माओवादी शोषण से तंग आकर महिला माओवादियों ने किया सरेंडर, जानिए क्या है नक्सल संगठन में महिलाओं की स्थिति

किसानों, मजदूरों, वनवासियों, जनजातियों और शोषित वर्गों की लड़ाई का दावा करने वाले नक्सली संगठन की वास्तविकता वो नहीं है, जो हमेशा से दिखाई गई है।

The Narrative World    20-Feb-2024   
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बीते सप्ताह ओडिशा के बौध जिले में दो महिला नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर किया। दोनों छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की रहने वाली हैं। सरेंडर माओवादियों ने माओवादी संगठन और उनके आतंकियों पर गम्भीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि माओवादी कैंपों में महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया जाता है।


उनका कहना है कि संगठन में शामिल होने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ माओवादी नेता कई महीनों तक शारीरिक शोषण करते हैं। उसके बाद उन्हें अन्य नक्सलियों के हवाले कर दिया जाता है। उनका शारीरिक के साथ मानसिक शोषण भी किया जाता है। विरोध करने पर उनके साथ मारपीट की जाती है। उनसे जबरन वसूली कराई जाती है। इसी से दुखी होकर उन दोनों ने आत्मसमर्पण किया है. कम्यूनिस्टों के इस आतंकी संगठन की यह पहली घटना नहीं है।


किसानों, मजदूरों, वनवासियों, जनजातियों और शोषित वर्गों की लड़ाई का दावा करने वाले नक्सली संगठन की वास्तविकता वो नहीं है, जो हमेशा से दिखाई गई है। मुख्यधारा की मीडिया और उससे जुड़े वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ग समूह हमेशा से माओवादियों नक्सलियों के जन्म की वजह समाज में फैले गैर बराबरी को बताते आए हैं, लेकिन यही वर्ग जब नक्सलियों के द्वारा महिलाओं का शोषण किया जाता है तब चुप्पी साध लेता है। यही वामपंथ की सच्चाई है।


बात करें माओवाद की, तो वह एक ऐसी विचारधारा है, जिसने नक्सलवाद का छद्म नाम लेकर तथाकथित समाजिक न्याय एवं वंचितों और शोषितों की लड़ाई लड़ने के नाम पर स्वयं को स्थापित किया और इसका महिमामंडन करने वालों ने इस पूरे माओवादी आतंक को 'नक्सल आंदोलन' नाम दिया। इसी विचारधारा ने तमाम ऐसी बातें कही जो पढ़ने और सुनने में तो क्रांतिकारी एवं युगांतकारी लगती थीं, लेकिन जब इनके अपने संगठन के भीतर की सच्चाई बाहर तब स्पष्ट हुआ कि कम्युनिज़्म और माओवाद की विचारधारा ना सिर्फ खोखली है, बल्कि इसके कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है।


माओवादी आतंकी संगठन के भीतर महिलाओं के साथ विभिन्न प्रकार के शोषण एवं भेदभाव किए जाते हैं। माओवादी संगठन में शामिल महिलाओं को मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। उनके साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाए जाते हैं एवं उनका शारीरिक शोषण किया जाता है। इसके अलावा महिला असमानता की स्थिति नक्सल संगठन में कुछ ऐसी है कि उन्हें नेतृत्व में एक सीमित स्थान दिया गया है, जिसका अर्थ यह है कि नक्सल संगठन में महिलाओं को बड़े ओहदे पर नहीं बिठाया जाता।


इसके अलावा स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाओं के साथ शोषण किया जाता है। वहीं यदि कोई महिला माओवादी अपने संगठन के भीतर इन सभी शोषण एवं दुर्व्यवहार के विरुद्ध आवाज उठाने का प्रयास करती है तो उसे तत्काल चुप करा दिया जाता है। नक्सल संगठन में महिलाओं के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है यौन शोषण।


दरअसल नक्सल समूह आम तौर पर अपनी वामपंथी विचारधारा का प्रचार करते हुए तथाकथित शोषित समाज एवं महिला समानता के अधिकारों की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि माओवादी संगठन के भीतर ही एक पितृसत्तात्मक संरचना है, जो प्रणालीगत रूप से महिलाओं पर अत्याचार करती है। नक्सल संगठन के भीतर यौन शोषण से लेकर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का विषय केवल निचले स्तर के महिला नक्सल के डरो तक सीमित नहीं है बल्कि, महिलाओं को जो प्रमुख पद नक्सली संगठन में दिए जाते हैं, वैसे उच्च पद पर आसीन महिला नक्सलियों के साथ भी इस तरह का व्यवहार देखा गया है।


माओवादी नक्सली संगठन प्रमुख रूप से ऐसे क्षेत्रों में अपनी पैक बनाकर रखा हुआ है जहां सामान्यतः कानून व्यवस्था कमजोर है, इसके अलावा इन क्षेत्रों में नक्सली संगठन का व्यापक प्रभाव है। ऐसे स्थानों से जबरन नक्सल संगठन में भर्ती की गई युवतियों को कानून व्यवस्था की अनुपस्थिति में पुरुष नक्सल नेताओं के द्वारा यौन शोषण का सामना करना पड़ता है। नक्सली संगठन में महिलाओं का यौन शोषण उनकी भर्ती के साथ ही शुरू हो जाता है।


जो महिलाएं नक्सल संगठन के भीतर पुरुष नेतृत्वकर्ताओं की इन मांगों को मानने से इंकार करती हैं, उन्हें या तो संगठन से बहिष्कृत कर दिया जाता है या कई बार उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है। कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि महिलाओं को नक्सल संगठन में भर्ती करने के बाद कई बार दुर्गम वन्य क्षेत्रों में भेजा जाता है जहां वह महिला है अपनी आवश्यकताओं के लिए पुरुष नक्सली कैडर पर निर्भर होती हैं। ऐसी परिस्थिति में पुरुष नक्सलियों के द्वारा फायदा उठाते हुए महिलाओं का यौन शोषण किया जाता है।


इसे आप वामपंथी विचार का सबसे बड़ा प्रपंच समझ गए या कुछ और लेकिन सच्चाई यह है कि एक तरफ जहां दुनिया भर के वामपंथी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं और साथ ही भारत में माओवादी आतंकी संगठन के शहरी विचारक इस संगठन के भीतर महिला समानता की बात करते हैं उन्होंने कभी इस बात का उल्लेख नहीं किया की नक्सल संगठन के भीतर महिलाओं को संगठन के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए वरिष्ठ माओवादी नेताओं के साथ यौन गतिविधियों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है।


नक्सलियों के द्वारा लैंगिक समानता के तमाम सिद्धांतों को उनके ही अपने संगठन में दरकिनार कर दिया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं कुछ महिला है जब नक्सल संगठन के भीतर चल रही इन कुप्रथाओं और शोषण की गतिविधियों का विरोध करती हैं या इसके विरुद्ध अपने अपनी आवाज मुखर करती हैं तो उन्हें 'गद्दार' करार दिया जाता है, और कई मामलों में इनकी हत्या तक कर दी जाती है।


जिस तरह आईएसआईएस, मुजाहिदीन एवं अन्य कट्टरपंथी-आतंकी संगठन के भीतर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता है, तथा उन्हें 'गुलामों' की तरह रखा जाता है, वैसे नक्सल संगठन के भीतर भी महिलाओं की स्थिति कुछ अलग नहीं है। जबकि यह वामपंथी अतिवादी संगठन इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि तथाकथित महिला समानता की बात करने वाला यह विचार खुद यौन शोषण जैसे घृणित कृत्यों का दोषी है।


नक्सल संगठन में यौन शोषण की पड़ताल में यह भी संकेत मिलते हैं कि यह समस्या केवल ग्रामीण या वन्य क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। यह उन शहरी क्षेत्रों में भी प्रचलित है जहां अर्बन नक्सली अपना प्रभाव बना चुके हैं। अर्बन नक्सली महिलाओं का शोषण करने के लिए अपनी बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग करते हैं और उन्हें इस बात के लिए राजी करते हैं कि वह माओवादी विचार से जुड़े। शहरी नक्सलवाद ने नक्सली संगठन के भीतर यौन शोषण की समस्या में एक नया आयाम जोड़ दिया है।


नक्सली संगठन में महिलाओं की स्थिति को इस प्रकार से स्थापित किया गया है कि उन्हें सिर्फ पुरुष नेतृत्व के किसी भी आदेश का पालन करना होता है। यदि कोई महिला माओवादी किसी प्रकार की असहमति दर्ज कराती हैं, तो उन्हें कड़ी सजा दी जाती है। इसके अलावा नक्सली संगठन के भीतर महिलाओं के पहनावे से लेकर उनके व्यवहार एवं आचरण को लेकर भी कड़े नियम हैं। महिला समानता को लेकर नक्सल संगठन के तमाम दावे उनके अपने ही संगठन के भीतर पैर रखते ही दम तोड़ जाते हैं।


