अर्ध सहस्त्राब्दी का अनवरत संघर्ष और श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

भारतियों की आवश्यकता से अधिक सहनशीलता और अहिंसा घातक सिद्ध हुई। इतिहास गवाह है कि हिन्दुओं को जिस प्रकार भारत की स्वाधीनता के लिए बरतानिया सरकार और मुसलमानों से लड़ना पड़ा उसी प्रकार अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए पांच सौ वर्षों तक 3 कालखंडों में संघर्ष करना पड़ा।

The Narrative World    22-Jan-2024   
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प्रभु श्रीराम अखिल ब्रम्हांड के घट
-घट में,कण - कण में, रोम-रोम व्याप्त हैं, इसलिए सर्वसमावेशी और सर्वव्यापी होकर सबके श्रीराम हैं। मुनिश्री पुलक सागर जी कहते हैं कि "राम सारे भारत के भगवान् हैं, सारे भारत के नहीं पूरे ब्रम्हांड के कोई भगवान् हैं तो श्रीराम हुआ करते हैं "


वहीं दूसरी मुनिश्री सुधासागर जी कहा है कि "संसार का सबसे बड़ा धर्मात्मा यदि कोई था प्रमाण पत्र तो वे थे श्रीराम, भारत की एक शक्ति ऐंसी हुई है जिसको हर भारतीय दर्शन ने स्वीकार किया, जिसका नाम श्रीराम।"


आचार्य रजनीश ने 'जय राम जी की' के अभिवादन को विश्व के सर्वश्रेष्ठ अभिवादन बताया है। वस्तुतः सनातन धर्म धरा है और शेष धर्म उस धरा के पंथ हैं, जिसकी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं। ब्रह्मांड की हर वस्तु और मनुष्य के हर अंग की संज्ञा दो अक्षरों में पूर्ण हो जाती है जिसमें राम ही समाहित हैं।


मनुष्य के जन्म से मृत्यु के मध्य हर सांस में श्रीराम हैं फिर मृत्यु के उपरांत मोक्ष के लिए भी श्रीराम हैं इसलिए अर्थी को कंधों पर ले जाते हुए सनातनी कहते हैं कि "राम नाम सत्य है, सत्य बोला मुक्ति है।"


सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के मुसलमान श्रीराम को अपना पूर्वज मानकर गर्व का अनुभव करते हैं और बाली में रामलीला का मंचन होता है परंतु यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में जहाँ श्रीराम का अवतरण हुआ वहाँ उनके अस्तित्व को लेकर तथाकथित सेक्यूलरों, क्रिस्लामियों, कांग्रेसियों, कतिपय माननीय न्यायधीशों और वामियों द्वारा भ्रम उत्पन्न कर षड्यंत्रपूर्वक श्रीराम को काल्पनिक साबित करने के लिए एक राय होकर पुरजोर कोशिश की गई परंतु अंततः सत्य सनातन धर्म की ही विजय हुई।


यह विचारणीय है कि भारत में सदैव रामायण और महाभारत जैंसे महान् ग्रन्थों के अस्तित्व को लेकर तथाकथित सेक्यूलरों, वामियों, क्रिस्लामियों और कतिपय माननीय न्यायाधीशों ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी परंतु कभी कुरान और बाईबल तथा इनके इष्टों के अस्तित्व पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं जुटा सके।


यह कितना दुखद है कि बहुसंख्यक हिंदुओं को अयोध्या में राम जन्मभूमि के लिए अर्द्धसहस्त्राबदी का अनवरत संघर्ष करना पड़ा जिसमें दस लाख से अधिक सनातनियों का बलिदान हुआ।यह मार्गदर्शी है कि भारत में शस्त्र और शास्त्र दोनों की समान शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी इसलिए भारत प्राचीन काल में अपराजेय रहा परंतु एक पड़ाव ऐंसा आया जब केवल शास्त्रों की प्रधानता बढ़ी तो भारत को मुस्लिम आक्राताओं के समक्ष बहुत कुछ खोना पड़ा।


भारतियों की आवश्यकता से अधिक सहनशीलता और अहिंसा घातक सिद्ध हुई। इतिहास गवाह है कि हिन्दुओं को जिस प्रकार भारत की स्वाधीनता के लिए बरतानिया सरकार और मुसलमानों से लड़ना पड़ा उसी प्रकार अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए पांच सौ वर्षों तक 3 कालखंडों में संघर्ष करना पड़ा।


