चीनी कम्युनिस्ट पार्टी : तानाशाही और नरसंहार

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और नेताओं के पास कानूनी या अवैध रूप से कितनी संपत्ति है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन अगर कोई इसके बारे में जानने की कोशिश करता है, तो उसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की यातनाओं का सामना करना पड़ता है।

The Narrative World    09-Jan-2024   
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चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना को एक शताब्दी से भी अधिक समय हो चुका है, और यह पूरी एक शताब्दी न केवल चीन और पड़ोसी देशों में रहने वाले लोगों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक हैं।


चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी इतिहास के आईने में वह काला चेहरा है, जिसने अपने हर सच को पूरी दुनिया से छुपाने की कोशिश की। हालांकि तमाम कोशिशों के बाद भी चीन की कई सच्चाई सामने आ गई है.


लेकिन, चीन के कई ऐसे सच हैं जो आज भी पूरी दुनिया के साथ-साथ चीन के आम लोगों से भी छिपे हुए हैं और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कभी भी इन सच्चाईयों को सामने नहीं आने देना चाहती और न ही उस पर कभी बात करना चाहती है।


उदाहरण के लिए, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी दावा करती रही है कि उसके 95 मिलियन से अधिक सदस्य हैं, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उनकी सूची को कभी सार्वजनिक नहीं की गई।


इसके अलावा, सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अपनी वित्तीय प्रणाली यानी पार्टी फंड और पार्टी नेताओं की आय, संपत्ति के बारे में सभी जानकारी गोपनीय रखती है। हालांकि, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्येक सदस्य को अपनी कुल आय का न्यूनतम 2% पार्टी फंड में दान करना आवश्यक है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और नेताओं के पास कानूनी या अवैध रूप से कितनी संपत्ति है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन अगर कोई इसके बारे में जानने की कोशिश करता है, तो उसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की यातनाओं का सामना करना पड़ता है।


गौर करने वाली बात यह है कि एक पत्रिका ने खबर दी थी कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को चंदे में मिलने वाला पैसा एक अरब डॉलर से भी ज्यादा है, जो हर साल बढ़ रहा है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने सौ साल के इतिहास में दर्जनों नरसंहार किए हैं, लेकिन इन नरसंहारों में क्या हुआ और कितने लोग मारे गए, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। चीनी तानाशाह माओत्से तुंग की तथाकथित क्रांतिकारी नीतियों के कारण लाखों लोग मारे भी गए हैं, लेकिन चीन ने हमेशा इन नीतियों की प्रशंसा की है।


चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ग्रेट लीफ फॉरवर्ड से लेकर तियानमेन चौक तक और तिब्बत से शिनजियांग तक मासूमों का खून बहाया है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का यह भीषण कारनामा आज भी जारी है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने सौ साल के इतिहास में विरोध की किसी भी आवाज को दबाने में देर नहीं की है। आज भी अगर कोई चीन में किसी भी तरह की गतिविधि करता है जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ है, तो उसे या तो गिरफ्तार कर लिया जाता है या मार दिया जाता है।


चीन की जेलों में लाखों लोग होंगे जिन्होंने चीन के गलत कामों को बेनकाब करने की कोशिश की है, जिनमें कई वकील, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और छात्र शामिल हैं।


इन सबके अलावा एक और बात जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया से छुपाती है वह है इसकी बैठकें। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठकों में एक पंचवर्षीय कांग्रेस शामिल होती है, जो आमतौर पर निर्णयों को सर्वसम्मति से अपनाने के साथ समाप्त होती है।


चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सभी बैठकें बंद दरवाजों के पीछे पूरी तरह से गुप्त हैं, क्या निर्णय लिए गए और दरवाजे के पीछे क्या हुआ, पूरी तरह से गोपनीय रखा जाता है।


कुल मिलाकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सच्चाई उसके मुखिया और चंद लोगों को ही पता है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कई घिनौने सच अभी भी पर्दे के पीछे हैं और यह पर्दा कब उठेगा कोई नहीं जानता।


कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किए गए नरसंहार


चीनी तानाशाह माओ जेडॉन्ग यानि माओ त्से तुंग ने अपनी मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा के प्रसार के लिए साल 1942 में यानान सुधार आंदोलन शुरू किया।


इस सुधार आंदोलन में, माओ जेडॉन्ग का उद्देश्य 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी' में शामिल हुए नए लोगों को मार्क्स और लेनिन के विचारों को स्वीकार कराना यानि कम्युनिस्ट बनाना था जिसके लिए माओ ने अपनी सेना को खुली छूट दे रखी थी।


इस कथित सुधार आंदोलन में जो लोग अपनी विचारधारा के प्रति अडिग रहे उनकी हत्याएं कर दी गईं, आंकड़े बताते हैं माओ की कम्युनिस्ट सेना ने सुधार आंदोलन के नाम पर 10000 से अधिक ऐसे लोगों का खून बहाया जिन्होंने कम्युनिस्ट बनने से इंकार कर दिया।


इसके अलावा, साल 1958 से 1962 तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने माओ जेडॉन्ग के नेतृत्व में 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' क्रांति की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य चीन की कृषि अर्थव्यवस्था को साम्यवादी बनाना था।


इसकी शुरुआत किसानों से उनकी कृषि योग्य जमीनों को छीनने से हुई और कुछ ही महीनों में चीन में कुछ भी निजी नही रह गया था।


यानि चीन में जो भी था वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का था और चीन में रहने वाले लोग 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' की वजह से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के ही सैनिक की तरह हो गए थे।

माओ चाहता था कि लोगों से जमीन छीन कर इसमें नए तरीके से खेती हो जिससे उत्पादन में वृद्धि होगी और चीन से अनाज का निर्यात किया जा सकेगा।


लेकिन अनाज उत्पादन में वृद्धि की जगह कमी हो गई, इस दौरान माओ ने अनाज का निर्यात शुरू कर दिया चूंकि चीन में अनाज का उत्पादन कम था और इसके बाद भी निर्यात किया जा रहा था तो पूरे देश में खाद्यान्न की कमी हो गई और चीन अकाल के मुहाने पर आ खड़ा हुआ।


माओ ने अब भी निर्यात बंद नही किया था जिसके कारण चीन में 25 लाख से अधिक लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' नीति का शिकार हो कर मौत के मुंह मे समा गए।


इतना ही नही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1966 में सांस्कृतिक क्रांति की घोषणा की, इस घोषणा के बाद देश में सभी पुरानी परंपराओं, मान्यताओं और संस्कृति को नष्ट करने का अभियान शुरू हुआ।


इस कथित क्रांति में माओ द्वारा लिखित 'लिटील रेड बुक' हर एक व्यक्ति को पढ़ने के लिए अनिवार्य कर दिया गया और जिन लोगों ने चीन की पुरानी परंपराओं और संस्कृति को अपनाए रखा ऐसे करोड़ों लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर शुरू हुआ दमन चक्र दस सालों तक चलता रहा और साल 1976 में माओ की मृत्यु के साथ ही समाप्त हुआ।


इसके बाद साल 1989 में 3 और 4 जून की दरमियानी रात चीन के तियानमेन चौक में जो हुआ वह चीनी इतिहास की सबसे निर्मम रात है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की काली करतूत का एक और उदाहरण।


चीन के तियानमेन चौक में लाखों छात्र इकट्ठा हो कर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे।


लेकिन छात्रों का यह विरोध कम्युनिस्ट सरकार को रास नही आया और सरकार ने सेना को तियानमेन चौक की 'सफाई' का आदेश थमा दिया।


कम्युनिस्ट सेना, गोली बारुद से लैश हो कर तियानमेन चौक की ओर चल पड़ी. इस रात तियानमेन चौक की सड़कों पर पहली बार टैंक दौड़ रहे थे।


चीनी सेना तियानमेन चौक पहुंचते ही आंदोलनकारी छात्रों की 'सफाई' में लग गई और बेगुनाह छात्रों पर लगातार गोलियों का बरसना शुरू हो गया। इस रात तियानमेन चौक में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा 10 हज़ार से अधिक छात्रों की हत्या कर दी गई।