CAA नोटिफिकेशन के बाद देश में भ्रम फैलाकर तनाव पैदा करने का षड्यंत्र भी शुरू

सीएए अर्थात नागरिकता संशोधन अधिनियम सोमवार से भारत लागू हो गया है। यह अधिनियम 10 दिसम्बर 2019 को लोकसभा में, अगले दिन 11 दिसम्बर को राज्यसभा में पारित हुआ और 12 दिसम्बर को राष्ट्रपतिजी की स्वीकृति मिल गई थी।

The Narrative World    13-Mar-2024
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भारत में नागरिक संशोधन अधिनियम लागू हो गया। यह केवल उन पर लागू होगा जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना से परेशान होकर भारत में शरण लेना चाहते हैं। इस विधेयक के लागू होने से एक ओर पीड़ित शरणार्थियों में प्रसन्नता है, तो दूसरी ओर कुछ शक्तियाँ भ्रम फैलाकर अशांति पैदा करने के षड्यंत्र में जुट गईं है।


सीएए अर्थात नागरिकता संशोधन अधिनियम सोमवार से भारत लागू हो गया है। यह अधिनियम 10 दिसम्बर 2019 को लोकसभा में, अगले दिन 11 दिसम्बर को राज्यसभा में पारित हुआ और 12 दिसम्बर को राष्ट्रपतिजी की स्वीकृति मिल गई थी।

20 दिसम्बर 2019 को पाकिस्तान से आये 7 शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देकर इस अधिनियम को लागू होने की औपचारिकता भी पूरी हो गई थी। लेकिन बीच में विरोध के चलते इसका क्रियान्वयन शिथिल कर दिया गया था जो अब पुनः लागू किया है। और इसके लागू होने के साथ पुनः विरोध आरंभ हो गया है।


विरोध की मानसिकता के तीन प्रकार


इस कानून के लागू होने के साथ पुनः विरोध आरंभ हो गया है। विरोध के स्वर असम, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से उभरे हैं। असम में असम स्टूडेंट्स यूनियन ने बंद का आह्वान किया है, तो हैदराबाद से ओवैसी ने इसे पक्षपातपूर्ण बताकर देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है।


अभी जो संगठन और चेहरे इस कानून का विरोध करने के लिये सामने आये हैं, वे तीन प्रकार के हैं। पहले वे हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर निर्णय का विरोध करते हैं, या प्रश्न उठाते हैं। नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, चन्द्र अभियान, रक्षा सौदे, जीएसटी लागू करने पर, कश्मीर में धारा 370 हटाने पर और यदि मोदी की अयोध्या में रामलला विराजमान प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित हुये तो उस पर भी प्रश्न उठाये गये। मोदी के निर्णय ही नहीं, उनके नारों पर भी प्रश्न उठाये जाते हैं। उन्होंने स्वयं को चौकीदार कहने या देश को परिवार बताने पर भी कटाक्ष हुये। इसलिये मोदी विरोधी पूरा समूह इस विधेयक के विरोध में पुनः मैदान में आ डटा है।


इस कानून का विरोध करने वाली दूसरी आंदोलनजीवियों की वह टोली है, जो कोई न कोई आंदोलन में सदैव देखी जाती है। इन आंदोलनजीवियों के कुछ चेहरे भारत के टुकड़े होने के नारे लगाने वाले समूह में भी, शाहीनबाग में भी और किसान आंदोलन में भी समान रूप से देखे गये। वे इस कानून के विरोध में भी सक्रिय हैं।


तीसरा समूह वह है जो भारत के मुसलमानों को राष्ट्र की मूलधारा में जोड़ने की बजाय उन्हें भावनात्मक रूप से आवेशित करके अलग रखने का प्रयास करता है और अपनी राजनीति करता है। ये तीनों समूह अक्सर एकत्र देखे जाते हैं। इस कानून को लेकर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि यह कानून स्थानीय मुसलमानों की नागरिकता पर प्रश्न उठाता है। जबकि इस कानून का यहाँ रहने वाले मुसलमानों की नागरिकता से कोई संबंध नहीं न ही किसी से पूछा जायेगा और न कोई प्रमाण माँगा जायेगा। और न सामान्य प्रक्रिया से भारत की नागरिकता के लिये आवेदन करने वाले किसी मुसलमान को बाधा बनेगा।