प्रथम कालखंड में हिन्दुओं को मुस्लिम आक्राताओं से, द्वितीय कालखंड में बरतानिया सरकार और मुसलमानों से और तृतीय कालखंड में स्वतंत्र भारत के अंतर्गत अपनी ही निर्वाचित कांग्रेसी सरकारों, मुसलमानों तथाकथित सेक्यूलरों और क्रिप्टो न्यायाधीशों से संघर्ष करना पड़ा जबकि हिन्दू देश की आबादी का 80%भाग हैं।


यह कितना दुखद है कि है, जिन आक्रांताओं ने भारत की अस्मिता के साथ खिलवाड़ की उन्हीं को संविधान निर्माता ने अल्पसंख्यक का दर्जा देखकर बहुसंख्यक हिंदुओं का भयानक नुकसान किया।


अर्ध्दसहस्त्राब्दी सहस्राब्दी के संघर्ष का इतिहास जानने के लिए सबसे पहले प्रभु श्रीराम के ऐतिहासिक और पौराणिक परिप्रेक्ष्य को समझ लेना आवश्यक होगा। त्रेता युग में भगवान श्री राम अपने सभी निर्धारित कार्यों को पूर्ण कर, सरयू में जल समाधि ली। तदुपरांत महाराज कुश ने अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनवाया और मंदिर पूजा अर्चना प्रारंभ हुई।


द्वापर युग में हस्तिनापुर का अभ्युदय हुआ परंतु महाभारत के युद्ध में भारत का अपूर्णीय क्षति हुई। इस युद्ध के उपरांत हस्तिनापुर का गौरव समाप्त हुआ और अयोध्या का भी विघटन हुआ।प्रथम जैन तीर्थंकर स्वामी ऋषभदेव का भी अयोध्या से गहरा नाता है और वे प्रमाण भी हैं।


इतिहास और समय ने करवट बदली और उज्जयिनी के महा प्रतापी राजा विक्रमादित्य जिन्होंने विक्रम संवत् प्रचलित किया था जब वे आखेट करते हुए साकेत पहुंचे तो वहां पर उन्हें आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हुईं तब पूछताछ करने के उपरांत वहां के साधु संतों ने बताया कि यहां पर श्रीराम की जन्मभूमि है तथा जीर्ण मंदिर है,अतः सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार के साथ भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण कराया।


गुप्त काल में यह एक पवित्र तीर्थ के भारतीयों का केन्द्र बिन्दु बन गया। राजपूत राजाओं ने अयोध्या का सदैव संरक्षण किया परंतु ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में मुस्लिम आक्राताओं के साथ संघर्ष प्रारंभ हुआ।


छठवीं शताब्दी में मक्का में इस्लाम का उदय हुआ और खलीफाओं के आदेश से मुस्लिम आक्रांताओं ने तलवार के दम पर धर्म प्रचार के लिए भारत में प्रवेश किया। ज्ञात हो कि इस्लाम का यही संदेश है कि दुनिया में अल्लाह के अतिरिक्त किसी भी अन्य का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया जा सकता है इसलिए विश्वव्यापी संघर्ष अनिवार्य हो जाता है।


परिणामस्वरुप मुस्लिम आक्राताओं ने भारत में असंख्य मूर्तियों और मंदिरों को विध्वंस कर उनको विरुपित किया है। विशेषकर प्राकट्य तीर्थ स्थलों के ध्वंसावशेषों पर मस्जिद नुमा संरचना का निर्माण कर मस्जिद का नामकरण किया। इस कड़ी में अयोध्या में स्थापित प्रभु श्रीराम के मंदिर को क्षतिग्रस्त कर उस पर तथाकथित बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था, परंतु हिन्दुओं ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया और अर्द्धसहस्त्राबदी के संघर्ष के उपरांत तथाकथित बाबरी मस्जिद को उखाड़ फेंका।राम जन्मभूमि को प्राप्त करने के लिए हिन्दुओं को विभिन्न कालखंडों में 78 युद्ध लड़ने पड़े।

वस्तुतः श्रीराम जन्मभूमि का अर्ध्दसहस्त्राब्दी का संघर्ष एक सहस्त्राब्दी का है क्योंकि इसका आरंभ महमूद गजनवी के तथाकथित भांजे गाजी सालार मसूद के आक्रमण के साथ ही हो गया था। सन् 1033 में अचानक सालार मसूद ने अयोध्या पर आक्रमण कर श्रीराम के मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया, तब महा महारथी सुहेल देव सिंह ने सालार मसूद का पीछा किया और बहराइच के भयंकर युद्ध में 14 जून सन् 1033 को सालार मसूद का वध कर दिया। तब गहढ़वाल राजाओं ने पुन: मंदिर का निर्माण कराया।सन् 1510 - 1511 में गुरुनानक देव ने श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन किए थे।

