भारत का मिशन शुक्र अब जल्‍द सामने आ रहा, शुक्र पर भारतीय उपग्रह पहुंचाने की तैयारियां हुईं पूरी

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इनसा) के तत्वावधान में एक व्याख्यान देकर सोमनाथ ने कहा कि एजेंसी शुक्र ग्रह (वीनस) के अध्ययन के लिए एक मिशन भेजने और अंतरिक्ष के जलवायु तथा पृथ्वी पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए दो उपग्रह भेजने की योजना भी बना रही है।

The Narrative World    30-Sep-2023   
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चंद्रयान मिशन की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उन तारों के रहस्य सामने लाने की योजना बनाई है जिन पर पर्यावरण होने की बात कही जाती है या जो सौरमंडल से बाहर स्थित हैं। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने इसकी जानकारी दी।


भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इनसा) के तत्वावधान में एक व्याख्यान देकर सोमनाथ ने कहा कि एजेंसी शुक्र ग्रह (वीनस) के अध्ययन के लिए एक मिशन भेजने और अंतरिक्ष के जलवायु तथा पृथ्वी पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए दो उपग्रह भेजने की योजना भी बना रही है।


एक्सोव‌र्ल्ड्स मिशन को लेकर भी कर रहा भारत विचार


एस सोमनाथ का कहना है कि एक्सपोसैट या एक्स-रे पोलरीमीटर सैटेलाइट इस साल दिसंबर में प्रक्षेपण के लिए तैयार है जो समाप्त होने की प्रक्रिया से गुजर रहे तारों का अध्ययन करने के लिए है।


सोमनाथ के मुताबिक, हम एक्सोवर्ल्ड्स नामक एक उपग्रह की अवधारणा पर भी विचार कर रहे हैं जो हमारे सौरमंडल से बाहर के ग्रहों और अन्य तारों का चक्कर लगा रहे ग्रहों का अध्ययन करेगा। उन्होंने कहा कि सौरमंडल के बाहर 5,000 से अधिक ज्ञात ग्रह हैं जिनमें से कम से कम 100 पर पर्यावरण होने की बात मानी जाती है।


एक्सोव‌र्ल्ड्स मिशन के तहत बाहरी ग्रहों के वातावरण का अध्ययन किया जाएगा। वहीं, इसरो के एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि शुक्रयान मिशन में देरी हो सकती है। इसरो की तरफ से तैयारी पूरी की जा चुकी है, लेकिन सरकार से ऑफिशियल परमिशन अभी तक नहीं मिली है, जैसे यह मिलती है, आप देखेंगे कि भारत के उपग्रह शुक्र पर नजर आएंगे।


शुक्र आता है 19 माह में एक बार पृथ्वी के सबसे निकट


दरअसल, इसरो ने मूल रूप से वर्ष 2023 के मध्य में शुक्रयान-1 लॉन्च करने की योजना बनाई थी, लेकिन कोविड-19 महामारी ने तारीख को दिसंबर 2024 तक बढ़ा दिया गया था।


शुक्र ग्रह प्रत्येक 19 माह में एक बार पृथ्वी के सबसे निकट होता है जो मिशन के लॉन्च के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है, यही कारण है कि यदि वह वर्ष 2024 का अवसर चूक जाता है तो इसरो के पास वर्ष 2026 और 2028 में 'बैकअप' लॉन्च का समय भी मौजूद है।


लेकिन और भी उपयुक्त समय जो लिफ्ट ऑफ पर आवश्यक ईंधन की मात्रा को कम करता है, प्रत्येक आठ वर्ष में आता है। वर्ष 2031 को विशेषज्ञों द्वारा बहुत उपयुक्त लॉन्च समय माना जा रहा है।


ये है शुक्रयान-1 मिशन की गहराइयां


उल्‍लेखनीय है कि शुक्रयान-1 एक ऑर्बिटर मिशन होगा। इसके वैज्ञानिक पेलोड में वर्तमान में एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) और एक ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार शामिल हैं। एसएआर ग्रह के चारों ओर बादलों (जो दृश्यता को कम करट हैं) के बावजूद शुक्र की सतह की जांच करेगा। यह उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों को प्राप्त करने हेतु एक तकनीक को संदर्भित करता है।


