आर्टिकल 370 : वास्तविकता के करीब बनी एक सटीक फिल्म

RRR के बाद ये शायद दूसरी ऐसी फिल्म है जिसने थोपे "नायकों" को कोई तवज्जो नही दी है। RRR के लेखक ने तो साफ कहा था कि मेरे लिए ये मेरे नायक हैं ही नहीं तो मैं क्यों इनका बखान करूँ। शायद यही सोच आर्टिकल 370 के लेखक-डायरेक्टर की भी रही होगी।

The Narrative World    29-Feb-2024
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फ़िल्म आर्टिकल
370 में एक नोट करने वाली बात है, कि जब भी आप गवर्नमेंट ऑफिस इत्यादि देखेंगे तो दीवार पर से आपको गांधी - नेहरू का चित्र पूर्णतः लोप ही मिलेगी। वहां उसकी जगह सुभाष बोस और सरदार पटेल का चित्र लगा मिलेगा।


वैसे इस बात में कोई शक नहीं कि वास्तविकता के बहुत करीब यह फिल्म अच्छी बनी है, और सबसे अच्छी बात यह है कि आम हिंदी फिल्मों की तरह कोई भी चालू या फालतू के गीत / प्रेम प्रसंग शामिल नहीं किए गए हैं।


RRR के बाद ये शायद दूसरी ऐसी फिल्म है जिसने थोपे "नायकों" को कोई तवज्जो नही दी है। RRR के लेखक ने तो साफ कहा था कि मेरे लिए ये मेरे नायक हैं ही नहीं तो मैं क्यों इनका बखान करूँ। शायद यही सोच आर्टिकल 370 के लेखक-डायरेक्टर की भी रही होगी।


फ़िल्म में कुछ कलात्मक स्वतंत्रता लेने के अलावा बाकी सब कहानी सटीक है। इस्लामिक जिहादी आतंकी बुरहान से शुरू हुई कहानी, किस तरह आर्टिकल 370 को समाप्त किया गया के बीच लिखी गयी है। फ़िल्म में हर उस पॉइंट को दर्शाया गया है जहां कैसे कश्मीर में मजहब एक धंधे के रूप में चलाया जाता रहा है और कैसे इसमें नेताओं की मिलीभगत, अलगाववादियों के साथ हमेशा से रही है।


फ़िल्म आपको कानूनी पहलू को भी आसान भाषा में समझाती है कि किस तरह भारत के साथ धोखा किया गया था, जिस वजह से ये लोग कहते थे कि आर्टिकल 370 को आप छू भी नही सकते। फ़िल्म आपको वो सब भी बताती है कि आर्टिकल 370 हटाने से पहले क्या क्या तैयारी की गई थी ताकि एक पत्थर भी कश्मीर में इसे हटाने के बाद न चल सके।


आप फ़िल्म देखेंगे तो आप समझेंगे कि आर्टिकल 370 हटाना कोई चुटकी बजाने का काम कभी नही था कि इसको तो जब चाहे हटा दिया जा सकता था। बल्कि इसके पीछे वर्षों से कैसे पाकिस्तान से लेकर भारत की राजनीतिक पार्टियां ही इसे और सशक्त करने में लगी हुई थी ताकि पहले से भारत के दो मजहबी टुकड़े होने के बाद एक तीसरा मजहबी टुकड़ा भी अपने रिश्तेदारों को देकर रखा जा सके।


फ़िल्म बहुत अच्छे तरीके से बनी है जो आपको बांधकर रखती है। यामी गौतम का रोल एक गुमनाम नायिका (Unsung hero) के रूप में बहुत अच्छा है। अजित डोभाल की जगह यहां पर प्रिया मणि का रोल है जो एक जॉइंट सेक्रेटरी पद के अधिकारी का रोल करती दिखती हैं, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। बाकी सबका काम भी ठीक है।


बेवजह का अति राष्ट्रवाद भी इसमें नही है जैसा आजकल bollywoood वाले सस्ते डायलॉग और फालतू की देशभक्ति के नाम पर दिखा रहे हैं ताकि आपका राष्ट्रवादी फिल्मों से ही मोह भंग हो जाए और ना ही ये बस बना देने भर के लिए बनाई फ़िल्म है। इसमें 5-6 साल की रिसर्च लगी है जिसके बाद हर पहलू को आपस मे बुनकर इस फ़िल्म को बनाया गया है।


इसमें बहुत स्पष्ट तरीके से दिखाया गया है कि कैसे उस समय की सरकारों ने आर्टिकल 370 के असलियत को बदलकर देश को गुमराह किया तथा कश्मीर को बर्बाद कर दिया। पूर्व में देश में जो भी घटनाएं हुईं है उस पर इस प्रकार कि फिल्म बननी चाहिए ताकि लोगों को वास्तविक पता चले। आपको ये फ़िल्म बिल्कुल भी मिस नही करनी चाहिए।