अनवरत् संघर्ष की श्रृंखला सन् 1528 से आरंभ हुई जब मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीरबाकी ने अयोध्या में राम मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आक्रमण किया। सन 1526 .में सरयू के उस पार डाला। बाबर ने अपने सेनापति मीरबांकी को जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया सन् 1528 से सन् 1530 तक 4 युद्ध हुए परंतु फिर भी मीरबाकी मंदिर को पूर्ण रुप से ध्वस्त नहीं कर सका परंतु उसने मंदिर के ऊपर मस्जिद नुमा संरचना बनवा दी।


हिंदू पक्ष से भीटी नरेश मेहताब सिंह, महारथी देवीदीन पांडेय व हंसवर के राजा रणविजय ने भीषण युद्ध लड़ा।


हुमायूं और शेरशाह के समय सन् 1530 से सन् 1556 तक राम जन्मभूमि के लिए 10 युद्ध हुए, जिसमें हिंदुओं के पक्ष से नागा साधुओं, रामानंदी संप्रदाय, गौरक्ष पंथ, निर्मोही, निर्वाणी अखाड़ों की सेना लेकर स्वामी महेशानंद जी,और हंसवर की वीरांगना रानी जयकुंवरि ने 3 हजार वीरांगनाओं की सेना लेकर भीषण युद्घ लिए और बलिदान दिया।गौरतलब है कि वीरांगना जयकुंवरि ने कुछ समय के लिए राम जन्मभूमि को मुक्त भी करा लिया था।


अकबर के समय सन् 1556 से सन् 1600 के मध्य लगभग 20 युद्ध श्रीराम जन्मभूमि को लेकर हुए, हिंदुओं की ओर से स्वामी बलरामाचार्य जी व संयुक्त हिंदू समाज ने निरंतर संघर्ष किया।टोडरमल की मध्यस्थता के कारण युद्ध विराम हुआ।


धर्मांध और क्रूरतम मुगल शासक औरंगजेब के समय सन् 1658 से सन् 1707 तक सर्वाधिक 30 युद्ध हुए। जिसमें हिंदू पक्ष की ओर से बाबा वैष्णवदास, गुरु गोविंद सिंह, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदंबा सिंह, ठाकुर गजराज सिंह ने भयंकर युद्ध किया व बलिदान दिया।


मुगलों के पतन के उपरांत अवध के नवाब सआदत अली सहित अन्य नवाबों से सन् 1856 तक संघर्ष चला, जिसमें हिन्दुओं को पूजा-पाठ करने की अनुमति मिल गई। इस अवधि अमेठी नरेश गुरुदत्त सिंह, पिपरा के राजकुमार सिंह, बाबा उद्धव दास और भीटी नरेश ने मोर्चा संभाला था।


सन् 1856 में बरतानिया सरकार ने अवध का अधिग्रहण कर लिया और फिर यहां से प्रारंभ हुआ हिन्दुओं का बरतानिया सरकार तथा मुसलमानों से संघर्ष। बरतानिया सरकार ने सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के उपरांत मुसलमानों को प्रसन्न कर अपने पक्ष में लाने के लिए 3 गुंबद वाले ढांचे के चारों ओर रेलिंग लगवाकर राम चबूतरे के मध्य दीवार खड़ी कर हिंदुओं को बाहर कर दिया इसलिए मजबूरी में हिन्दू बाहर से ही पूजा करते रहे उनके संकल्प को कोई नही डिगा सका।


बरतानिया सरकार ने हिन्दू - मुस्लिम विवाद को सुलझाने का प्रयास करने वाले निरपराध बाबा रामचरण दास और आमिर अली को फांसी पर चढ़ा दिया ताकि विवाद बना रहे। 18 मार्च 1858 के बाद से कुबेर टीला स्थित इमली के पेड़ जिस पर फांसी दी गई थी उसकी पूजा और परिक्रमा हिन्दुओं ने वर्षों तक की।


सन् 1885 में महंत रघुवरदास ने एक तत्कालीन फैजाबाद कोर्ट में राम चबूतरे पर कच्चे झोपड़े को पक्का बनाने हेतु वाद दायर किया परंतु कोर्ट ने वाद ही खारिज कर दिया। एक समय वह भी आया जब सन् 1934 में गाय काटने के प्रकरण में हिन्दुओं ने गौ हत्यारों को मारकर संपूर्ण परिसर अपने अधिकार में ले लिया था परंतु बरतानिया सरकार ने पुनः मुसलमानों को काबिज करा दिया।


