बीते मंगलवार दक्षिण बस्तर क्षेत्र के टेकलगुड़ा में माओवादी आतंकियों के हमले में सुरक्षाबल के 3 जवान बलिदान हुए थे। माओवादियों के इस हमले में सुरक्षाबलों को काफी नुकसान पहुंचा था, जिसके चलते 14 जवान गंभीर रूप से घायल भी हुए थे।
सबसे बड़ी बात यह थी कि माओवादियों के द्वारा किए गए इस हमले को उसी दिन अंजाम दिया गया था, जिस दिन सुरक्षाबल के जवानों ने टेकलगुड़ा में कैंप स्थापित किया था।
दरअसल यह टेकलगुड़ा क्षेत्र लंबे समय से माओवादियों का गढ़ रहा है। वर्ष 2021 में भी माओवादियों इसी क्षेत्र में एक बड़े आतंकी हमले को अंजाम दिया था, जिसके बाद से ही यहां सुरक्षा कैम्प स्थापित करने की योजना बनाई जा रही थी।
अंततः जनवरी 2024 में यह कैम्प स्थापित हुआ, लेकिन पहले ही दिन कैम्प से सर्चिंग के लिए निकले जवानों पर माओवादियों ने हमला कर अपनी बौखलाहट को उजागर कर दिया है।
माओवादियों के गढ़ में जिस तरह से सुरक्षाबल के जवान अंदर तक पहुंच चुके हैं, उससे नक्सली अब घबरा चुके हैं। यही कारण है कि उन्होंने अब आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए अपने पीएलजीए के बटालियन को भी उतार दिया है।
दरअसल नक्सली आतंकियों ने इस टेकलगुड़ा हमले के लिए अपनी जिस बटालियन को उतारा है, उसका नाम है पीएलजीए बटालियन नंबर एक, जो माओवादियों के आतंकी बटालियन में सबसे मजबूत माना जाता है।
सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा क्षेत्र में सक्रिय इस बटालियन में शामिल आतंकी आधुनिक हथियारों से लैस हैं, जिन्हें देवा के निर्देशन में आतंकी हमलों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है।
देवा के बारे में मिली जानकारी के अनुसार उसे हिड़मा के स्थान पर नया कमांडर बनाया गया है। दरअसल सुरक्षाबलों को माओवादियों का एक गुप्त दस्तावेज प्राप्त हुआ था, जिसके अनुसार हिड़मा को माओवादियों की सेंट्रल ऑर्गनाइजिंग कमेटी में भेजा गया है, वहीं देवा को बटालियन की कमान सौंपी गई है।
खोजबीन में सामने आई जानकारी के अनुसार देवा भी हिड़मा के गांव का निवासी है, जो पहले माओवादी आतंकी संगठन के दरभा डिवीजन कमेटी का सचिव था। हिड़मा ने ही देवा को संगठन में आगे बढ़ाने का काम क़िया।
देवा के बारे में मिली जानकारी के अनुसार नक्सलियों के द्वारा उसे 8 वर्ष की आयु में ही माओवादी संगठन में शामिल करा लिया गया था, जिसके बाद वह दरभा डिवीजन से लेकर दक्षिण सब जोनल तक की इकाई में सक्रिय रहा।
देवा को बटालियन नंबर एक की कमान देने के पीछे की सोच को समझे तो बीते वर्षों में हुए माओवादी हमले को देखना आवश्यक है। दरअसल पिछले एक दशक में सबसे अधिक माओवादी हमला दरभा डिवीजन में ही माओवादियों ने किया है, जिसमें झीरम घाटी का हमला भी शामिल है।
टेकलगुड़ा हमले के लिए भी माओवादियों ने एम्बुश लगाया था, लेकिन जवानों ने सूझबूझ से उसे तोड़ दिया, नहीं तो इस हमले में भी जवानों को भारी क्षति हो सकती थी।
हालांकि जिस बौखलाहट के साथ माओवादियों ने देवा को बटालियन की कमान दी है, उससे यह भी स्पष्ट होता है कि माओवादियों को भी अपने खात्मे का अहसास होने लग गया है, जिसके चलते वो अब पूरी ताकत लगा देना चाहते हैं।
यही कारण है कि माओवादी अब एक तरफ जहां पीएलजीए के माध्यम से आतंकी हमले में जुटे हैं, तो वहीं दूसरी ओर हमास आतंकियों की तरह सुरंग भी तैयार कर रहे हैं।
टेकलगुड़ा हमले के बाद जब सुरक्षाबल के जवानों ने दक्षिण बस्तर के सभी जिलों में अपनी सर्चिंग बढ़ाई तब दंतेवाड़ा जिले में सुरक्षाकर्मियों ने माओवादियों के एक ऐसी ही सुरंग का पता लगाया, जिसका उपयोग कर माओवादी हमला करने की साजिश रच रहे थे।
यह सुरंग बिल्कुल ही हमास के इस्लामिक जिहादी आतंकियों के द्वारा बनाए गए चेम्बर्स की तरह दिख रहे हैं, जिन्हें माओवादियों ने बस्तर में बनाया है।
हालांकि माओवादियों के द्वारा छटपटाहट में की जा रही ये सभी कायराना करतूतें किसी काम आएगी, ऐसा प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि केंद्रीय सुरक्षाबलों की आक्रामक कार्रवाई और प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद यह तय है कि माओवादियों के विरुद्ध किसी भी सख्त ऑपरेशन में ढिलाई नहीं बरती जाएगी।