19 जनवरी 1990. यह वह तारीख है जिसे भारत में सेक्युलरिज्म के नाम पर भुला दिया गया। यह वह तारीख है जिसे भारत में मुसलमानों को तकलीफ ना हो इसलिए भुला दिया गया।
यह ऐसी तारीख है जिस पर कभी चर्चा सिर्फ इसलिए नहीं हुई क्योंकि वामपंथी प्रोपेगेंडा चलाने वाले और इस्लामिक चरमपंथियों की विचारधारा को और उसने वाली मीडिया इससे दूर भागना चाहती थी।
यह ऐसा दिन है जिस पर भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां इसलिए टिप्पणी नहीं करती क्योंकि उन्हें अपने मुस्लिम वोट बैंक के खोने का डर है।
19 जनवरी 1990 को स्वतंत्र भारत के इतिहास में दूसरी बार ऐसा हुआ था जब पूरे एक शहर से हिंदुओं को चुन चुन कर बुलाया गया था।
विभाजन के दौरान वर्तमान पाकिस्तान के क्षेत्रों में हिंदुओं को इसी तरह चुन-चुन कर मार मार कर भगाया गया। इसके बाद 1990 की कश्मीर की सर्द भरी रातों में वहां के हिंदुओं को मुस्लिम पड़ोसियों ने 3 विकल्प दिए - मुसलमान बन जाओ, कश्मीर छोड़ दो या मारे जाओ!
यदि आपको लगता है कि इस घटना को वहां के मुस्लिम कट्टरपंथियों ने अंजाम दिया था तो आप अभी तक घाटी में हुए हैं घटना से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।
मुस्लिम दोस्तों ने अपने हिंदू दोस्तों को ही मार डाला था। मुस्लिम छात्रों ने अपने हिंदू शिक्षकों के घर को लूट डाला था। मुस्लिम पड़ोसियों ने अपने हिंदू पड़ोसियों का बलात्कार किया था। यह सब कुछ किया जा रहा था इस्लामिक जिहाद के नाम पर।
यह देश में एक आश्चर्य की ही बात है कि 6 लाख कश्मीरी हिंदुओं को रातों-रात कश्मीर घाटी से भगा दिया जाता है और फिर ना संसद में और ना ही सड़क पर इसकी कोई चर्चा होती है।
आज कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की बरसी है। आज भी कुछ राजनीतिक पार्टियां सिर्फ इसलिए चुप हैं लेकिन उन्हें अपने मुस्लिम वोट बैंक खोने का डर है।
हमारे देश में रोहिंग्या मुस्लिमों से लेकर आतंकवादियों तक के लिए मानवाधिकार की दुहाई दी जाती है। तरह-तरह के वामपंथी संगठन और स्वघोषित मानवाधिकार कार्यकर्ता आतंकवादियों के लिए कोर्ट से लेकर आयोग तक चिट्ठियां लिखते हैं। लेकिन इन कश्मीरी हिंदुओं के लिए कभी इन्होंने अपनी कलम नहीं चलाई।
कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार और विस्थापन ऐसा था कि घाटी के मुसलमानों ने उनके घर उजाड़ दिए, उनके घरों को आग लगा दिया, हिंदू महिलाओं के साथ जबरन हफ्तों तक बलात्कार किया गया, उनके सामने उनके परिवार वालों की हत्या की गई और अंततः उन्हें घाटी से पूरी तरह बेदखल कर दिया।
कश्मीरी हिंदू हर साल 19 जनवरी को निर्वासन दिवस मना कर यह याद दिलाते हैं कि यही वह दिन है जब उन्हें उनकी ही सरजमी से मुसलमानों ने अपने धर्मांध के चलते हैं बेदखल कर दिया था।
कश्मीरी हिंदू जो बच कर वहां से निकले उन्होंने बताया कि मस्जिदों के लाउडस्पीकर से कश्मीरी हिंदुओं को घाटी छोड़ने का फरमान सुनाया जा रहा था। मुस्लिमों को सड़क पर उतर कर हिंदुओं के खिलाफ जिहाद करने के लिए कहा गया।
सितंबर 1989 में घाटी में वरिष्ठ वकील कश्मीरी हिंदू नेता टीकाराम टपलू की दिनदहाड़े मुस्लिमों द्वारा उनके घर के सामने हत्या कर दी गई थी।
1986 की गर्मियों में अनंतनाग में हिंदुओं के कई मंदिरों में मुसलमानों ने तोड़फोड़ की। इसके बाद लक्षित हत्याएं और हमले शुरू किए गए।
स्थानीय कश्मीरी हिंदू भी यह मानते हैं कि घाटी के बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय ने वहां आतंकवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कश्मीरी हिंदू यह भी बताते हैं कि तत्कालीन सरकार, पुलिस और सेना ने किसी तरह की कोई मदद नहीं की।
कश्मीर के अखबारों से लेकर वहां के इस्लामिक जिहादियों ने जमकर आतंकवादियों का साथ दिया और हिंदुओं को भगाने में भूमिका निभाई।
आतंकी बंदूकों के साथ सड़क पर मार्च कर रहे थे और जिहादी उनकी जयकारे लगा रहे थे। इतना ही नहीं घाटी के एक अखबार 'अफताब' में आतंकियों का संदेश भी प्रकाशित किया गया था जिसमें हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया था।
उर्दू अखबार आफताब में हिज्बुल मुजाहिदीन का संदेश छापने के बाद अल सफा नामक अखबार ने दोबारा इस संदेश को छापा।
मस्जिदों के लाउडस्पीकर से हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने की धमकी दी जाने लगी। नारे लगने लगे कि "हमें पाकिस्तान चाहिए हिंदुओं के बगैर और उनकी औरतों के साथ।" इस्लामिक जिहादी बिट्टा कराटे ने अकेले 20 हिंदुओं की हत्या की थी और इसे वह बड़े शान से बताता था।
कांग्रेस सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने वाला यासीन मलिक इस नरसंहार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था।
यासीन मलिक का आतंकी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट इन सभी घटनाओं को अंजाम दे रहा था। लेकिन बावजूद ऐसे लोगों को देश के प्रधानमंत्री से मिलवाने का काम कांग्रेस सरकार में किया गया।
ऐसे आतंकियों को सरकार की तरफ से कांग्रेस ने पूरा सहयोग किया। और 2014 से पहले तक इन पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हो पाई थी।
अब केंद्र में एक ऐसी सरकार है जो इन इस्लामिक जिहादियों को ना सिर्फ़ सलाखों के पीछे डाल चुकी है, बल्कि अब कश्मीर से आतंकवाद का सफ़ाया भी कर रही है।