सन् 15 अगस्त सन् 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया और इसके साथ ही श्रीराम जन्मभूमि के संघर्ष स्वतंत्र भारत में तृतीय कालखंड प्रारंभ हुआ जिसमें हिन्दुओं को संघर्ष पूर्वोक्तानुसार भयंकर संघर्ष करना पड़ा। सन् 1949 को अयोध्या में देवीय घटना घटी जब मस्जिद नुमा संरचना तथाकथित बाबरी मस्जिद के अंदर एक छह वर्षीय प्रकाशमान बालक को चहलकदमी करते देखा गया तदुपरांत वहां रामलला की प्रतिमा पाई गई। तत्कालीन सरकार ने हटाने का प्रयास किया परंतु के. के. नायर ने रोक लगा दी। फलतः विवादित ढांचा मानते हुए तत्कालीन सरकार ने ताला लगवा दिया।मुसलमानों की नमाज तो बंद हो गई परंतु हिन्दुओं ने राम चबूतरे और परिसर के शेष हिस्सों में पूजा-अर्चना जारी रखी।


सन् 1950 से अनवरत् न्यायालयीन जंग प्रारंभ हो गई। गोपाल विशारद और रामचंद्र दास और निर्मोही अखाड़े ने वाद प्रस्तुत किए तो वहीं सन् 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर कब्जा लेने के लिए अर्जी लगाई।


सन् 1986 में शाह बानो के प्रकरण में मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ही उलट दिया जिससे भारत में विपरीत वातावरण बनने लगा था। इसलिए वोट बैंक की आड़ में हिन्दुओं को तुष्ट करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने परम श्रद्धेय देवरहा बाबा की सलाह पर ताला हटाने और हिंदुओं को पूजा करने अनुमति के लिए सहमति दी। यह दिखावा सौदेबाजी के अतिरिक्त कुछ नहीं था।


25 वर्ष साल बाद 1986 में यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के.एम. पांडे ने 1 फरवरी, 1986 के ऐतिहासिक फैसले में विवादित ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया और हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति भी दे दी।


सन् 1989 में विवादित परिसर के पास हीअगस्त 1989 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैजाबाद जिला अदालत से टाइटल सूट अपने हाथों में ले लिया और विवादित जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। यानि पूजा-अर्चना निरंतर जारी रही। नवंबर, 1989 में तत्कालीन सरकार ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित भूमि के पास ही शिलान्यास की इजाजत दे दी। 9 नवंबर सन्1989 विहिप ने 7 घन फीट गड्ढा खोदकर नींव रखी।


श्रीराम जन्मभूमि संघर्ष का अत्यंत दुखद पड़ाव सन् 1990 में आया। जब कारसेवकों ने अयोध्या की ओर प्रस्थान किया तब कोलकाता के शरद कोठारी और रामकुमार कोठारी भी अयोध्या पहुंचे वे संघ स्वयंसेवक भी रहे थे। 30 अक्टूबर सन् 1990 को कोठारी बंधुओं ने विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया।


तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 30 हजार पुलिस बल को कारसेवकों पर अंधाधुंध गोली चलाने का आदेश देकर अत्यंत घृणित कार्य किया। पुलिस बल ने कोठारी बंधुओं घसीट कर गोली मार कर हत्या कर दी और हजारों कारसेवकों पर गोली लगी। सैकड़ों कारसेवकों का बलिदान हुआ और अनेक घायल हुए परंतु सरकारी आंकड़ों में 5 संख्या दर्ज की गई।


उक्त बलिदान के प्रतिउत्तर में 6 दिसंबर, सन् 1992 को अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े लाखों कार सेवक एकत्रित हुए और उन्होंने उस आतंक और दासता के प्रतीक विवादित ढांचे को ही ध्वस्त कर दिया।इस कालखंड में श्रीयुत अशोक सिंघल, तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी,साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती और विनय कटियार की भूमिका श्लाघनीय रही।


भगवान रामलला ढांचे से निकलकर अस्थाई टेंट में आ गए। सुप्रीम कोर्ट ने उस विवादित जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया और 6 दिसंबर, 1992 से लेकर 9 नवंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक रामलला उसी अस्थाई टेंट में विराजमान रहे, लेकिन उनकी पूजा-अर्चना और दर्शन का कार्य निरंतर संपन्न होता रहा।


16 दिसंबर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया और जांच की नौटंकी प्रारंभ होनी थी और तीन महीने में रिपोर्ट देनी थी लेकिन ऐंसा नहीं हुआ। लिब्रहान आयोग का समय जानबूझकर 48 बार बढ़ाया गया और 17 वर्ष बाद रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें विवादित ढांचे के विध्वंस में मुख्य रुप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार माना और उसकी कार्य प्रणाली को कार्पोरेट माडल की संज्ञा दी गई।