अन्य देशों के किसी नागरिक के भारत में नागरिकता लेने की एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत पाकिस्तान से भी कितने ही मुस्लिम समाज के लोग भारत आये और यहाँ के नागरिक बने। इनमें सामान्य जन के अतिरिक्त लेखक और फिल्म कलाकार भी शामिल हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम नागरिकों को भारत की नागरिकता लेने की प्रक्रिया पहले भी थी और आगे भी रहेगी। यह कानून उस प्रक्रिया में बाधक नहीं है। यह कानून तो केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आने वाले शरणार्थियों को राहत देने तक सीमित है।


नागरिकता संशोधन अधिनियम का कारण


इस अधिनियम को लागू करने का आश्वासन वर्ष 2019 में भाजपा के संकल्प पत्र में था। जिस संकल्प पत्र के आधार पर भाजपा को सरकार बनाने लायक बहुमत मिला, इस अधिनियम को उस वचन की पूर्ति का कदम माना जाना चाहिए। यह अधिनियम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के अनुयायी शरणार्थियों पर लागू होगा।


इन तीनों देशों में धार्मिक आधार पर हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों की कितनी प्रताड़ना होती है इसके समाचार आये दिन मीडिया में देखने को मिल जाते हैं। इस प्रताड़ना की पुष्टि तीनों देशों इन समुदायों की घटती आबादी के आँकड़ों से भी की जा सकती है।

 
 
 

धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किये जाने से ही तो तीनों देशों में इन मतावलंवियों की आबादी निरंतर घट रही है। हिन्दू, सिक्ख, पारसी ईसाई और बौद्ध साम्प्रदाय के लोग या तो मतान्तरण करने पर विवश हो रहे हैं अथवा भारत की शरण में आ रहे हैं। ऐसे हजारों परिवार भारत में रह रहे हैं अब इन सभी को इस अधिनियम के माध्यम से नागरिकता का अधिकार मिल सकेगा, नागरिकता लेकर भारत में ससम्मान निवास कर सकेंगे।


इन पीड़ित और प्रताड़ित समूहों की बात समय समय पर संसद में उठती रही है। नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में उठी थी और इंदिरा के समय भी। अटल बिहारी के समय भी यह मुद्दा सामने आया था। हर सरकार ने सहानुभूतिपूर्वक विचार करके मार्ग बनाने का आश्वासन दिया था। यह सब संसद के रिकार्ड है। फिर भी मार्ग न निकल सका था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति से यह संभव हो सका।


अधिनियम के प्रावधान


यह नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन है। अब पात्र आवेदक को पिछले एक वर्ष अथवा पिछले 14 वर्षों के अंतिम वर्ष 11 महीने भारत में रहने पर पात्र माना गया है। अधिनियम में इन छह धर्मों से संबंधित व्यक्तियों के लिए 11 वर्ष की जगह छह वर्ष तक का समय है। इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है, तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड धारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।


नागरिकता अधिनियम, 1955 में कोई व्यक्ति जिसका जन्म भारत में हुआ हो या उसके माता-पिता भारतीय हों या कुछ समय से देश में रह रहे हों, को नागरिकता का प्रावधान था, अवैध प्रवासियों को नागरिकता से प्रतिबंधित किया गया है। उन अवैध प्रवासियों को विदेशी माना गया था जो: (i) पासपोर्ट और वीजा जैसे वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करता है, या (ii) वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समय अवधि से अधिक समय तक रहता है। इन्हें कैद करने या भारत से निर्वासित करने का प्रावधान है।


2015 और 2016 में, केंद्र सरकार ने अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को 1946 और 1920 अधिनियमों के प्रावधानों से छूट देते हुए दो अधिसूचनाएं जारी की थीं। ये समूह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे। चूँकि ये वहाँ से प्रताड़ित होकर आये थे। इनका जाना संभव न था। इसलिये अब मानवीय आधार पर इन्हे नागरिकता देने का निर्णय सरकार ने किया है।


लेख


रमेश शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार