'चिकन नेक' पर मंडराता वामपंथी और इस्लामिक गठजोड़ का संभावित खतरा

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का "सिलिगुड़ी कॉरिडोर" जिसे प्रचलित रूप से "चिकन नेक" के नाम से जाना जाता है, उसपर पकड़ मजबूत करना देशद्रोही ताकतों के प्रमुख एजेंडे में सम्मिलित है।

The Narrative World    03-Feb-2024   
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जेल में बंद देशद्रोही शरजील इमाम कभी कह रहा था कि "असम को भारत से हमेशा के लिए काट देना चाहिए।" इमाम के अनुसार मुसलमानों को रेलवे ट्रैक पर इतना मलबा डालना चाहिए की परिचालन बाधित हो जाए।


उसके अनुसार पूर्वोत्तर को भारत से काटने की जिम्मेदारी भारत के मुसलमानों की है। रेलवे ट्रैक पर मलबा डालकर उसे बाधित करने से इमाम का संदर्भ सिलीगुड़ी रेलवे कॉरिडोर के परिचालन को बाधित करने से ही था।


इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का 'सिलिगुड़ी कॉरिडोर' जिसे प्रचलित रूप से 'चिकन नेक' के नाम से जाना जाता है, उसपर पकड़ मजबूत करना देशद्रोही ताकतों के प्रमुख एजेंडे में सम्मिलित है।


दरअसल 60 किलोमीटर लंबे और मात्र 22 किलोमीटर चौड़े इस कॉरिडोर के माध्यम से ही पूर्वोत्तर भारत का सारा हिस्सा बाकी के भारतवर्ष से जुड़ता है, यही कारण है कि समय-समय पर रक्षा विशेषज्ञ एवं सैन्य प्रतिष्ठानों से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पूरे क्षेत्र को 'संवेदनशील' बताते हुए इस पर पैनी नजर रखे जाने की बात कही है।


सेना ने भी सिलीगुड़ी को 'संवेदनशील' करार दिया था। इसके अतिरिक्त ब्रह्म चेलानी समेत कई विशेषज्ञों ने भी इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को पहचानते हुए यहाँ उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों पर नजर रखने के लिए आगाह किया है।


अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरे हुए इस क्षेत्र की परिसीमा बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन अधिकृत क्षेत्रों की सीमाओं को छूती हैं। विशेषज्ञों की मानें तो पिछले 2-3 दशकों से 'दार्जिलिंग दुआर (द्वार)' के इस पूरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठियों ने अपने बस्तियां बसा ली है।


भारत के सामरिक हितों के लिए बेहद महत्वपूर्ण समझे जाने वाले इस क्षेत्र के चारों तरफ बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी मुस्लिम समुदाय के लोग बस चुके हैं।


योजनाबद्ध तरीके से बसाए गए इन लोगों को पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारें वोट बैंक की नीति के तहत संरक्षण भी देती आई हैं। क्षेत्र के स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले दो दशकों में बड़े पैमाने पर घुसपैठ को बढ़ावा दिया गया है।


हालात इतने बदतर है कि क्षेत्र में जनसंख्या के असंतुलन का खतरा प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रहा है। राज्य सरकार के संरक्षण में रह रहे बांग्लादेशी समूह के लोगों द्वारा आए दिन गुंडागर्दी और अपराधिक गतिविधियों को तो अंजाम दिया ही जा रहा है साथ ही इस पूरे क्षेत्र में परोक्ष रूप से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को भी बड़े पैमाने पर अंजाम देने की तैयारी चल रही है।


शरजील इमाम भी अपने वक्तव्य में इन्ही लोगों से असम को काटने की अपील कर रहा था। कट्टरपंथी समूहों के खतरे के साथ ही इस क्षेत्र के समीप, चीन द्वारा चुपचाप बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास किया जा रहा है।


इसके अतिरिक्त चीन द्वारा इस क्षेत्र के समीप सीमा पर सक्रियता पर भी बल दिया जा रहा है। सैन्य प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों के मुताबिक चीन द्वारा दार्जिलिंग द्वार से महज 130 किलोमीटर की दूरी पर 'चुंबी' घाटी क्षेत्र में वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कर क्षेत्र अंतर्गत अपनी जड़ें मजबूत की जा रही है।


दरअसल चुंबी घाटी का क्षेत्र भारत, भूटान और चीन सीमा के त्रिकोण पर स्थित है। इस क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाओं के बीच डोकलाम क्षेत्र में वर्ष 2017 में करीबन ढ़ाई महीने का गतिरोध भी हो चुका है।


अब सूत्रों की माने तो चीन द्वारा भारत को पूर्वी लद्दाख एवं अरुणाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों में उलझा कर, दक्षिण एशिया के प्रवेश द्वार समझे जाने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास चुनौतियां उत्पन्न की जा सकती हैं।


चीन की कम्युनिस्ट सरकार इस क्षेत्र में भारत के लिए चुनौतियां उत्पन्न करने में क्षेत्र अंतर्गत बांग्लादेशी कट्टरपंथी समूहों पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी 'आईएसआई' के प्रभाव का भी इस्तेमाल कर सकती है।


सूत्रों के अनुसार हालिया कुछ वर्षों में भारत की खुफिया एजेंसियों ने भारत के संदर्भ में वामपंथी और इस्लामी 'गठजोड़' के साक्ष्य भी बरामद किए हैं, जिससे इस क्षेत्र विशेष में भारत के लिए भविष्य में चुनौतियां बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।


दरअसल भारत के सामरिक हितों की सुरक्षा के लिए सिलीगुड़ी कॉरिडोर का सुरक्षित रहना बेहद आवश्यक है।


कुछ समय पूर्व केंद्र सरकार द्वारा सीमा सुरक्षा बल को अंतरराष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में स्वायत्तता देने का निर्णय इस दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि भारत के अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए इस क्षेत्र विशेष में इस्लामिक और वामपंथी गठजोड़ द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले संभावित खतरों की पहचान कर उसे जड़ से मिटाने की दिशा में भारतीय सरकार को और भी मजबूती से कदम उठाने होंगे।