साथ विश्व हिन्दू परिषद् और बीजेपी को भी जिम्मेदार ठहराया। निश्चित ही श्रीराम जन्मभूमि के अर्ध्दसहस्त्राब्दी के संघर्ष को मंजिल तक पहुंचाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महती भूमिका रही है। तन मन धन से स्वयंसेवकों ने अपना अवदान दिया है।परम श्रद्धेय आदरणीय सर संघ चालक बाला साहब देवरस,प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैय्या, सुदर्शन जी और वर्तमान सर संघ चालक डॉ परम पूज्य डॉ. मोहन भागवत प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप श्लाघनीय योगदान है। आर.एस.एस. प्रचारक मोरोपंत पिंगले, महंत अवैद्यनाथ, विष्णु हरि डालमिया, स्वामी वामदेव और श्रीश चंद्र दीक्षित के नाम कभी न भुलाए जा सकेंगे।


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी राम जन्मभूमि का हिस्सा हिंदुओं को दिया


अप्रैल 2002 से इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन के मालिकाना हक पर सुनवाई शुरू की। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2-1 जजों के बहुमत के फैसले से विवादित संपत्ति को तीन दावेदारों में बांटने का फैसला सुनाया जन्मभूमि समेत एक-तिहाई हिस्सा हिंदुओं को, एक-तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कई याचिकाओं को देखने के बाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।


बाद के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में मध्यस्थता की कोशिशें भी की गईं, लेकिन विवाद का कोई हल नहीं निकला।आखिरकार तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर, 2019 को दशकों पुराने इस कानूनी विवाद पर फैसला सुरक्षित रख लिया। अंत में 9 नवंबर, 2019 का वह ऐतिहासिक दिन आया जब सुप्रीम कोर्ट ने सदियों पुराने इस विवाद का सदैव के लिए निपटारा कर दिया।


एतदर्थ जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी ने वेदों से श्रीराम जन्मभूमि के पुष्ट प्रमाण दिए और मुस्लिम न्यायाधीश ने जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी को देवीय शक्ति के रुप में संबोधित किया। सर्वोच्च अदालत ने संपूर्ण विवादित परिसर पर भगवान रामलला का मालिकाना अधिकार दे दिया और उनके भव्य मंदिर निर्माण के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को तीन महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी।


माननीय उच्चतम न्यायालय ने सरकार को मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में किसी महत्वपूर्ण स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। माननीय उच्चतम न्यायालय के इसी आदेश के बाद श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 5 अगस्त, 2020 को वहां भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन और आधारशिला का कार्यक्रम तय किया गया।


देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भगीरथ सहयोग से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के निर्देशन में अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हेतु भव्य मंदिर तैयार हो गया और पिंगल संवत्सर के चलते गज केसरी योग, नवपंचम राजयोग एवं बुधादित्य योग के साथ पौष शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 जनवरी 2024 को श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी। दीपावली मनाई जाएगी।एक नए युग का सूत्रपात होगा।


वस्तुतः श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का केवल धार्मिक महत्व नहीं वरन् हिन्दुओं के लिए स्व के अस्तित्व की स्थापना भी है, जो त्रेता युग से वर्तमान युग के मध्य सेतु बनेगी। श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हमारे पूर्वजों की ऐतिहासिक श्रुति परंपरा और विरासत को पुनर्जीवित कर इतिहास को प्रमाणित करती रहेगी। श्रीराम को काल्पनिक बताने वाले राष्ट्रविरोधी तत्वों का उन्मूलन होगा।


विडंबना तो देखिए कि प्रभु श्रीराम के पटवारी कहे जाने वाले विहिप के श्रीयुत चंपतराय जी की ओर से श्रीराम विरोधी तत्वों को आमंत्रण भेजा गया परंतु खलों को नहीं आना है। लेकिन खल तो खल ही होते हैं इसलिए अब श्रीराम विरोधी खल प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा में खलल डालने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। श्रीराम को काल्पनिक मानने वाले सनातन विरोधी मुहुर्त की बातें करते हैं और आदरणीय शंकराचार्यों की आड़ लेकर दुष्प्रचार करते हैं और प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी करेंगे परंतु अब ये युक्ति काम न आएगी।अब ये खल हिन्दुओं में फूट न करा पाएंगे।


फिर भी सनातन परंपरा में खलों की भी वंदना की जाती है इसलिए गोस्वामी तुलसीदास जी की खल वंदना का एक अंश विघ्न संतोषियों को प्रेषित है कि


"
बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ।। परहित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें।।


लेख


डॉ. आनंद सिंह राणा

विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर

उपाध्यक्ष इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत