11 जनवरी, 1966: भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु

अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान शास्त्री जी ने दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए श्वेत क्रांति अभियान समेत किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाईं। शास्त्री जी भविष्यदृष्टा थे, वे जानते थे कि भारत के लिए सर्वप्रथम वरीयता आत्मनिर्भरता को देनी चाहिए इसलिए उन्होंने इस से संबंधित नए उपक्रमों को क्रियान्वित किया।

The Narrative World    11-Jan-2024   
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रहस्यमई परिस्थितियों में हुई इस संदिग्ध मौत के उपरांत जब भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो उनका शरीर नीला पड़ा हुआ था उनके शरीर पर कई स्थानों पर चकत्ते के दाग थे एवं कई स्थानों पर प्रत्यक्ष रूप से कटे के निशान देखे जा सकते थे।


10 जनवरी वर्ष 1966 की रात, भारतीय इतिहास के लिए एक काली रात साबित हुई थी, जब देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हत्या कर दी गई। शास्त्री जी वहां भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1965 के युद्ध में भारत की विजय के उपरांत समझौते के लिए ताशकंद गए थे।


मूल रूप से वाराणसी के समीप पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर के रहने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बेहद ही सरल स्वभाव के थे और सादा जीवन जीते थे। उनकी सरलता इसी बात से समझी जा सकती है कि प्रधानमंत्री बनने के उपरांत भी उन्होंने अपने लिए निजी गाड़ी नहीं रखी और प्रधानमंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान अपने निवास स्थान '7लोक कल्याण मार्ग' पर स्वयं खेती किया करते थे।


अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान शास्त्री जी ने दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए श्वेत क्रांति अभियान समेत किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाईं। शास्त्री जी भविष्यदृष्टा थे, वे जानते थे कि भारत के लिए सर्वप्रथम वरीयता आत्मनिर्भरता को देनी चाहिए इसलिए उन्होंने इस से संबंधित नए उपक्रमों को क्रियान्वित किया।


हालांकि अभी शास्त्री जी को प्रधानमंत्री पद संभाले हुए एक वर्ष ही हुआ था कि इस दौरान पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। अपने सरल स्वभाव और सहज आचरण के लिये पहचाने जाने वाले शास्त्री जी ने युद्ध की परिस्थितियों में "जय जवान जय किसान" जैसा जनमानस को प्रेरित करने वाला उद्धघोष दिया जो आज भी देश मे खूब प्रचलित है।


युद्ध की परिस्थितियों में सहज और सरल आचरण रखने वाले शास्त्री जी ने दृढ़तापूर्वक देश का नेतृत्व किया, जिसमें अन्तोगत्वा भारत की विजय हुई। हालांकि युद्ध के उपरांत पाकिस्तान के तत्कालीन सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका के संभावित हस्तक्षेप को देखते हुए तत्कालीन वैश्विक शक्ति सोवियत संघ द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया गया, जिस दौरान उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुखों की भेंट हुई।


इस वार्ता में लाल बहादुर शास्त्री ने उदार हृदय का परिचय देते हुए ऐसे कई पाकिस्तानी प्रांतों को पाकिस्तान को लौटाया जिस पर युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने कब्जा जमाया हुआ था।


10 जनवरी वर्ष 1966 को हुए समझौते के उपरांत प्रधानमंत्री को वापस भारत आना था हालांकि इसी दौरान 11 जनवरी की रात को ताशकंद में ही भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई।


अपनी मृत्यु से पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी बेटी से हुई आखरी बातचीत में कहा था कि "मैंने भोजन कर लिया है और मैं अब विश्राम करने जा रहा हूं।"


उनकी मृत्यु के उपरांत आधिकारिक रूप से रूसी सरकार द्वारा यह कहा गया कि उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी जिसे बाद में भारत की सरकार ने भी अपना आधिकारिक पक्ष बनाया, जबकि शास्त्री जी के निजी चिकित्सक आर.एन चुग ने सार्वजनिक रूप से ये जानकारी दी थी कि उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी।


रहस्यमई परिस्थितियों में हुई इस संदिग्ध मृत्यु के उपरांत जब प्रधानमंत्री शास्त्री जी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो उनका शरीर नीला पड़ा हुआ था, उनके शरीर पर कई स्थानों पर चकत्ते के दाग थे एवं कई स्थानों पर प्रत्यक्ष रूप से कटे के निशान देखे जा सकते थे।


उनके पार्थिव शरीर को देखकर ऐसा प्रत्यक्ष रूप से प्रतीत हो रहा था कि उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से नहीं अपितु संभावित रूप से जहर देने के कारण हुई थी, बावजूद इसके भारत की तत्कालीन सरकार ने इस विषय में कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं की और उनका भारत आने के उपरांत दोबारा पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया।


शास्त्री जी की मौत जहर से होने के पीछे एक आशंका यह भी जताई जाती रही है कि मृत्यु की रात उनका भोजन उनके रसोइए रामनाथ के बजाय सोवियत संघ में भारतीय राजदूत टीएन कॉल के रसोइए जान मोहम्मद द्वारा बनाया गया था।


उनकी रहस्यमई मृत्यु को लेकर संदेह इसलिए भी गहराता है कि शास्त्री जी के निजी चिकित्सक आर.एन. चुग एवं उनके रसोइए की जनता के भारी दबाव में सरकार द्वारा गठित की गई जांच समिति के समक्ष प्रस्तुत होने से पूर्व ही दुर्घटना में मौत हो गई थी।


आशंका है कि इन दोनों को ही षड्यंत्र के तहत दुर्घटनाओं में मारा गया था। रसोईए रामनाथ के विषय में यह संदेह इसलिए भी और गहरा होता है क्योंकि समिति के समक्ष प्रस्तुत होने के पूर्व उन्होंने कहा था कि "मैं अपने दिल पे एक बोझ ले के जी रहा हूँ, जिसे मैं देश के सामने लाना चाहता हूं।"


दरअसल इसमें कोई संदेह नहीं कि लाल बहादुर शास्त्री की लोकप्रियता से पार्टी के भीतर उनके कई विरोधी थे जिन्हें शास्त्री जी के उपरांत प्रधानमंत्री बनने वाली इंदिरा गांधी का समर्थक माना जाता था, इसके अतिरिक्त शास्त्री जी की आत्मनिर्भर भारत की नीतियों के लिए तत्कालीन अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए भी उन्हें भविष्य के लिए खतरा मानती थी, जिसको लेकर रहस्यमई परिस्थितियों में हुई उनकी संदिग्ध मृत्यु को लेकर आशंकाएं बढ़ जाती हैं।


यह भारत में सुभाष चंद्र बोस के तथाकथित रूप से विमान दुर्घटना में मारे जाने की अवधारणा को स्वीकारने के उपरांत हुई किसी बड़े राजनीतिक हस्ती की दूसरी ऐसी संदिग्ध मृत्यु थी जिस पर तत्कालीन भारतीय केंद्र सरकार द्वारा लीपापोती करने का प्रयास किया गया।


आज इस हृदय विदारक घटना के दशकों उपरांत भी भारतीय जनमानस, अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमई परिस्थितियों में हुई संदिग्ध मृत्यु को लेकर उपजे प्रश्नों का उत्तर ढूंढ रहा है।