यह सार्वजनिक रूप से सामने आ चुका है कि माओवादी अपने संगठन के भीतर दोहरा मापदंड रखते हैं। एक तरफ माओवादी जिस तथाकथित पितृसत्तात्मक व्यवस्था का विरोध करने की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर नक्सलियों के द्वारा ही महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है। छोटी आयु में किसी किशोरी या बालिका को जबरदस्ती संगठन में शामिल कर माओवादी उससे अपने दैनिक जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों में किसी मजदूर की तरह उससे कार्य कराते हैं।


एक तरफ जहां नक्सली संगठन के द्वारा समय-समय पर प्रेस विज्ञप्ति जारी कर तथाकथित रूप से मानवाधिकार के हनन की बात की जाती है वहीं दूसरी ओर नक्सली अपने ही संगठन के भीतर निचले कैडर की महिलाओं के साथ कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं जो स्पष्ट रूप से मानवाधिकार का उल्लंघन है। एक तरफ माओवादी संगठन के शीर्ष आतंकी नेता स्वयं विलासिता का जीवन जीते हैं वहीं दूसरी ओर निचले कैडर के महिलाओं के साथ उनका दुर्व्यवहार जारी रहता है।


इस पूरे मामले को कुछ इस तरह से समझा जा सकता है कि यदि निचले स्तर की कोई महिला कैडर किसी पुरुष कैडर के साथ प्रेम करती है, तो उन्हें अलग करने का प्रयास किया जाता है। प्रेम संबंध में शामिल महिला एवं पुरुष को अलग-अलग क्षेत्रों में भेज दिया जाता है। इसके अलावा यदि दोनों विवाह करना चाहे तो उन्हें बच्चा पैदा करने की भी अनुमति नहीं होती है। वहीं ऐसे ही विषय की तुलना हम माओवादी आतंकी संगठन के शीर्ष नेताओं से करें तो स्थिति बिलकुल विपरीत नजर आती है। उदाहरण के रूप में देखें तो जब माओवादी आतंकी नेता रमन्ना की पत्नी सावित्री गर्भवती हुई थी तब ना उसका गर्भपात कराया गया और ना ही रमन्ना को नसबंदी कराना पड़ा। इसके अलावा सावित्री को 2 वर्ष का मातृत्व अवकाश भी दिया गया। चूंकि वह माओवादी नेता रमन्ना की पत्नी थी इसलिए उसके साथ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नहीं किया गया लेकिन यदि कोई दूसरी महिला माओवादी उसकी जगह होती तो उसका तत्काल गर्भपात करा दिया जाता।


नक्सली संगठन के द्वारा स्वयं को 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का चैंपियन के रूप में चित्रित किया जाता है। यह संगठन खुद को कुछ इस प्रकार से प्रस्तुत करता है कि यह उन लोगों की आवाज बन रहा है जिन्हें सरकार के द्वारा दबा दिया गया है। लेकिन अपने ही संगठन के भीतर नक्सली महिलाओं के स्वतंत्र आवाजों को सुनने के लिए असहिष्णु हैं। नक्सली विचारधारा के भीतर इतनी भी सहिष्णुता नहीं है कि वह अपने संगठन की महिलाओं कि असहमति या असंतोष को सुन सके और उसे स्वीकार कर सके। नक्सलियों ने जिस प्रकार से अपने प्रभावित क्षेत्रों में आतंक एवं भय का माहौल पैदा किया है ठीक उसी प्रकार अपने संगठन के भीतर भी पुरुष नक्सलियों ने महिला नक्सलियों के भीतर आतंक स्थापित कर रखा है।


नक्सली आतंकियों के द्वारा उनका विरोध करने वाली महिलाओं को चुप कराने का रक्तरंजित इतिहास रहा है। जो महिलाएं नक्सल संगठन के भीतर दुराचारियों के विरुद्ध आवाज उठाती हैं, उन्हें ना सिर्फ धमकी दी जाती है, बल्कि कुछ इस प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है की वे आत्महत्या तक कर लेती हैं। नक्सल संगठन के भीतर वामपंथी आतंकियों के द्वारा महिलाओं की असहमति को कुछ इस प्रकार से देखा जाता है कि महिलाओं का असंतोष उनके लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।


नक्सली संगठन में उन महिलाओं पर भी शिकंजा कसा जाता है जो माओवाद की खोखली विचारधारा को छोड़कर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं। जो महिलाएं नक्सलियों के हिंसक आंदोलन को छोड़ने का विकल्प चुनती हैं उन्हें इन नक्सल आतंकियों के हिंसक प्रतिशोध का शिकार होना पड़ता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कई महिला नक्सली अपने एवं अपने परिवार की सुरक्षा के कारण नक्सली संगठन को छोड़ने में असमर्थ हैं।