'बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ - कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा को उजागर करती हुई फ़िल्म

फिल्म की मुख्य भूमिका में आईपीएस अफसर के रूप में अदा शर्मा ने शानदार अभिनय किया है। दूसरे अन्य कलाकारों का भी अभिनय अच्छा है। फिल्म का एक गीत वन्दे वीरम अच्छा है। सुदीप्तो सेन का निर्देशन कमाल का है।

The Narrative World    18-Mar-2024   
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'बस्तर में भारत का झंडा लहराना एक जुर्म है', जिसकी सजा है दर्दनाक मौत। दरअसल बस्तर को लेकर बोला गया यह एक ऐसा वाक्य है, जो किसी के भी मन में सिहरन पैदा कर सकता है। कम्युनिस्ट आतंकवाद अर्थात नक्सलवाद के खूंखार रूप को उजागर करने एक फ़िल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, जिसका नाम है बस्तर - द नक्सल स्टोरी। यह जो डायलॉग है कि बस्तर में भारत का झंडा लहराना एक जुर्म है, यह इसी फिल्म का है।

फ़िल्म में नक्सलवाद से पीड़ित एक स्थानीय जनजातीय महिला दिखाई गई है, जो बताती है कि कैसे नक्सलियों ने उसके पति की हत्या की थी। पूरा डायलॉग कुछ इस प्रकार है कि, वह कहती है 'मेरे पति मिलिंद कश्यप को नक्सलियों ने मार दिया। पूरे गांव के सामने 32 टुकड़े कर दिए। और उसके खून को अपने शहीद स्तंभ पर मेरे हाथों से रंगवाया।'

फिल्म में छत्तीसगढ़ के माओवादियों, नक्सलियों की वीभत्स आतंकवादी गतिविधियां, उनकी भारत विरोधी साजिशें और इस काम में विदेशी ताकतों का खुला सहयोग सब खुलकर सामने आता है।


बस्तर : द नक्सल स्टोरी सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म है। देश में अराजकता फैलाकर देश को कमजोर करने और फिर तोड़ने की विदेशी ताकतों की साजिशों की कहानी है। भारत को कमजोर करने और भारत की खनिज सम्पदा को लूटने के लिए नकली मूल्यों के साथ कैसे देश के ही लोगों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ाया जाता है और पैसों के बल पर भारत के बुद्धिजीवियों को कैसे दुर्दान्त नक्सलियों के पक्ष में खड़ा किया जाता है, इसकी पूरी कहानी फिल्म परत दर परत खोलती है।


फिल्म का एक संवाद है, 'कामरेड माओ कहते हैं, भारत पर राज करना है तो हमें जुडिशरी और जर्नलिज्म में घुसपैठ करनी होगी। कुछ यूनिवर्सिटीज को अपने लिए सुरक्षित करना होगा' अब याद कीजिए भारत में इन क्षेत्रों से जुड़े बुद्धिजीवियों की हरकतें कैसी रही है।


इसी तरह एक और संवाद है- अगर हमें लाल किले पर तिरंगे की जगह लाल परचम फहराना है तो हमें पूरे सिस्टम में घुसकर दीमक की तरह उसे खोखला करना होगा। यह भी याद कीजिए कैसे नक्सल समर्थकों ने भारत के पूरे सिस्टम में घुसकर उसे खोखला किया गया।


यह एक ऐसी फिल्म है जो कम्युनिज़्म के आतंकी विचार का पर्दाफाश करती है। नक्सलियों के मानवाधिकारों की बात करने वाले जिन ग्रामीणों और पीड़ितों को भूल चुके हैं, उन पीड़ितों की कहानी ही इस फ़िल्म का मुख्य केंद्र है।


फिम में 2010 में हुए ताड़मेटला की घटना का उल्लेख करते हुए दिखाया गया है कि 'बस्तर में हमारे 76 जवानों को नक्सलियों ने बड़ी क्रूरता से मारा था, और तब इसका जश्न मनाया गया था, एक दिल्ली के एक विश्वविद्यालय में।


दरअसल इसमें उसी ताड़मेटला हमले का जिक्र है, जिसे माओवादियों ने अप्रैल 2010 में अंजाम दिया था। इसमें 76 जवान बलिदान हुए थे और यह अब तक का सबसे बड़ा माओवादी आतंकी हमला है। इस घटना के बाद JNU में कम्युनिस्ट पार्टी एवं संगठनों से जुड़े लोगों ने जश्न मनाया था।


फिल्म की मुख्य भूमिका में आईपीएस अफसर के रूप में अदा शर्मा ने शानदार अभिनय किया है। दूसरे अन्य कलाकारों का भी अभिनय अच्छा है। फिल्म का एक गीत वन्दे वीरम अच्छा है। सुदीप्तो सेन का निर्देशन कमाल का है। फ़िल्म में पुलिस अधिकारी का किरदार निभा रही अदा शर्मा कहती हैं कि 'पाकिस्तान के साथ हुए 4 युद्धों में हमारे 8,736 जवान शहीद हुए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश के अंदर नक्सलियों ने 15,000 से ज्यादा जवानों की हत्या की है।'


कुल मिलाकर नक्सली आतंकवाद के विभिन्न आयामों को समझने के लिए यह फिल्म देखी जानी चाहिए। फिल्म सार्थक बौद्धिक विमर्श को तो प्रेरित करती ही है, पैसा, सुरा और सुंदरी के लिए बिक जाने वाले भारत के बुद्धिजीवियों की विश्वसनीयता पर सोचने को विवश करती है।