अयोध्या से बने सद्भाव और उल्लास के वातावरण को बिगाड़ने का षड्यंत्र

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा आयोजन के समय वहाँ की सरकार और उनके कुछ नेताओं की टिप्पणियाँ भड़काऊ और भारत के मुस्लिम समाज को उकसाने वालीं थी। पर भारत का सद्भाव यथावत रहा। लेकिन अब हल्वानी की घटना मानों चिनगारी का काम कर रही है।

The Narrative World    13-Feb-2024
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अपने जन्मस्थान अयोध्या में रामलला के विराजमान होने की उमंग पूरे संसार में है। मुस्लिम समाज के अनेक प्रतिनिधि समारोह में उपस्थित थे, उनकी टिप्पणियाँ भी सकारात्मक आईं। लेकिन उमंग से भरी इन समरस अनुभूतियों के वातावरण को बिगाड़ने का षड्यंत्र शुरु हो गया है। हल्दवानी की घटना के बाद न केवल सोशल मीडिया पर भड़काऊ सामग्री बढ़ रही है, वहीं बरेली के तौफीक रजा, बंगाल के मंत्री सिद्दीकुल्लाह और आई एम आई एम के नेता उबेसुद्दीन ओबैसी के खुलकर ब्यान आये। अब पूरे देश को उमंग के साथ सावधान रहने की आवश्यकता है।

रामलला अपने जन्मस्थान अयोध्या में विराजमान हो गये हैं। वह अवसर साधारण नहीं था। सैकड़ों वर्षों के संघर्ष और लाखों प्राणों के बलिदान के बाद यह संभव हो पाया है। इतिहास का संघर्ष चाहे जैसा रहा हो पर पिछले काफी वर्षों से भारतीय मुस्लिम समाज में एक बड़ा वर्ग अयोध्या के सत्य को स्वीकार करने लगा था कि अयोध्या में जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद थी वहाँ पहले भव्य और विशाल मंदिर रहा है।


मुस्लिम समाज के कुछ प्रबुद्ध जनों ने सार्वजनिक तौर पर भी इस बात को रखा। इससे देश में एक सकारात्मक वातावरण और समन्वय का भाव बढ़ा। यह ठीक है कि मुस्लिम समाज में कुछ कट्टरपंथी समन्वय के बजाय आक्रामक शैली से समाज अपनी ओर आकर्षित करने की राजनीति करते रहे, फिर भी अयोध्या निवासी अधिकांश मुस्लिम समाड इस मुद्दे से जुड़ा और उनमें एक समन्वय का भाव सदैव बना रहा। इतिहास के पन्नों में ऐसे सकारात्मक भाव की झलक 1857 की क्रांति और बाद में चले मुकदमें के दौरान भी देखने को मिलती है।


1857 की क्रांति के समय महंत बाबा रामचरणदास और मौलवी अमीर अली के बीच सहमति बन गई थी, और मौलवी अमीरअली यह स्थान जन्मस्थान मंदिर केलिये देने को तैयार हो गये थे। इस समझौते पर बादशाह बहादुरशाह जफर की सहमति भी हो गई थी। किन्तु क्रांति असफल हुई और 18 मार्च 1858 को बाबा रामचरणदास एवं मौलवी अमीरअली दोनों को अयोध्या में कुबेर के टीला पर फाँसी दे गई थी। कुबेर के टीला पर इन दोनों बलिदानियों का स्मारक बना है। इनके बलिदान के बाद यह समस्या यथावत रह गई।


बाद की कानूनी लड़ाई में भी समरसता का यह अंकुर बना रहा। न्यायालय में इस स्थल के दावे के लिये कुल चार मुकदमें आये। इनमें तीन मंदिर पक्ष के और एक मस्जिद पक्ष का। जिला न्यायालय में चारों की सुनवाई एक साथ होने लगी। मंदिर पक्ष की ओर से प्रमुख पक्षकार रामचंद्र परमहंस थे तो मस्जिद पक्ष की ओर से हाशिम अंसारी। अयोध्या इन दोनों प्रतिद्वन्दियों की आत्मीयता और समन्वय की साक्षी है। अक्सर एक ही रिक्शे या एक ही तांगे में बैठकर दोनों अदालत पहुंचते थे।


जिला अदालत से उच्चतम न्यायालय तक विभिन्न स्तरों पर विभिन्न सुनवाई के बाद पुरातात्विक अनुसंधान के आदेश हुये और उच्चतम न्यायालय में पाँच सदस्यीय बैंच भी बनी। पुरातात्विक अनुसंधान टीम में सभी धर्मों के लोग थे। इसके एक सदस्य केके मोहम्मद थे, जिन्होंने मस्जिद के भीतर मंदिर होने के प्रमाण खोजे यही प्रमाण मंदिर पक्ष के दावे का मजबूत आधार बने। के के मोहम्मद ने 2019 में अपने एक साक्षात्कार में कहा था "पुरातात्विक रूप से यह कहने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि विवादास्पद बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष थे। वहां एक भव्य मंदिर की संरचना थी।"


