वैश्विक शांति के लिए खतरा है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी

एक वक्त था जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच लगभग साढे चार दशक तक शीत युद्ध चला था। उस शीत युद्ध के दौरान दुनिया के ढेरों ऐसे देश हैं जो औपनिवेशिक स्थिति से स्वतंत्रता प्राप्त किए थे। भारत भी उन देशों में से एक था।

The Narrative World    15-Jan-2024   
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चीन की गतिविधियाँ अब वैश्विक शांति के लिए बड़ा ख़तरा बन चुकी है। भारत सहित अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ चीन के सीमा विवाद चल रहे हैं। भारतीय सेना के साथ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पीपल्स लिबरेशन आर्मी की हिंसक झड़प में भी वैश्विक स्तर पर चीन की नापाक हरकतों की पोल खोली है।


एक वक्त था जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच लगभग साढे चार दशक तक शीत युद्ध चला था। उस शीत युद्ध के दौरान दुनिया के ढेरों ऐसे देश हैं जो औपनिवेशिक स्थिति से स्वतंत्रता प्राप्त किए थे। भारत भी उन देशों में से एक था।


संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच चले उस शीत युद्ध में दुनिया दो खेमों में बढ़ चुकी थी। एक वह लोग थे जो वामपंथ और मार्क्सवाद की पोथी को सिर में ढोकर गरीबों और मजदूरों के नाम से तानाशाही सत्ता की स्थापना कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर वह लोग थे जो पूंजीवाद की विचारधारा जरूर अपनाएं हुए थे, लेकिन लोकतांत्रिक गणराज्य और नागरिक स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहते थे।


भारत ने उस दौरान दोनों गुटों से अलग गुटनिरपेक्ष रहना चुना था, बावजूद इसके भारत के तत्कालीन नेतृत्वकर्ताओं की निजी महत्वाकांक्षाओं और वैचारिक पृष्ठभूमि की वजह से भारत में वामपंथी विचारधारा के सूत्रधार सोवियत यूनियन का प्रभाव बढ़ता गया।


अब दोबारा दुनिया दो भागों में विभाजित होती हुई दिख रही है। इस बार भी लगभग उसी तरह की दो शक्तियां आमने-सामने हैं। एक तरफ ऐसा विचार है जो सभी को एक रूप में डालकर उसकी नागरिक स्वतंत्रता और मूलभूत अधिकारों को छीनना चाहता है और तानाशाह की तरह सत्ता के लोभ में नरसंहार करने की प्रबल इच्छा रखता है वहीं दूसरी ओर एक अति पूंजीवादी देश जो अपने मानवीय हितों से ऊपर आर्थिक हितों को रखता है।


लेकिन इस बार भी एक चीज वैसी ही है कि अमेरिका लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिक अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के चिंतन को दबाने की कोशिश नहीं कर रहा और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इन सभी मूल्यों की स्वतंत्रता नहीं देना चाहती।


इन सभी चीजों का विश्लेषण करने के बाद जब हम वर्तमान में चीन को देखते हैं तो यह समझ आता है कि पूर्व के मार्क्सवादी-लेनिनवादी सोवियत यूनियन से अत्यधिक खतरनाक वर्तमान का माओवादी कम्युनिस्ट चीन है।


जिस तरह से वर्तमान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल पैदा हुई है, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि दुनिया जल्द ही एक नए वर्ल्ड ऑर्डर को देखेगी। ऐसा भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इस नए वर्ल्ड ऑर्डर का निर्माण चीन को एक धुरी में रखते हुए किया जाएगा।


भारत सरकार ने समय समय पर विस्तारवादी नीतियों को अपनाने वालों को कड़ा जवाब देने का संदेश दिया है।


दरअसल वर्तमान में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की चुनौतियों का सामना करना इसलिए अधिक कठिन है क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मशीनरी हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज में भी शामिल है। अभी की जो स्थिति है, वह सोवियत संघ वाली स्थिति से अधिक गहरी और गंभीर है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग अलग समूहों को ढेरों खतरे हैं। लेकिन कुछ महत्वपूर्ण खतरे ऐसे हैं जो पूरे वैश्विक समुदाय को है। पूरी दुनिया की जनता इससे प्रभावित होती है। इन्हीं खतरों में सबसे पहले हैं नागरिक स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मौलिक मानवाधिकारों जैसे सार्वभौमिक मूल्यों का खतरा।


इस बात को समझने के लिए हमें सबसे पहले चीनी राजनीतिक व्यवस्था, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की वैचारिक स्थिति और प्रशासनिक गतिविधियों को समझना आवश्यक है।


जैसा कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके, कनाडा जापान, साउथ कोरिया जैसे तमाम लोकतांत्रिक देशों में देश का मुखिया या हम कहें कि देश राजनीति को चलाने वाला प्रमुख व्यक्ति देश की जनता द्वारा चुनी सरकार का होता है अर्थात इन सभी देशों में लोकतंत्र है।


लेकिन चीन में ऐसा नहीं है। चीन में देश का मुखिया जनता द्वारा चुनी सरकार का नेता नहीं होता है। चीन में सिर्फ एकमात्र राजनीतिक पार्टी का अस्तित्व है और वह पार्टी है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी। इसके अलावा किसी भी तरह के राजनीतिक दल, छात्र संगठन एवं राजनीतिक-सामाजिक-धर्मिम संगठन बनाने का अधिकार किसी को नहीं है।


चीन में जनता किसी तरह के चुनाव में वोट नहीं देती है। इसके अलावा वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तो आजीवन राष्ट्रपति रहने को लेकर नियम पारित किया हुआ है।


जैसा कि आप समझ ही रहे हैं कि भारत या अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के चीन से विवाद सामने आए हैं और अमेरिका से तो संघर्ष अत्यधिक उग्र है, लेकिन यह समझने की भी आवश्यकता है कि लोकतांत्रिक देशों के नागरिकों और चीन के नागरिकों के बीच संघर्ष की स्थिति नहीं है।


यह पूरा टकराव एक "लोकतांत्रिक समाज" और "तानाशाही सत्ता" के बीच होता प्रतीत हो रहा है। यह दो विचारों के बीच एक संस्थागत टकराव है। यह वैश्विक "सार्वभौमिक मूल्य" और "अवस्थित मूल्य" के बीच का टकराव है।


विचारधाराओं का भी इस टकराव में अहम रोल है। भारत समेत लोकतांत्रिक देशों में विचारों की स्वतंत्रता है। कोई भी व्यक्ति संसदीय भाषा में अपने विचारों को व्यक्त कर सकता है और तो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए देश के सर्वोच्च नेता की भी आलोचना कर सकता है। हमारे समाज में जीवन का तरीका एक वैश्विक सार्वभौमिक मूल्य जैसे स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता, मानवाधिकार और एक व्यवस्थित कानून के शासन पर आधारित है।


लेकिन यह विचारों की स्वतंत्रता चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही सत्ता में नहीं है। कम्युनिस्ट विचार अपनी जरा सी भी आलोचना स्वीकार नहीं कर सकता।


भारत अमेरिका एवं अन्य लोकतांत्रिक देशों के लोग भी अब यह समझ रहे हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी चीनी जनता से पूरी तरह अलग है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी खुद चीनी जनता के लोकतांत्रिक मूल्यों और जीवन जीने के तरीके को परिवर्तित कर रही है।


सिर्फ इतना ही नहीं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ना केवल अपनी जनता को मौलिक अधिकारों से वंचित रख रही है बल्कि वह पश्चिमी देशों के सार्वभौमिक मूल्यों को एक "खतरनाक चीज" की तरह पेश कर रही है।


2013 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में अपना 9 नंबर का डॉक्यूमेंट जारी किया था जिसमें कहा गया था कि पश्चिम देशों के यूनिवर्सल वैल्यूज खतरनाक है।


इसके अलावा हमने हांगकांग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किए गए अत्याचारों को बेहद करीब से देखा है। हांगकांग के नागरिकों की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर प्रतिबंधित करने के लिए मजबूर कर दिया है। प्रेस और मीडिया पर भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं।


हांगकांग के साथ-साथ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ताइवान पर भी मिलिट्री घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा है। सिवान के हवाई सीमा पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की वायु सेना मैं पिछले महीनों में ढेरों बार घुसपैठ करने की कोशिश की है।


कुल मिलाकर देखा जाए तो चीन पूरे विश्व में अधिनायकवाद तानाशाही की स्थापना कर एकरूपता और एक विचार की परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह ना सिर्फ चीन और उससे लगे पड़ोसी देशों के लिए खतरनाक है बल्कि यह विचार ही पूरे विश्व के लिए एक बड़ा खतरा है।


विश्व में आज जिस तरह का माहौल बन चुका है उससे एक बात स्पष्ट होती नजर आ रही है कि पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ एक मनोदशा निर्मित हो चुकी है।


