भीमा कोरेगांव दंगा : अर्बन नक्सलियों और माओवादियों का नेक्सस

इस पूरी गतिविधि में कम्युनिस्ट समूहों और माओवादी आतंकियों के शामिल होने की बात सामने आई। शुरूआत में महाराष्ट्र पुलिस और उसके बाद एनआईए ने अपनी जांच को आगे बढ़ाया, तो धीरे-धीरे पूरे देश भर में आरोपियों की गिरफ्तारी देखने को मिली। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, स्वघोषित पत्रकार, मीडिया के बनाए हुए सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथ के सिपहसालार पुलिस की गिरफ्त में आए।

The Narrative World    02-Jan-2024   
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महाराष्ट्र के पुणे में एक क्षेत्र है कोरेगांव। भीमा नदी के तट पर यह क्षेत्र स्थित है जिसकी वजह से इसे भीमा कोरेगाव भी कहा जाता है। 6 वर्ष पहले 2018 में एक जनवरी के दिन यहाँ बड़े स्तर पर जातीय हिंसा फैली थी।


धीरे धीरे इस हिंसा की आग पूरे महाराष्ट्र में फैल रही थी। इन दंगों की वजह से राज्य में लोगों के जीवन में बड़ा बुरा असर फैल रहा था। इन दंगों में कुल 500 से अधिक गाड़ियां जलाई गई थी और 1 व्यक्ति की मौत हुई थी।


इस पूरी गतिविधि में कम्युनिस्ट समूहों और माओवादी आतंकियों के शामिल होने की बात सामने आई। शुरूआत में महाराष्ट्र पुलिस और उसके बाद एनआईए ने अपनी जांच को आगे बढ़ाया, तो धीरे-धीरे पूरे देश भर में आरोपियों की गिरफ्तारी देखने को मिली। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, स्वघोषित पत्रकार, मीडिया के बनाए हुए सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथ के सिपहसालार पुलिस की गिरफ्त में आए।


इन सभी लोगों ने अपने माओवादी आतंकवादी सोच के ऊपर जो चोला पहन रखा था उसे सुरक्षा एजेंसियों ने जनता के सामने निकाल फेंका। माओवादियों ने समाज में जातीय दुर्भावना फैलाकर बड़े स्तर पर दंगे फैलाने का काम किया।


भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 के बाद से हुए दंगों में पूरी तरह से माओवादी शक्तियां शामिल थी, इसकी पुष्टि हुई। सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा जैसे तमाम शहरी माओवादी गिरफ्तार हुए।


कुछ ऐसे लोगों की भी गिरफ्तारियां हुई जो माओवादियों से सीधे संपर्क में थे और अलग-अलग माध्यमों से इस हिंसा की योजना बना रहे थे। इसमें ऐसे लोग भी शामिल थे जिनके संबंध पाकिस्तानी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों से भी हैं।


इस पूरे कनेक्शन का जांच एजेंसियों ने भंडाफोड़ किया है। इनकी सच्चाई अब जनता के सामने आ चुकी है। जांच एजेंसियों ने चार्ज शीट से लेकर हाईकोर्ट में दिए गए हलफनामा में भी इस बात का जिक्र किया है कि गिरफ्तार हुए लोगों के माओवादियों से लिंक है और इन्होंने समाज में विद्वेष फैलाने के इरादे से इन दंगों को भड़काने का काम किया है।

इनकी गिरफ्तारियों के बाद माओवादियों के शहरी नेटवर्क का व्यापक स्तर पर खुलासा हुआ था। इसके बाद धीरे-धीरे माओवादियों पर सुरक्षाबलों की पकड़ बढ़ती गई। जैसे भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार हुए आनंद तेलतुंबड़े के बारे में जानकारी आई कि वह कुख्यात माओवादी आतंकी मिलिंद तेलतुंबड़े का भाई है। मिलिंद तेलतुंबड़े पर 50 लाख रुपये का इनाम घोषित था, जो गढ़चिरौली में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया।


मिलिंद तेलतुंबड़े को लेकर यह बात भी सामने आई थी कि वह अपने भाई आनंद तेलतुंबड़े के माध्यम से ही माओवादी संगठन में शामिल होने के लिए प्रभावित हुआ था। इसमें दिलचस्प बात यह है कि शहरी माओवादी होने, माओवादी का भाई होने, दंगों के आरोपी होने के बाद भी आनंद तेलतुंबड़े को मीडिया में दलित कार्यकर्ता के रूप में पेश किया जाता है।


वहीं भीमा कोरेगांव के मामले को लेकर पुलिस ने अरुण फरेरा पर आरोप लगाया था कि शहरी माओवादी अरुण फरेरा ने ना सिर्फ दंगों की साजिश रची बल्कि प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठनों से संबंध भी रखे हुए है।