पुरातात्विक अनुसंधान टीम ने जो रिपोर्ट अदालत को सौंपी वह सर्व सम्मत थी। उच्चतम न्यायालय की जिस बैंच का अंतिम निर्णय आया, वह भी सर्व सम्मत था। बैंच के पाँच सदस्यों में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर थे। यह बैंच भी इस निष्कर्ष पर एकमत थी कि उस स्थान पर पहले मंदिर था। जस्टिस अब्दुल नजीर ने अपनी टीप में भी मस्जिद निर्माण से पहले वहाँ मंदिर के अस्तित्व को स्वीकार किया।

समरसता, समन्वय और सद्भाव पुरातात्विक अनुसंधान अथवा न्यायालय के निर्णय तक ही सीमित न रहा। अनुसंधान के सर्व सम्मत निष्कर्ष और अदालत के सर्व सम्मत निर्णय से ही यह वातावरण बना कि मंदिर निर्माण के कार्य में भी सभी धर्मों के लोग शामिल हुये।


समरसता और समन्वय की झलक 22 जनवरी 2024 के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में थी। इमाम संगठन प्रमुख मोहम्मद उमर इलियासी सहित बड़ी संख्या में मुस्लिम धर्मगुरु उपस्थित थे। अयोध्या में बन रही मस्जिद ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि रामजन्म भूमि पर बन रहे इस विशाल मंदिर के प्रति किसी को कोई आपत्ति नहीं है। इस वक्तव्य के तुरन्त बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष सैय्यद सादिक अली थंगल ने कहा था कि अयोध्या का सच सबको स्वीकार करना चाहिए और मंदिर निर्माण पर किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए।


अयोध्या से सद्भाव का यह संदेश पूरे देश में पहुँचा। मेरठ में मुस्लिम समाज ने भंडारा किया तो दौसा के मुस्लिम समाज ने रामजी कलश यात्रा पर पुष्पवर्षा की। आगरा के उस्मान अली अपने मित्र के साथ पदयात्रा करके अयोध्या पहुँचे। तो लखनऊ से मुस्लिम समाज के साढ़े तीन सौ लोग भी पदययात्रा करके अयोध्या पहुँचे। इन्होंने प्रसाद लिया और शीश नवाया। यह दल मीडिया की सुर्खियों में खूब आया।

अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर विराजमान होने का यह उल्लास, स्नेह और सद्भाव के वातावरण पूरे भारत ही नहीं पूरे विश्व में दिखाई दिया। लेकिन अब इस सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश हो रही है मुस्लिम समाज को उत्तेजित कर एकजुट करने की कोशिश की जा रही है। इसकी शुरुआत पाकिस्तान से हुई थी। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा आयोजन के समय वहाँ की सरकार और उनके कुछ नेताओं की टिप्पणियाँ भड़काऊ और भारत के मुस्लिम समाज को उकसाने वालीं थी। पर भारत का सद्भाव यथावत रहा। लेकिन अब हल्वानी की घटना मानों चिनगारी का काम कर रही है।


जिस प्रकार हल्दवानी में घटना घटी उसे सामान्य नहीं कहा जा सकता। हल्दवानी में शासकीय भूमि पर अतिक्रमण हटाने टीम पहुँची तो पूरी तैयारी और योजना से पुलिस को घेरकर हमला किया गया। महिला पुलिस कर्मी तक घायल हैं। इसके अगले दिन बरेली में तौफीक रजा का एक भड़काऊ ब्यान आया। उनकी अपील पर सैकड़ो मुसलमानों ने प्रदर्शन किया। एक मुहल्ले में पथराव भी हुआ। इसी दिन बंगाल सरकार में मंत्री सिद्दीकुल्लाह ने भी लोगों को इकट्ठा करके भड़काऊ भाषण दिया। दो दिन बाद सांसद ओवैसी ने संसद में भड़काऊ भाषण दिया और बाबरी मस्जिद जिंदाबाद का नारा भी लगाया।

भारत में शुरु हुआ भड़काऊ ब्यानों का यह सिलसिला हल्दवानी की घटना के बाद आरंभ हुआ और हर ब्यान में अयोध्या का भी उल्लेख हुआ। अब पता नहीं यह भारत के ही कुछ कट्टरपंथियों के दिमाग की अपनी उपज है या इसे पाकिस्तानी सोशल मीडिया की सामग्री से बल मिल, सच जो भी हो लेकिन प्रत्येक भारतवासी को इससे अतिरिक्त सावधानी आवश्यक हो गई है। विशेषकर मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों को आगे आकर अयोध्या से लेकर हल्दवानी के सच को सामने लाना होगा। और तौफीक रजा और सिद्दीकुल्लाह जैसे लोगों के वक्तव्य से सावधान करना होगा।


मुस्लिम समाज के ये दोनों नेता अपने राजनैतिक दलों का ऐजेण्डा चला रहे हैं, और भड़काकर समाज में अलगाव पैदा कर रहे हैं। मुस्लिम समाज की भावनाओं को भड़काकर अपनी राजनीति कर रहे हैं। इस सत्य की समझ समाज के सामने लाना होगी। तभी भारत का वह सांस्कृतिक स्वरूप संसार के सामने आ सकेगा इसके लाये वह प्रतिष्ठित रहा है।


लेख


रमेश शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार