कम्युनिस्ट आतंकवादियों की रणनीति और हथकण्डे (भाग - 03) : भारत के विरुद्ध युद्ध में कम्युनिस्टों के हथकण्डों का निर्धारक दस्तावेज़

"Strategy and Tactics of The Indian Revolution" नाम के इस दस्तावेज को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया (माओवादी) ने 21 सितम्बर 2004 को स्वीकार किया था, जिसमें भारत में एक दीर्घकालिक कम्युनिस्ट युद्ध के लिए रणनीतियों के साथ-साथ उन पर आधारित विभिन्न दाव-पेंचो या हथकण्डों पर बात की गई है।

The Narrative World    25-Jan-2024
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“The seizure of power by armed force, the settlement of the issue by war, is the central task and highest form of revolution. But while the principle remains the same (for all countries), its application by the Party of the proletariat finds expression in various ways according to the varying conditions.”
यानी, “हथियारबंद सेना के द्वारा सत्ता पर कब्जा करना और हर मुद्दे को युद्ध से Settle करना ही (कम्युनिस्ट) क्रान्ति का सबसे महत्वपूर्ण काम है और यही इसका सर्वश्रेष्ठ प्रकार भी है। देश-काल-परिस्थिति के अनुसार कम्युनिस्ट क्रान्ति का स्वरूप चाहे बदल जाए पर उसके मूल सिद्धान्त हमेशा वही रहेंगे।ये शब्द हैं - चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओत्से तुंग के, जिसके शासन काल में 1966-1977 के बीच कथित कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौर में उसकी सत्ता द्वारा लगभग साढ़े 6 करोड़ लोगों की हत्या की गई थी। इसी माओ को प्रेरणास्रोत मान कम्युनिस्ट आतंकवादियों ने हिंसा, भय और आतंक के सहारे भारत के विरुद्ध एक Protracted War यानी एक लम्बी जंग छेड़ रखी है।


इस शृंखला के पिछले लेख में हमने बात की थी कि जिसे हम-आप सभी अज्ञानवश नक्सलवाद कह बैठते हैं, दरअसल वह मार्क्स, लेनिन, ग्राम्शी और माओ आदि की विदेशी विचारधारा पर आधारित एक मायावी युद्ध है। और फिर भी यदि आपके मन में इसके युद्ध होने को लेकर थोड़े-बहुत संशय के बादल मंडराते रह गए होंगे, तो वे भी, इस लेख के आरंभ में माओ के शब्द पढ़कर छँट हो गए होंगे। लेकिन यह भी हो सकता है कि मैं जब बार-बार माओवाद यानी कम्युनिस्ट आतंकवाद को अत्याचारों के विरुद्ध कमजोर लोगों की एक गैर-राजनीतिक प्रतिक्रिया न कहकर, इसे हमारे भारत देश के विरुद्ध एक विशुद्ध राजनीतिक-सांस्कृतिक युद्ध कहता हूं, तो आपको विश्वास करने में कठिनाई होती होगी। किन्तु सच मानिए श, ये कहने में मुझे जरा भी कठिनाई या हिचक नहीं है। वरन् मैं तो पूरी दृढ़ता के साथ कहता हूँ कि मेरी यह बात किन्हीं थोथे तर्कों पर आधारित नहीं है। मेरे ऐसा कहने का एक बड़ा कारण यह है कि हम सबने ने यह अवश्य सुना है कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं जीते जाते, बल्कि उम्दा रणनीति और उस पर आधारित बेहतरीन दाव-पेंचों के दम पर जीते जाते हैं। तो जरा आप ही सोचिए कि यदि यह कथित नक्सलवाद महज दबे-कुचले लोगों की प्रतिक्रिया ही होता, तो भला इसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया के नाम से भारत के विरुद्ध एक लम्बी जंग की रणनीति और दाँव-पेंच के निर्धारण के लिए इतना विस्तृत दस्तावेज़ तैयार करने की क्या आवश्यकता होती?


और पिछले लेख में हमने बात भी की थी कि कैसे 1964 में सीपीआई यानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया के विभाजनस्वरूप माओ में अपना आदर्श ढूंढने वाले कम्युनिस्ट धड़े ने पहले सीपीआई (मार्क्स-लेनिनवादी) का रूप धरा और फिर 2004 में सीपीआई (माओवादी) का। और इसी साल यानी 2004 में ही इन्होंने एक रणनीतिक दस्तावेज़ तैयार कर भारत में कम्युनिस्ट युद्ध की अपनी रणनीतियों और हथकण्डों को आकार दिया, जिस पर वे आज भी कार्य कर रहे हैं। यही दस्तावेज़ हमारी इस हमारी आलेख शृंखला की प्रधान विषय-वस्तु है।


