जनजातीय समाज की संस्कृति की सुरक्षा के लिए बस्तर में कन्वर्जन रोकना आवश्यक

एक तरफ जहां माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को संभल-संभल कर कार्य करना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर ईसाई धर्म प्रचारक अपने परमेश्वर के सबसे प्रभावशाली होने की बात स्कूल के विद्यार्थियों के कोमल मन में स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

The Narrative World    09-Jan-2024   
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छत्तीसगढ़ के घोर माओवाद से प्रभावित बस्तर क्षेत्र में बीते शताब्दियों से ईसाई मिशनरियों के द्वारा स्थानीय जनजातियों का अवैध कन्वर्ज़न कराया जा रहा है।

ईसाई मिशनरियों के द्वारा कराए जा रहे इन अवैध मतांतरण की गतिविधियों के कारण अब पूरे क्षेत्र में तनाव की स्थिति बन रही है।


हाल-फ़िलहाल में ही जिस तरह से बस्तर संभाग से मतांतरण की गतिविधियों से संबंधित घटनाएं सामने आई हैं, उसके बाद अब इस विषय पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक हो चुका है।


दरअसल बस्तर के विभिन्न हिस्सों में ईसाई मिशनरियां स्थानीय वनवासियों/जनजातियों को प्रलोभन देकर या गुमराह कर उनका मतांतरण करवा रही हैं। कई लोगों का मानना है कि इन मामलों में पुलिसिया कार्यवाई भी अत्यधिक कमजोर और नगण्य है।


भूपेश बघेल की सरकार के दौरान एक निजी अखबार में छपे आलेख में एक पत्रकार ने दावा किया था कि क्षेत्र के संवेदनशील मामलों में पुलिस पर अदृश्य शक्तियों का दबाव सहज महसूस किया जा सकता था।


एक तरफ जहां माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को संभल-संभल कर कार्य करना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर ईसाई धर्म प्रचारक अपने परमेश्वर के सबसे प्रभावशाली होने की बात स्कूल के विद्यार्थियों के कोमल मन में स्थापित करने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा बस्तर क्षेत्र में स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों को दिग्भ्रमित करने के लिए ईसाई मिशनरियों के द्वारा चर्च में कैंसर जैसी बीमारियों के ठीक होने के बात भी की जाती है।


बस्तर जिले के भानपुरी थाना क्षेत्र से सामने आये एक मामले का जिक्र महत्वपूर्ण है। पिछली सरकार के दौरान यहाँ ग्रामीणों को ईसाई धार्मिक साहित्य और 1-1 हजार रुपये नगद देकर मतांतरण के लिए प्रलोभन देने का प्रयास किया जा रहा था।


यह बात भी सामने आई थी कि स्थानीय ग्रामीणों और कुछ संगठनों के विरोध के बाद 2 लोगों के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई, लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा इस बात को सुनिश्चित नहीं किया गया कि क्षेत्र में ऐसी गतिविधियां दोबारा संचालित नहीं की जाएगी।


बस्तर के लगभग सभी जिलों में धर्मांतरण को लेकर आक्रोश देखा जा रहा है। नारायणपुर और कोंडागांव जैसे जिले में तो ग्रामीण हजारों की संख्या में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन भी कर चुके हैं। लेकिन जैसा कहा गया है कि पुलिस पर एक 'अदृश्य दबाव' था, शायद यही कारण है कि इन विरोध प्रदर्शनों के बाद भी मिशनरियों पर कोई ठोस कार्यवाई नहीं की गई।


कांग्रेस सरकार में सुकमा पुलिस अधीक्षक द्वारा एक पत्र सभी थानेदारों को जारी भी किया गया था। इसमें ईसाई मिशनरियों द्वारा स्थानीय वनवासियों का धर्म परिवर्तन करवाने की बात कही गई थी।


इस पत्र के सामने आने पर जमकर सियासी बवाल मचा था, लेकिन परिणाम वही का वही रहा।


अबूझमाड़ क्षेत्र के 10 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने इकट्ठा होकर धर्मान्तरण के विरुद्ध व्यापक प्रदर्शन किया था। इसके बाद भी भूपेश बघेल सरकार और शासन के कानों में जूँ तक नहीं रेंगा।


कांग्रेस सरकार के ही समय सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा और बस्तर जिले के 30 से अधिक गांव के ग्रामीणों ने गुमरगुंडा शिवानंद आश्रम में पहुँचकर विशाल आयोजन किया था जिसमें पूरे क्षेत्र से मतान्तरण की गतिविधियों को बंद कराने का आह्वान किया था।


इस बैठक में शामिल हुए ग्रामीणों ने कहा था कि, न तो हम किसी के बहकावे में आकर अपना धर्म बदलेंगे और न ही किसी को बदलने देंगे।


नारायणपुर की घटना तो कांग्रेस सरकार के ऊपर एक ऐसा कलंक है, जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। ईसाइयों की भीड़ ने जिस तरह से जनजाति ग्रामीणों पर हमला किया, वह अक्षम्य अपराध था। लेकिन कांग्रेस की सरकार ने इस दौरान भी ईसाइयों का पक्ष लिया और जनजातियों को ही जेल में डाल दिया।


दरअसल बस्तर का पूरा क्षेत्र जनजातीय बहुल क्षेत्र है। यह क्षेत्र अपनी विशेष वनवासी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, रीति-रिवाज के लिए जाना जाता है।


ऐसे में ईसाई मिशनरियों के द्वारा क्षेत्र के वनवासियों का धर्म परिवर्तन कराने के कारण ना सिर्फ जनजाति संस्कृति दूषित हो रही है, बल्कि क्षेत्र में वनवासी परंपरा का पतन भी हो रहा है।


जनजाति संस्कृति पर ईसाई संस्कृति को हावी करने का प्रयास किया जा रहा है। इन्हीं गतिविधियों के कारण स्थानीय ग्रामीण अत्यधिक आक्रोशित हैं।


ऐसी घटनाएं संभाग के कोंडागांव, नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले से सामने आ चुकी है, जहां पर धर्म परिवर्तन की घटनाओं के कारण आपसी वैमनस्यता अत्यधिक बढ़ गई है।


पूजन विधि हो या त्यौहार मनाने की परंपरा, खान-पान हो या रीति रिवाज, अंतिम संस्कार की प्रथा हो या कोई अन्य संस्कार, सभी स्थितियों में ईसाई संस्कृति की घुसपैठ ने क्षेत्र में तनाव बढ़ाने का कार्य किया है।


ऐसे में आवश्यक है कि बस्तर जैसे स्थानों की संस्कृति, परंपरा और विशिष्टता को संरक्षित किया जाए और इसे दूषित होने से बचाया जाए।