जनगणना में अलग धर्म-कोड की मांग का षड्यंत्र

जनगणना में किसी भी देश की सार्वभौम, लोकतांत्रिक व कल्याणकारी सरकार अपने नागरिको की संख्या गिनने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर उनके विकास के लिए योजनाबद्ध प्रयास करती है। सरकार इन आकंड़ो का उपयोग देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा पर पड़ने वाले परिणामों का अध्ययन-विश्लेषण पर आवयश्क कदम उठाने के लिए भी करती है।

The Narrative World    14-Jan-2024   
Total Views |

Representative Image
जनगणना में किसी भी देश की सार्वभौम
, लोकतांत्रिक व कल्याणकारी सरकार अपने नागरिको की संख्या गिनने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर उनके विकास के लिए योजनाबद्ध प्रयास करती है। सरकार इन आकंड़ो का उपयोग देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा पर पड़ने वाले परिणामों का अध्ययन-विश्लेषण पर आवयश्क कदम उठाने के लिए भी करती है।


भारत में जनगणना का इतिहास बहुत पुराना है। ऋग्वेद, कौटिल्य का अर्थशास्त्र और अकबर के समय की ‘‘आइना--अकबरी में भी जनगणना का उल्लेख है। प्रत्येक दस वर्ष के निश्चित अंतराल से पूरे देश में एक ही समय एक साथ होने वाली वर्तमान स्वरूप की पहली जनगणना ई. सन् 1881 से प्रारंभ हुई जो तब से लेकर आज तक लगातार होती आ रही है।


ब्रिटिश शासन में यह कार्य भारत सरकार (गृह- सरकार जावक सांख्यिकी की परिपत्र सख्ं यत्र -2 दिनांक 23 जुलाई 1856) के अतंर्गत होता था, इसके लिए कोई कानून नहीं था।


स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय जनगणना अधिनियम 1948 पारित हुआ, देश की सातवीं व स्वतंत्र भारत की प्रथम जनगणना 1951 में हुई। उसके बाद सभी जनगणनाएं इसी कानून के अतंर्गत हो रही है।


विगत 2-3 जनगणनाओं से देश में जनजाति समाज के अंदर से कुछ लाग यह मांग कर रहे है कि जनजातियों के लिए एक पृथक धर्म-कोड दिया जाए। जनजाति समाज के बाहर की निहित स्वार्थ वाली कुछ शक्तियॉं इस मांग को हवा दे रही है। इन शक्तियों को भी पहचाने की आवश्यकता है। परन्तु उसके पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि धर्म-कोड क्या है।


जनगणना के समय प्रगणक घर-घर जाकर किसी मकान में रहने वाले लोगों की संख्या या स्त्री -पुरूष, बालक-बालिका आयु उनकी शिक्षा, बिजली, पेयजल, शौचालय, फोन, टीवी जैसी सुविधा के आदि के बारे में चाही गयी जानकारियॉं फार्म में भरता है।


इसके साथ ही उनकी जाति एवं धर्म के बारे में लिखता है। यदि कोई परिवार अनुसूचित जाति या जनजाति का है तो उस जाति के बारे में आवश्यक प्रमाण -पत्र देखकर होकर ही वह फार्म भरेगा, परन्तु धर्म के बारे में ऐसा नहीं है। प्रगणक को जो भी धर्म बताया जायेगा वही उसे भरना होगा।


बाद में राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित करते समय धर्म से सम्बंधित में आंकड़े 8 श्रेणी बद्ध कर प्रकाशित किये जाते है। इन श्रेणियों को ही धर्म-कोड के नाम से पुकारा जाता है। ये 8 श्रेणियां हैं- 1. हिन्दु, 2. मुस्लिम, 3. ईसाई, 4. सिक्ख, 5. बौद्ध, 6. जैन, 7. अन्य धर्मावलम्बी (ORPs) और 8. धर्म नहीं बताया (RNS).


1881 से 1941 तक प्रकाशित जनगणना के आंकड़े बताते है कि अनु. जनजातियों से 90 से 95% से अधिक लोगों में अपने आप को हिन्दु अंकित करवाया है। तब तक जनजातियों में से 4% से भी कम लोग अपने आप को सेगंखासी, रांग्फ्रा, डोनीपोलो, सीडोनीपोलो, बाथो इत्यादी धर्म अंकित करते थे जो कि अधिकतर भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में निवास करते हैं।


उत्तरपूर्व की कुछ जनजातियों द्वारा बौद्ध भी लिखा जाता था, तब तक चर्च उनमें से केवल 1 से 2 प्रतिशत लोगो को ही धर्मान्तरित कर ईसाई बना पाया था।


‘‘अनुसूचित जनजाति’’ शब्द का उपयोग पहली बार भारतीय सविधान में 1950 में आया है, परन्तु उसके पूर्व भी अंग्रेजों ने उन्हें एनिमिस्ट, प्रकृति -पूजक, ट्राइब जैसे नाम देकर शेष समाज से अलग करने का प्रयास किया परन्तु उसमें वे सफल नहीं हुए।


नागरिक सुरक्ष अधिनियम - 1955 में परिभाषा दी गई है - The Protection of Civil Right Act- 1955/No.22

Explanatioer - For The Purpose Of This Section And Section 4 Person Processing The Buddhest, Sikh, Or Join Religion or Persons Processing The Hindu Religion In Any Of It's Form Or Development Including Virashaivas, Lingayats, Adivasis, Fold Word of Brahminto, Prarthana, Aryasamay And The Swaminarayan Sampraday Shall be Deemed To Be Hindus.


यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि यदि कोई जनजाति अपने को हिन्दु धर्म में अंकित करवाएगा तो उसकी अनुसूचित जनजाति की मान्यता समाप्त हो जायेगी। उन्हे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।


क्या ईसाई धर्म अंकित कराने वाले किसी जनजाति व्यक्ति की मान्यता आज तक रद्द हुई है, जो कि केरल राज्य बनाम चन्द्र मोहनन और जयंतिया हिल्स स्वायत जिला परिषद् मेघालय मामले में मा. उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में समाप्त हो जानी चाहिये थी? तो फिर हिन्दु अंकित कराने वालो कि मान्यता कैसे कैसे रद्द होगी ?


जनजातियों का धर्मान्तरण कराने वाली शक्तियॉं इसकी आड़ में भ्रम फैलाकर न केवल जनजातियों में से सनातम हिन्दु धर्म मानने वाले लोगों की सख्ं या कम करने का षडयंत्र कर रही है बल्कि अन्य धर्मावलाम्बियों (ORPs) की संख्या बढ़ाकर जनजाति समाज को ही कमजोर करना चाहती है, ताकि बाद में उनका धर्म बदला जा सके जैसा कि विगत 50 वर्षां से उत्तर-पूर्व के राज्य में हुआ। इसे समझने की आवश्यकता है।