"Strategy and Tactics of The Indian Revolution" नाम के इस दस्तावेज को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया (माओवादी) ने 21 सितम्बर 2004 को स्वीकार किया था, जिसमें भारत में एक दीर्घकालिक कम्युनिस्ट युद्ध के लिए रणनीतियों के साथ-साथ उन पर आधारित विभिन्न दाव-पेंचो या हथकण्डों पर बात की गई है। कुल 146 पृष्ठों के इस दस्तावेज़ में कुल 13 अध्याय हैं, जो दो भागों, एक रणनीति और दूसरे हथकण्डे, में विभक्त हैं। पहले भाग में कम्युनिस्ट आतंकियों की रणनीति से जुड़े कुल 8 अध्याय हैं, और बाकी के 5 अध्याय हथकण्डों वाले भाग में हैं। सबसे आखिर में सभी कम्युनिस्टों से इस दस्तावेज में निर्धारित की गईं रणनीतियों और दाव-पेंचों के अनुसार कम्युनिस्ट युद्ध को और तेज करने व इसका दायरा बढ़ाने का आह्वान किया गया है।


पर आप सोच रहे होंगे कि ये दस्तावेज इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं? आखिर डेढ़ सौ पन्नों से क्या ही कुछ होगा। तो इसके जवाब में इसी दस्तावेज की भूमिका से एक पंक्ति में यहाँ उद्धृत करता हूँ। "We learnt from the experiences of the Russian and Chinese revolutions that we have to formulate both political and military Strategy in order to carry out any revolution." अर्थात्, "हमने रूस और चीन की कम्युनिस्ट क्रान्तियों से ये सीखा है कि यदि हमें भारत में भी कम्युनिज़्म को जीत दिलानी है, तो हमें राजनैतिक और सैन्य दोनों तरह की रणनीतियाँ बनानी होंगी।" पर कैसी रणनीति और कैसे हथकण्डे? तो इन आतंकवादियों के अनुसार कम्युनिस्ट युद्ध के किसी चरण में कथित सर्वहारों के प्रहार की मुख्य दिशा का निर्धारण ही रणनीति है। और युद्ध के इस चरण में सामने आने वाले उतार-चढ़ावों के अनुसार कैसा व्यवहार हो, या 'Line of Conduct' कौन सी हो, इसका निर्धारण ही प्रमुख दाव है। ये दाव-पेंच या हथकण्डे समय के अनुसार जंग के तरीके और स्वरूप या 'Forms of Struggle' के साथ-साथ कम्युनिस्टों के संगठन के स्वरूप आदि का निर्धारण करते हैं।


पर इनका निर्धारण कैसे किया जाए, तो इसके लिए माओवादियों ने इस दस्तावेज में रूस के कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन को उद्धृत करते हुए लिखा है कि "It is important to bear in mind the guidelines given by Com. Stalin that theory should guide the Programme; Programme should guide the Strategy; and Strategy should guide the Tactics. The strategy can be correctly worked out only by basing itself on the data provided by, and the conclusions drawn from, the theory and programme of Marxism-Leninism-Maoism. अर्थात् "हमें कॉमरेड स्टालिन की एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सिद्धान्त ही हमारी मूल योजना को दिशा दिखाएँ, मूल योजना से रणनीति तय हो और यह रणनीति ही विभिन्न हथकण्डों के निर्धारण में दिशा दिखाए। हमारी रणनीति तभी अच्छी तरह अमल में लाई जा सकेगी, जब यह मार्क्स-लेनिन और माओ के विचारों पर आधारित सिद्धान्तों और योजना के अनुरूप डेटा और उनके निष्कर्षों पर आधारित हो।"


कुल मिलाकर दुनिया को कम्युनिस्ट बनाने के प्रयोजन से मार्क्स, लेनिन और ग्राम्शी के सिद्धान्त और माओ की लम्बी जंग की योजना भारत में कम्युनिस्टों की रणनीति का निर्धारण करते हैं, और इस रणनीति पर अमल करते हुए वे समय-समय पर अलग-अलग हथकण्डे अपनाते रहते हैं। इस दस्तावेज के अनुसार भारत में माओवादियों ने अपनी रणनीति को दो भागों में बनाया है, पहली राजनीतिक और दूसरी सैन्य रणनीति, जिनके तहत कम्युनिस्ट आतंकवादियों की राजनीतिक रणनीति का प्रधान कार्य है शत्रु और मित्र की पहचान। इसके लिए उन्होंने भारतीय समाज में विद्यमान सभी कथित वर्गों का विश्लेषण करने के कार्य पर जोर दिया है। दस्तावेज की भूमिका में लिखा है, "The political strategy of the Indian democratic revolution is to unite, under the leadership of the proletariat, all the motive forces (Firmest ally of proletariat, reliable ally of Urban petty bourgeoisie and National bourgeoisie) which constitute the vast majority—almost nine-tenths—of the Indian population." यानी, "कम्युनिस्ट युद्ध के लिए सभी प्रेरक ताकतों, जैसे - सर्वहारों के मजबूत गठबन्धन, शहरों में रहने वाले निचले पूंजीवादियों और कतिपय राष्ट्रीय प्रवृत्ति के बुर्जुआ लोगों के विश्वसनीय गठजोड़ों आदि को, जो भारत की जनसंख्या का 90% भाग है, उन्हें एक नेतृत्व के तले एक करना भारत में कम्युनिस्ट क्रान्ति की राजनीतिक रणनीति होगी।"


वहीं यदि हम इन माओवादियों की सैन्य रणनीति की बात करें तो युद्ध को लम्बा खींचना, बहुत लम्बा खींचना उनकी महत्वपूर्ण रणनीति है, जिसे वे 'Protracted War (प्रोट्रैक्टेड वॉर)' कहते हैं। इसी पर एक और बात माओवादियों के इस रणनीतिक दस्तावेज में आती है, वह यह कि "The military strategy to be one of protracted people’s war, as enunciated by comrade Mao—of establishing revolutionary base areas first in the countryside where the enemy is relatively weak and then to gradually encircle and capture the cities which are the bastions of the enemy forces." अर्थात्, "युद्ध को बहुत लम्बा खींचने की माओ द्वारा बतायी गयी रणनीति हमारी सैन्य रणनीति होगी। इसके लिए हमें देश के उन इलाकों में अपनी फौज के अड्डे बनाने होंगे, जहाँ शत्रु यानी भारत सरकार अपेक्षाकृत रूप से कमजोर है। एक बार सैन्य अड्‍डे बना लेने के बाद हम शहरों को घेरने और उनपर कब्जा करने आगे बढ़ेंगे, जो शत्रु के स्थायी आधार हैं।" और इस कथन के आलोक में जब आप इसका विचार करेंगे कि भारत में आज जहां-जहां भी ये माओवादी आतंकी मजबूत है, वे सभी ऐसे ही घने जंगलों से ढंके जनजातीय क्षेत्र हैं; तो आपको यह स्पष्ट होगा कि जंगलों में इन्होंने अपने स्वार्थ के लिए अपने अड्डे बनाए हैं, न कि जनजातीय लोगों के हक के लिए, जैसा कि अक्सर आप सुनते रहते हैं।


और-तो-और माओवादियों का ये भी मानना है कि विश्व के बाकी देशों से खुद को अलग रखकर किसी देश में कम्युनिस्ट युद्ध की इन रणनीतियों और दाव-पेंचों पर काम नहीं किया जा सकता और इसीलिए वे भारत के बाहर बैठी ताकतों का साथ पाने की बात भी करते हैं। कुल मिलाकर देश में एक तरफ लोगों को स्थापित सरकारों के खिलाफ लामबंद करना, Mobilize करना और दूसरी तरफ जंगलों में अपने फौजी अड्डे बनाकर देश के खिलाफ युद्ध को जितना हो सके उतना लम्बा खींचना उनकी प्रधान रणनीति है, जिसमें ये आतंकवादी भारत के बाहर से भारत को तोड़ने में लगी ताकतों से भी गठबन्धन कर रहे हैं।


मेरे विचारों में अब आप एक बात तो समझ ही गए होंगे कि यह कम्युनिस्ट आतंकवाद भारत के विरुद्ध एक अच्छी तरह सोची-समझी जंग है, जिसका मकसद भारत सहित पूरी दुनिया को कम्युनिस्ट बनाना है। तो अब इसके आगे की बात हम अगले लेख में करेंगे, जहाँ हम पहले इस कम्युनिस्ट दस्तावेज के रणनीतिक भाग के पहले अध्याय पर बात करेंगे।


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सन्दर्भ -


01. “Quotations From Chairman Mao Tse-Tung (or The Little Red Book)”, First published in 1966 by Peking Foreign Language Press, E-Book format - 2019 by David Quentin & Brian Baggins for the Marxists Internet Archive.


02. Joseph Stalin, “Problems of Leninism”, pp. 80, 82, 84.


03. “Strategy & Tactics of the Indian Revolution”, Central Committee (P) of the CPI (Maoist), As adopted at the 9th Congress of theParty in 2001, published on 21 September 2004.


लेख

ऐश्वर्य पुरोहित

शोधार्थी
स्तंभकार