेकिन उसने जिस तरह ग्राउंड पर मेहनत करके 25 सीट कनाडा में जीत ली, ये कामयाबी कैसे हासिल की, इस पर रिसर्च होनी चाहिए।
दुनिया में कनाडा, सिखों का एक घर जैसा होने लगा है ।भारत के अंदर सिखों की आबादी 1.79% है और कनाडा में सिखों की आबादी 2.1% है। कनाडा और पंजाब के बीच एक रिश्ता सा बनता जा रहा है और इसी रिश्ते को खुफिया नजरों से देखना बहुत जरूरी है।
कनाडा और भारत के अंदर भी अधिकांश सिख भारत से प्यार करते हैं और भारत का बुरा नहीं चाहते हैं। लेकिन जगमीत सिंह जैसे कुछ गद्दार और राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सीखने वाले लोग खालिस्तान का मुद्दा उठाते हैं।
कंजरवेटिव पार्टी कनाडा की राष्ट्रवादी पार्टी है और अब वह खालिस्तान के मुद्दे को बहुत जोर शोर से उठाने जा रही है। कनाडा के अंदर अब खालिस्तान विरोधी भावनाएं भड़की भड़केंगी और इसीलिए अब अगला चुनाव जीतना जस्टिन ट्रूडो के लिए बहुत मुश्किल है। हाल ही में भी एक सर्वे में यह सामने आया है कि वह 55 सालों में सबसे कम लोकप्रिय प्रधानमंत्री साबित हुए हैं।