बस्तर में '6 माह की बच्ची' का रक्त बहाकर लाई जा रही कम्युनिस्ट क्रांति

कम्युनिस्ट आतंक का यह स्वरूप भारत को भीतर ही भीतर खंडित करने का षड्यंत्र रच रहा है, जिसके लिए वह निर्दोष नागरिकों को अपना निशाना बना रहा है। माओवादियों के इस आतंक का शिकार अब पुरुष, महिलाएं, वृद्ध, किसान, युवा ही नहीं बल्कि 6 माह के बच्चे भी बन रहे हैं।

The Narrative World    05-Jan-2024   
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कम्युनिस्ट विचार का आतंक भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा है
, उसे केवल एक वाक्य से समझा जा सकता है, और वह है 'भारत की सीमा पर जितने सुरक्षाकर्मी बलिदान नहीं हुए हैं, उससे अधिक सुरक्षाकर्मी माओवादियों-नक्सलियों से लड़ते हुए बलिदान हो चुके हैं।'


कम्युनिस्ट आतंक का यह स्वरूप भारत को भीतर ही भीतर खंडित करने का षड्यंत्र रच रहा है, जिसके लिए वह निर्दोष नागरिकों को अपना निशाना बना रहा है। माओवादियों के इस आतंक का शिकार अब पुरुष, महिलाएं, वृद्ध, किसान, युवा ही नहीं बल्कि 6 माह के बच्चे भी बन रहे हैं।


एक ऐसी भयावह घटना छत्तीसगढ़ के बस्तर से सामने आई है, जिसे सोच कर भी रूह कांप जाती है। माओवादी आतंकियों की गोली से बस्तर के बीजापुर जिले में एक 6 माह की बच्ची की मौत ने एक तरफ़ जहां माओवादियों के कम्युनिस्ट विचार की वीभत्सता को उजागर किया है, वहीं कम्युनिस्ट विचारकों के मुंह में ताला भी लगा दिया है।


यदि इस घटना को देखें तो समझ आता है कि माओवादियों ने अपनी इस खूनी क्रांति के दिखावटी पेड़ को सींचने के लिए अब शिशुओं के रक्त का उपयोग करना भी आरंभ कर दिया है।


दरअसल नववर्ष के पहले ही दिन माओवादी आतंकियों ने बीजापुर जिले में घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला किया। इस हमले के दौरान एक स्थानीय ग्रामीण महिला अपनी बच्ची को लेकर गुजर रही थी।


इस बीच माओवादियों की गोली ना सिर्फ उस महिला को लगी बल्कि उसके 6 माह की बच्ची को भी लगी। माओवादियों की गोली से बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं ग्रामीण महिला बुरी तरह घायल हुई, जिसे सुरक्षाबलों ने उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया।


माओवादियों के द्वारा की गई गोलीबारी का जवाब सुरक्षाबलों ने भी दिया, लेकिन जिस तरह से माओवादियों ने आम ग्रामीण पर गोली चलाई, वह हतप्रभ कर देने वाली घटना थी। माओवादियों के इस हमले में सुरक्षाबल के 2 जवान भी घायल हुए हैं।


लेकिन सबसे बड़ी बात यह निकल कर आती है कि जब माओवादियों को सुरक्षाबल के जवान ढेर करते हैं, तो उनके मानवाधिकार की बात करने वाले अर्बन नक्सल समूह और कम्युनिस्ट विचारक मीडिया से लेकर कोर्टरूम तक आवाज़ उठाते हैं, लेकिन अब जब 6 माह की छोटी बच्ची पर माओवादियों ने गोली चलाई है, तब क्या मानवाधिकार की बात नहीं होगी ?


क्या कम्युनिस्ट विचारकों की नजर में उस 6 माह की बच्ची का कोई मानवाधिकार नहीं है ? क्या कम्युनिस्ट समूहों के लिए उस 6 माह की बच्ची की जान की कोई कीमत नहीं है ? दरअसल यही कम्युनिस्ट विचार की सच्चाई है।


यह तथाकथित कम्युनिस्ट क्रांति बच्चों से लेकर वृद्धों के खून से की जाती है, जिसमें केवल और केवल रक्त बहाया जाता है। इस तथाकथित कम्युनिस्ट क्रांति का परिणाम केवल जनसंहार ही होता है।


कम्युनिस्टों का विचार और उनकी हिंसा को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि माओवादी आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर आरोप लगाने या उन्हें मुठभेड़ में कमजोर करने के लिए ही उस ग्रामीण महिला पर गोली चलाई हो, जिसमें छोटी बच्ची की मृत्यु हुई है। देखा जाए, तो कुछ भी सम्भव है, क्योंकि कम्युनिस्ट विचार का एक ही हथियार है, वह है 'आतंक'