कम्युनिस्ट आतंकवादियों की रणनीति और हथकण्डे (भाग - 01) : 'नक्सलवाद', 'LWE' या 'माओवाद' नहीं; बल्कि कम्युनिस्ट आतंकवाद कहिए!

आप जिन्हें नक्सली कह रहे हैं, वो खुद के संगठन को Communist Party of India (Maoist) क्यों कहते हैं? उनके पास आधुनिक हथियार कहाँ से आए? इन अनपढ़ मासूम लोगों ने अत्याधुनिक खुफिया तंत्र कैसे विकसित कर लिए? चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ से भला इनका क्या लेना देना?

The Narrative World    17-Jan-2024   
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पिछले महीने एक काम के सिलसिले में मेरा मनमाड जाना हुआ। वापसी की यात्रा में एक सज्जन से देश-दुनिया की मेरी चर्चा न जाने कैसे माओवाद तक पहुँच गई। वही माओवाद, जिसे वामपंथी उग्रवाद बताकर भारत सरकार ने 2009 में देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बडा खतरा बता दिया था। लेकिन इस बारे में उन सज्जन के विचार किंचित् भिन्न थे। उन्होंने जिस तरह मुझे कथित नक्सलवाद का इतिहास समझाते हुए बताया कि कैसे शोषितों और वंचितो की दबी-कुचली आवाज ने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे का रूप धारण किया, तो उसे सुनकर मुझे यह समझ आ गया कि वे भाईसाहब भी भ्रान्त नैरेटिव्ज़ में उलझे हुए हैं।


उनका कहना था कि हमारी सरकारें उन लोगों की बात सुनने-समझने की बजाय उनके खिलाफ़ सेना भेज रही हैं। आगे उन्होंने मुझसे पूछने के लहजे में कहा, "आप ही बताओ कि सेना दुश्मनों को मारने के लिए होती है, या अपने हक की लड़ाई कर रही जनता को मारने के लिए? आखिर कौन-सा देश अपने ही मासूम नागरिकों को मारने के लिए सेना भेजता है?"


मशीनगन से गोली की तरह वे एक के बाद एक प्रश्न दागते जा रहे थे। "क्या देश में अपने हक के लिए आवाज उठाना देशद्रोह है?" लेकिन इस बीच मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उन्हें टोकते हुए कहा, "भाईसाहब! आज के Information Pool में सच-झूठ में अन्तर करना बड़ा कठिन है और संभवतः यही कारण है कि आप जैसे सुलझे हुए लोग भी सच-झूठ में अन्तर नहीं कर पा रहे हैं।"


अब प्रश्न पूछने की बारी मेरी थी। मैंने उनसे प्रश्न पूछना शुरु किया, "भैया! यदि आपकी जानकारी सही है, तो यह बताइये कि ये भोले-भाले लोग खुद को माओवादी क्यों कहते हैं? आप जिन्हें नक्सली कह रहे हैं, वो खुद के संगठन को Communist Party of India (Maoist) क्यों कहते हैं? उनके पास आधुनिक हथियार कहाँ से आए? इन अनपढ़ मासूम लोगों ने अत्याधुनिक खुफिया तंत्र कैसे विकसित कर लिए? चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ से भला इनका क्या लेना देना?"


और फिर मैंने उनका ही प्रश्न उलटकर उनपर दागा कि आप ही बताइये कि आखिर ऐसे कौन-से कारण हैं कि भारत सरकार को इन कथित मासूमों को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानना और बताना पड़ा? उनके पास मेरे इन प्रश्नों के उत्तर नहीं थे। उत्तर क्या उनके मन में कभी ऐसे सवाल ही पैदा नहीं हुए। होते भी कैसे?


ब्रिटिशकाल से ही हमारी शिक्षा प्रणाली इस तरह ढाली गई है कि हम केवल रटकर परीक्षा निकाल लें। विचार-मनन करना, प्रश्न करना आदि आदतों को हमने कबका छोड़ ही दिया है। खैर, उन सज्जन के चेहरे पर दिख रहे भाव मुझे बता रहे थे कि मेरे प्रश्नों ने उनके मन में असमंजस की हिलोरें खडी कर दी थीं। क्योंकि लगभग साल भर पहले तक, जब तक मैंने CPI (Maoist) के कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ नहीं पढ़े थे, तब तक कथित नक्सलवाद को लेकर मेरे भी विचार लगभग ऐसे ही थे।


इसलिए उनके मन में उठ रही हिलोरों को पढ़कर मैंने उनसे कहना शुरु किया कि भाईसाहब! ऐसा है कि ये नक्सलवाद, नक्सली, भटके हुए लोग, जैसा कुछ है ही नहीं। यह एक विशुद्ध आतंकवाद है। कम्युनिस्ट आतंकवाद। और जिन्हें आप हक की लड़ाई लड़ रहे भोले-भाले मासूम बता रहे हैं, वे चालाक आतंकवादी हैं। ये सभी पूरी दुनिया को कम्युनिस्ट बनाने की सनक के साथ काम कर रहे हैं। यह एक ऐसी सनक है, जो पूरी दुनिया में अबतक 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की जान ले चुकी है, जो पूरी दुनिया में कोविड-19 से मरने वालों से लगभग 10 गुना ज्यादा है।


नक्सली जैसे झूठे नाम लेकर आतंक फैला रहे, ये कम्युनिस्ट आतंकवादी भी बिल्कुल जेहादी आतंकवादियों की तरह ही हैं, जो पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने की सनक पर सवार हैं। और-तो-और कई जगहों पर इन दोनों का गठजोड़ भी काम कर रहा है। पर इससे मुझे उन सज्जन की परेशानियाँ कम होने की बजाए बढ़ती दिखीं। तो मैंने उन्हें किसी भी तरह का तर्क देने से पहले माओ, कम्युनिज़्म जैसे शब्दों को समझाना शुरु किया। लेकिन तब तक गाड़ी मुझे गन्तव्य तक पहुँचा चुकी थी। हमारी बात अधूरी ही रह गई। उनसे मोबाइल नम्बर लेना तो दूर, उनका नाम भी मैं नहीं पूछ सका था। तो आगे उनसे सम्पर्क की संभावना लगभग नगण्य ही थी।


इसी बीच मेरे मन में यह विचार फिर से उठा कि मुझे इन कम्युनिस्ट आतंकवादियों की हकीकत लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करनी चाहिए। पहले भी कई बार दोस्तों को इस बारे में बताते समय ऐसा विचार मन में कौंधा था, लेकिन इसबार यह यह एक निश्चय बन गया। 'कम्युनिस्ट आतंकवादियों की रणनीति और हथकण्डे' नाम की यह आलेख शृंखला इसी निश्चय का परिणाम है।


इस आलेख शृंखला में हम कम्युनिस्ट आतंकवाद के वैचारिक आधार से शुरु करते हुए पहले मार्क्स, लेनिन, ग्राम्शी और माओ के विचारों और कम्युनिज्म को एक सनक बनाने की उनकी रणनीतियों की चर्चा करेंगे।


फिर हम भारत के विरुद्ध भारत के भीतर से ही माओवादी युद्ध चला रही CPI (Maoist) के एक अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज़ Strategy and Tactics of The Indian Revolution (भारत में कम्युनिस्ट क्रान्ति की रणनीति और हथकण्डे) पर क्रमशः विचार करेंगे। इस शृंखला में हमारा अगला लेख कम्युनिस्ट आतंकवाद 'उर्फ़' माओवाद के वैचारिक आधार पर केन्द्रित होगा।


लेख


ऐश्वर्य पुरोहित

शोधार्थी

स्तंभकार