छत्तीसगढ़ बीते 4 दशकों से कम्युनिस्ट आतंकवाद अर्थात नक्सलवाद का दंश झेल रहा है। इन 4 दशकों में छत्तीसगढ़ की धरती माओवादियों के द्वारा की गई नृशंस हत्याओं और आतंकी हमलों से कई बार कांप उठी है।
चाहे वो ताड़मेटला में किया गया देश का सबसे बड़ा माओवादी आतंकी हमला जो, जिसमें हमारे 76 जवान बलिदान हुए या मीनपा और अरनपुर में हुए अन्य हमले हों, जहां माओवादियों ने अपनी आतंकी घटना को अंजाम दिया हो।
यह जानकार आश्चर्य होगा कि भारत की सीमा की सुरक्षा करते हुए जितने जवान बलिदान नहीं हुए हैं, उससे अधिक जवान इस माओवादी आतंक की भेंट चढ़ चुके हैं। माओवादी आतंक के विभत्स रूप को अब पूरे देश ने देख लिया है।
यह भी सर्वविदित है कि माओवादियों का केंद्र छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र है, जहां माओवादी अपनी तमाम गतिविधियों को अंजाम देने के साथ-साथ उसकी रणनीति भी तैयार करते हैं।
यही कारण है कि केंद्र में जब से मोदी सरकार ने सत्ता संभाली है, उसने बस्तर को प्राथमिकता देते हुए यहां आक्रामक तरीके से नक्सल विरोधी अभियान चलाया है।
हालांकि 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद माओवादियों का मनोबल बढ़ा हुआ नजर आया, क्योंकि इसका कारण था कि 2018 के चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता ही कहते फिर रहे थे कि 'नक्सली क्रांतिकारी हैं।'
जब तक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही तब तक उन्होंने अपने संगठन को विस्तार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक तरफ जहां कोरोना काल में दुनिया बंद पड़ी थी, वहीं माओवादी गांव लौटे बच्चों और युवाओं को माओवादी संगठन में शामिल कराने की रणनीति बना रहे थे।
इन सब गतिविधियों के चलते जहां बीते 5 वर्षों में चुन-चुनकर जनप्रतिनिधियों की हत्याएं हुई, वहीं दूसरी ओर माओवादी संगठन भी मजबूत हुआ। हालांकि बस्तर में केंद्रीय सुरक्षाबलों की मौजूदगी ने उनका दायरा जरूर समेट दिया।
इन सब के बाद प्रदेश से कांग्रेस की सरकार जाते ही माओवादियों ने अपनी आतंकी गतिविधियों को बढ़ा दिया, और एक के बाद एक हमले शुरू कर दिए। प्रदेश की नई सरकार से मिले निर्देश के बाद सुरक्षाकर्मियों ने आक्रामक तरीके से माओवाद विरोधी ऑपरेशन लॉन्च किया, जिसके बाद अब माओवादी पूरी तरह से बैकफुट में हैं।
माओवादियों की स्थिति को लेकर बस्तर के आईजी का कहना है कि बस्तर में अब माओवादियों से निर्णायक लड़ाई होने वाली है। आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि बस्तर आने वाले सालों में माओवादी आतंक से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि माओवादियों का क्षेत्रफल अब घटता ही जा रहा है, वहीं उनके बड़े कैडर मुठभेड़ में मारे जा रहे हैं, ऐसे में बस्तर में माओवादी संगठन अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है।
दरअसल बस्तर में केंद्रीय सुरक्षाबलों द्वारा जिस तरह से माओवाद विरोधी ऑपरेशन चलाए गए हैं, उससे जवान अब माओवादियों के गढ़ में घुस चुके हैं। एक तरफ कुछ कैडर भय के कारण आत्मसमर्पण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर खूंखार माओवादी मुठभेड़ में मारे जा रहे हैं।
यही कारण है कि माओवादी अब बस्तर से बाहर अपनी जगह तलाशने का प्रयास कर रहे हैं। दरसअल केंद्र सरकार जिस आक्रामकता से माओवाद उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है, उसका आभास माओवादियों को भी है।
माओवादी अब देश के अलग-अलग हिस्सों में अपना नया ठिकाना तलाश रहे हैं। बस्तर में पूरी तरह से सफाया होने के अनुमान के चलते माओवादियों ने महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल समेत राजस्थान में भी नया ठिकाना बनाने की कोशिश की है।
बस्तर से निकल कर माओवादी एक कॉरिडोर गढ़चिरौली और विदर्भ क्षेत्र में निर्मित करने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं इनकी अर्बन नक्सल लॉबी इनके लिए मराठवाड़ा क्षेत्र में कार्य कर रही है।
दूसरी ओर कान्हा के बफर ज़ोन में भी माओवादी एक नया कॉरिडोर बनाने में लगे हुए हैं। मैकाल पर्वत श्रेणी से लगे क्षेत्र मंडला, डिंडोरी और बालाघाट से लेकर अमरकंटक और कान्हा-अचानकमार क्षेत्र में माओवादियों ने उपस्थिति दर्ज कराई है।
वहीं छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र से जुड़े झारखंड के बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र से भी माओवादियों का लगभग सफाया हो चुका है, जिसके चलते अब माओवादी झारखंड और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में पैठ बनाना चाह रहे हैं।
झारखंड की सीमा से लगे पश्चिम बंगाल के पुरुलिया क्षेत्र से एक माओवादी के गिरफ्तार होने से यह जानकारी सामने आई है कि माओवादी इस क्षेत्र में अपना नया ठिकाना तलाश रहे हैं।
यहाँ दिलचस्प बात यह है कि माओवादी जिस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं, वह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है।
यह माओवादियों का एक नया पैटर्न दिखाई दे रहा है कि वह अलग-अलग राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों में एक नया कॉरिडोर तलाश कर रहे हैं।
इसके पीछे की वजह स्पष्ट रूप से यह समझी जा सकती है कि माओवादियों को भी इस बात का अनुमान हो चुका है कि छत्तीसगढ़ और मुख्य रूप से बस्तर उनके हाथ से निकलने वाला है और बस्तर जल्द ही कम्युनिस्ट आतंक से मुक्त होने वाला है।