पॉजिटिव नैरेटिव: माओवादियों का सबसे बड़ा गढ़ ढहा, पहली बार लोगों ने देखा डॉक्टर ; लहराया तिरंगा

माओवादी आतंकी हिड़मा के इस गांव की स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां के लोगों ने कभी डॉक्टर को भी नहीं देखा था। इन सब के पीछे केवल एक ही विचार जिम्मेदार है, और वो है कम्युनिज़्म का।

The Narrative World    10-Mar-2024   
Total Views |


Representative Image
छत्तीसगढ़ के घोर माओवाद से प्रभावित बस्तर क्षेत्र के एक बड़े हिस्से से सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद को पीछे धकेल दिया है
, लेकिन अभी भी कुछ हिस्से ऐसे हैं जो माओवादियों के सुरक्षित गढ़ माने जाते हैं।


ऐसा ही एक क्षेत्र है पूवर्ती गांव, जो बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा से लगा हुआ है। यह वही गांव है जहां खूंखार माओवादी आतंकी हिड़मा का घर है, जो वर्तमान में माओवादी आतंकी संगठन के केंद्रीय कमेटी का सदस्य है।


यह एक ऐसी जगह है जो माओवादी आतंकियों के सबसे सुरक्षित स्थानों में से एक माना जाता है, जहां माओवादी अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देकर छिपने के लिए आ जाते हैं।


लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि सुरक्षाबलों ने बड़ी मशक्कत एवं कुशल रणनीति से यहां एक स्थायी कैंप स्थापित कर लिया है। इसे फोर्स की एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है कि उन्होंने हिड़मा जैसे दुर्दांत नक्सली आतंकी के गढ़ में सुरक्षा कैंप स्थापित किया है।


नक्सलियों के गढ़ होने के कारण यह क्षेत्र ऐसा था कि यहां ना कभी शासन पहुंचा, ना कभी प्रशासन। यहां ना कभी चिकित्सा सुविधा पहुंच पाई और ना ही शिक्षा की व्यवस्था। स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि माओवादी आतंक के कारण यहां बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मौजूद नहीं है।


माओवादी आतंकी हिड़मा के इस गांव की स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां के लोगों ने कभी डॉक्टर को भी नहीं देखा था। इन सब के पीछे केवल एक ही विचार जिम्मेदार है, और वो है कम्युनिज़्म का।



Representative Image

कम्युनिज़्म के विचार को मानने वाले इन आतंकियों ने कभी इस क्षेत्र को लोगों को सुख-सुविधा और बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा। कभी ना सड़क बनने दिया, ना बिजली आने दी।

अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। पूवर्ती क्षेत्र में फोर्स के पहुंचने से अब व्यवस्थाएं बदलने लगी हैं। फोर्स के साथ पहुंची चिकित्सकों की टीम ग्रामीणों का उपचार कर रही है, वहीं स्थानीय ग्रामीणों का पहली बार बाहरी लोगों से मिलना हो रहा है।


स्थितियों के बदलाव की बात करें तो इस गांव में पहली बार तिरंगा फहराया गया, जिसे देखकर स्थानीय ग्रामीण भी प्रसन्न नजर आए। बीते सप्ताह जब कैंप की स्थापना हुई तब जिला पुलिस अधीक्षक भी कैम्प में मौजूद थे। इस दौरान सुरक्षाकर्मियों ने हिड़मा के घर का दौरा भी किया, जिस दौरान उसकी मां घर पर मौजूद थी।



Representative Image

गांव के बीचों-बीच स्थापित इस कैंप को टैक्टिकल हेडक्वार्टर नाम दिया गया है, क्योंकि आने वाले समय में यह कैंप माओवादियों के गढ़ में घुसकर अभियान चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले है।


पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस कैंप को स्थापित करने में सीआरपीएफ, कोबरा और डीआरजी के लगभग 1500 जवान शामिल हुए थे, वहीं इस दौरान जिला पुलिस अधीक्षक, सीआरपीएफ के डीआईजी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एवं डीएसपी भी उपस्थित रहे।


माओवादी आतंकी संगठन के लिए इस क्षेत्र की महत्ता इससे भी समझी जा सकती है कि यहां से खूंखार माओवादी हिड़मा के अलावा 70 और माओवादी आतंकी सक्रिय रूप से माओवादी संगठन में शामिल हैं, यही कारण है कि माओवादियों ने इसे अपना सबसे बड़ा गढ़ बनाया था।


इसके अतिरिक्त इसी क्षेत्र के बंदीपारा में माओवादियों ने अपना विश्राम गृह भी बना रखा था, जिसे अब फोर्स ने अपना वॉर रूम बना लिया है। फोर्स का कहना है कि कैंप की स्थापना का एकमात्र उद्देश्य नक्सल उन्मूलन ही नहीं है, बल्कि क्षेत्र का विकास और स्थानीय निवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाना भी है।


पुलिस के अनुसार कैंप लगने के बाद अब क्षेत्र में बिजली, पानी और सड़क की व्यवस्था जल्द ही लाने का प्रयास किया जाएगा, साथ ही यहां चिकित्सा और शिक्षा की व्यवस्था भी की जाएगी।


कैंप लगाने की प्रक्रिया को लेकर बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक का कहना है कि लंबी योजना एवं संघर्ष के बाद इसे स्थापित किया गया है। लंबे समय से अंदरूनी क्षेत्र में कैंप लगाने की योजना थी, जो अब सफल हुई है।


हालांकि उनका कहना है कि इस कैंप को भी स्थापित करना आसान नहीं था। जब यह स्थापित किया जा रहा था, तब माओवादियों से मुठभेड़ भी हुई और जवानों पर बीजीएल से हमले भी हुए। लेकिन अंततः हम सफल हुए।

यह भी देखें : -