यह रडार सटीकता के कारण बादलों और अँधेरे में भी प्रवेश कर सकता है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी मौसम में दिन और रात डेटा एकत्र कर सकता है। मिशन में शुक्र ग्रह की भू-वैज्ञानिक और ज्वालामुखीय गतिविधि, ज़मीन पर उत्सर्जन, हवा की गति, बादल कवर और अंडाकार कक्षा से अन्य ग्रहों की विशेषताओं का अध्ययन करने की उम्मीद है।


इसका मुख्‍य उद्देश्य ही यह है कि सतह प्रक्रिया और उथले उपसतह स्ट्रैटिग्राफी की जाँच अभी तक शुक्र की उपसतह का कोई पूर्व अवलोकन नहीं किया गया है, संभव हो सके। स्ट्रैटिग्राफी भूविज्ञान की एक शाखा है जिसमें चट्टान की परतों का अध्ययन किया जाता है। वायुमंडल की संरचना, और गतिशीलता का अध्ययन। शुक्र आयनमंडल के साथ सौर पवन संपर्क की जाँच का सही पता लगाया जाए।


ये है इस शोध का मानव जीवन के लिए खास महत्‍व

इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि पृथ्वी जैसे ग्रह कैसे विकसित होते हैं और पृथ्वी के आकार के एक्सोप्लैनेट (ग्रह जो हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा करते हैं) पर क्या परिस्थितियाँ मौजूद हैं। यह पृथ्वी की जलवायु के प्रतिरूपण में मदद करेगा तथा सावधानीपूर्वक इस प्रकार कार्य करता है कि कैसे एक ग्रह की जलवायु नाटकीय रूप से बदल सकती है।


आपको बतादें कि शुक्र सूर्य से दूरी के हिसाब से यह दूसरा तथा द्रव्यमान और आकार में छठा बड़ा ग्रह है। यह चंद्रमा के बाद रात के समय आकाश में दूसरा सबसे चमकीला प्राकृतिक ग्रह है, शायद यही कारण है कि यह पहला ग्रह था जिसे दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व आकाश में अपनी गति के कारण जाना गया।


हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत शुक्र और यूरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त घूमते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के कारण यह सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है जो एक तीव्र ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करता है।


शुक्र का हर दिन है इतना विशेष


शुक्र ग्रह पर एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष से ज़्यादा लंबा होता है। सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने की तुलना में शुक्र को अपनी धुरी पर घूर्णन में अधिक समय लगता है। सौरमंडल में किसी भी ग्रह के एक बार घूर्णन में 243 पृथ्वी दिवस और सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने हेतु 224.7 पृथ्वी दिवस लगते हैं।


शुक्र को उसके द्रव्यमान, आकार और घनत्व तथा सौरमंडल में उसके समान सापेक्ष स्थानों में समानता के कारण पृथ्वी की जुडवाँ बहन कहा गया है। पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह शुक्र है; साथ ही यह चंद्रमा के अलावा पृथ्वी का सबसे निकटतम बड़ा पिंड है। शुक्र का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी से 90 गुना अधिक है।


शुक्र पर पहले भेजे गए मिशन ये रहे


इसरो ने अभी अपने शुक्र मिशन को पूरा करने की तैयारी की है, आपको बतादें कि सबसे पहले अमेरिका ने यहां अपने मिशन की शुरूआत की थी। शुक्र पर अमेरिका मेरिनर शृंखला वर्ष 1962-1974, वर्ष 1978 में पायनियर वीनस-1 और पायनियर वीनस- 2, वर्ष 1989 में मैगेलन कर चुका है।


इसी प्रकार से रूस द्वारा वेनेरा की अंतरिक्षयान शृंखला वर्ष 1967-1983, वर्ष 1985 में वेगास-1 और वेगास-2 सम्‍पन्‍न की गईं। जापान का नाम भी इसके साथ जोड़ा जा सकता है जिसने वर्ष 2015 में अकात्सुकी योजना को आगे बढ़ाया और इसी तारतम्‍य में युरोप की ओर से संयुक्‍त रूप से वर्ष 2005 में वीनस एक्सप्रेस का प्रयोग शुक्र को जानने के लिए किया जा चुका है।

लेख


डॉ. मयंक चतुर्वेदी