इसके अलावा चीन सैन्य नजरिए से भी पूरे विश्व के लिए एक बड़ा खतरा है। यदि मैं आपको कहूं कि भारतीय सेना को वर्तमान में केंद्र सरकार के बजाय भारतीय जनता पार्टी की एक इकाई में बदल दिया जाए तो आप क्या सोचेंगे? संभवत आपका सबसे पहला विचार यही होगा कि यह एक मूर्खतापूर्ण बात है।


कल्पना कीजिए यदि ऐसा हो जाए तो क्या एक लोकतांत्रिक व्यवस्था से कानून और व्यवस्था का कोई राज होगा? जी नहीं! बिल्कुल भी नहीं।


लेकिन चीन में यही व्यवस्था है। चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी चीनी सरकार से संबंधित ना होकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक शाखा या एक इकाई है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पीपल्स लिबरेशन आर्मी में 20 लाख के करीब सैन्य जवान हैं। हालांकि चीन हमेशा से दावा करता रहा है कि उसकी सैन्य शक्ति पूरी दुनिया में सबसे बड़ी है। हमने यह भी देखा है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी सेना का गलत इस्तेमाल कर पड़ोसियों के साथ विवाद में रहने की कोशिश करती है।


उदाहरण के लिए देखे तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और भारतीय सेना के बीच पिछले 45 वर्षों में सबसे खराब हिंसक झड़प हुई थी।


इस खूनी संघर्ष में भारतीय सेना के 20 जवान बलिदान हुए। भारतीय सेना ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उनके 45 से अधिक सैनिकों को मार गिराया जिसमें कमांडिंग ऑफिसर शामिल थे।


इसके अलावा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पीपल्स लिबरेशन आर्मी और वायु सेना और नौसेना ने लगातार वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया को दक्षिण चीन सागर में परेशान करने की नीति अपनाई है।


जापान और ताइवान जैसे देशों को भड़काने और धमकाने के लिए लगातार सैन्य बलों का इस्तेमाल किया है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इस मिलिट्री पावर के गैर जिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल करने की वजह से पूर्वी एशियाई क्षेत्र और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में एक गंभीर खतरा पैदा हो गया है।


पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अर्थात चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेना का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक इकाई होना आज भी दुनिया के लिए एक अचंभा है।


बहुतायत में ऐसे लोग हैं जिन्हें यह जानकारी नहीं कि चीनी सेना चीनी सरकार की नहीं बल्कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सैन्य शाखा है।


क्लाइव हैमिल्टन (Clive Hamilton) एवं मार्के ओहेलबेर्ग (Mareike Ohlberg) की किताब "एक्सपोजिंग हाउ द चाइनीस कम्युनिस्ट पार्टी इज रिशेपिंग द वर्ल्ड" में इस विषय पर विस्तार से सभी तथ्यों एवं सूत्रों के साथ जानकारी दी गई है।


किताब में लेखिका ने लिखा है कि "यह समझने के लिए कि अन्य संस्थानों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी किस हद तक नियंत्रित करती है आपको यह जानना आवश्यक है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी देश की सेना नहीं है बल्कि वह कम्युनिस्ट पार्टी की सशस्त्र इकाई है।"


इसका मतलब यह है कि पूरी दुनिया में जिस तरह सभी देशों की सेनाएं अपने देश के विचारों, देश की अखंडता, देश की संप्रभुता, देश के नागरिक और देश की सभ्यता की रक्षा के लिए युद्ध लड़ती हैं और उनकी सुरक्षा करती है ऐसा चीन में नहीं है।


चीन में वामपंथी दल की सत्ता होने की वजह से वहां की सेना चीनी नागरिकों की सुरक्षा के बजाय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सुरक्षा, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विचारों के लिए और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के निर्देश के अनुसार कार्य करती है।


इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि यदि दुनिया के तमाम देश चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर दबाव बनाकर चीन में लोकतंत्र की स्थापना करने की कोशिश करते हैं तो भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी देश में लोकतंत्र की स्थापना में एक बड़ी रुकावट बन कर उभरेगी।


यह ऐसे तथ्य हैं जो सामान्य नागरिकों तक इसलिए नहीं पहुंच पाते क्योंकि चीन का प्रोपेगेंडा चलाने वाली संस्थाएं, मीडिया से जुड़े लोग, पत्रकार साहित्यकार यह जानकारी नहीं देना चाहते।


चीन के साथ-साथ उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भी पूरे विश्व के लिए एक बड़ा खतरा है।