31 दिसंबर 2017 को भीमा कोरेगांव में एल्गार परिषद की एक बैठक हुई थी, जिसमें अरुण फरेरा ने भड़काऊ भाषण दिया था जिसके बाद पूरे क्षेत्र में अगले दो दिनों में हिंसा भड़की थी और दंगे हुए थे। पुणे पुलिस ने यह भी आरोप लगाया था कि अरुण फरेरा अपने अन्य शहरी माओवादी साथी वर्नोन गोंजाल्विस के साथ मिलकर प्रतिबंधित नक्सली-माओवादी संगठन में भर्ती के लिए लोगों को उकसा रहे थे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए नए कैडर तैयार कर रहे थे।


पुणे पुलिस ने कोर्ट में बताया था कि यह अरुण फरेरा चार ऐसे संगठनों से जुड़ा था जो प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन के मुखौटे के रूप में कार्यरत है। अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्विस के ऊपर यूएपीए के तहत गिरफ्तारी हुई थी।


अरुण फरेरा ने अदालत में यह भी माना था कि वह मार्क्सवादी और वामपंथी विचारधारा से प्रभावित है। सरेंडर माओवादी पहाड़ सिंह ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि कथित तौर पर अरुण फरेरा प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उच्च स्तरीय बैठक में शामिल था।


क्या हुआ था जनवरी 2018 में ?


भीमा कोरेगांव क्षेत्र में ब्रिटिश कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच 1818 हुए युद्ध के दौरान कथित तौर पर ब्रिटिश कंपनी को जीत मिली थी। हालांकि अंग्रेजों के अलावा किसी अन्य ने अंग्रेजों की जीत की बात पर मुहर नहीं लगाई है। इस युद्ध में अंग्रेजो की ओर से महार जाति के लोग थोड़े अधिक संख्या में शामिल हुए थे।


इस युद्ध के 200 वर्षों के बाद सन 2018 में दलित समुदाय द्वारा क्षेत्र में कथित शौर्य दिवस मनाए जाने की योजना बनाई गई। हालांकि आरोप यह भी लगे कि महार जाति को वामपंथियों द्वारा उकसाया जा रहा है।


इसी कथित शौर्य दिवस के कार्यक्रम के दौरान दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद और गुजरात के वामपंथी कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी के खिलाफ भी भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। इनके बयानों के बाद ही पूरे क्षेत्र में हिंसा भड़की थी।


कैसे कैसे लोग हैं आरोपी ?


भीमा कोरेगांव हिंसा में पुणे पुलिस और एनआईए ने अलग-अलग क्षेत्रों से विभिन्न लोगों की गिरफ्तारियां कर उन्हें इस दंगे का आरोपी बनाया है। आरोपियों में अधिकांश लोग किसी न किसी तरह से वामपंथी संगठनों से जुड़े रहे हैं।


सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबड़े, स्टेन स्वामी, हैनी बाबू, वर्णन गोंजाल्विस और अन्य शामिल हैं।


भीमा कोरेगांव के युद्ध का इतिहास


भीमा नदी के किनारे कोरेगांव क्षेत्र को ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान फ्रांसिस स्टोन्तो ने 500 सिपाही 300 घुड़सवार दो बंदूकों और 24 तोपों के साथ मराठा सेना में हमला करने के लिए घेर रखा था। ब्रिटिश कंपनी के सैनिकों में कुछ स्थानीय मुसलमान और हिंदू महार शामिल थे।


सामने मराठों की 20,000 से अधिक सैनिकों की सेना खड़ी थी। मराठों की सेना ने नदी को पहले पार कर हमला किया और दोपहर तक कोरेगांव में ब्रिटिश सैनिकों के कब्जे में रहे दो मंदिरों को उनके कब्जे से छुड़वा लिया।


इसके बाद मराठों की सेना ने ब्रिटिश सेना के 11 तोपों और एक बंदूक को पूरी तरह नष्ट कर दिया। जिसके बाद चार कंपनी अधिकारियों को भी मराठा सेना ने वही मार डाला।


इन सभी गतिविधियों को देखकर कप्तान स्टोन्तो से बची हुई टुकड़ी ने आत्मसमर्पण कर वहां से निकलने की गुहार लगाई जिसे कप्तान ने स्वीकार कर लिया।


लेकिन जब इस युद्ध का इतिहास ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा लिखा गया तो इसमें उसकी तारीफ की गई। क्षेत्र में ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान और उसकी सेना के नाम पर एक स्तंभ बनवा दिया गया।


इसी स्तंभ पर आजादी के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने भी समाज को बांटने के लिए शौर्य की गाथाएं लिखी। उन्होंने ब्रिटिश और मराठा सैनिकों की युद्ध को महार और ब्राह्मणों के युद्ध में बदल डाला। इसी बांटो और राज करो की राजनीति का इस्तेमाल अंग्रेजों ने किया जिसे बाद में वामपंथियों द्वारा हिंदुओं के साथ एक बार फिर किया गया।