मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दु विरोध की नीति के साथ लोकसभा चुनाव लड़ेगी कांग्रेस पार्टी ?

मुस्लिम मतदाताओं को होने वाली परेशानियों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कांग्रेस पार्टी ने ये मांग की है। वहीं कांग्रेस की वैचारिक सहयोगी पार्टी आईयूएमएल (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) भी इसी मुद्दे को उठा रही है।

The Narrative World    21-Mar-2024   
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भारतीय राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण को लाने वाली कांग्रेस पार्टी अब आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी इसी नीति को अपनाते हुए दिखाई दे रही है। एक तरफ जहां राहुल गांधी हिन्दु धर्म की
'शक्ति' के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का आह्वान कर रहे हैं, तो वहीं उनके संसदीय राज्य में उनकी पार्टी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा को पार करने में लगी है।


दरअसल लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने जिन तारीखों का ऐलान किया है, उसे लेकर कांग्रेस पार्टी ने आपत्ति जताई है। हैरानी की बात यह है कि यह आपत्ति कांग्रेस पार्टी ने केवल इसलिए जताई है क्योंकि चुनाव की एक तिथि शुक्रवार अर्थात जुमे के दिन पड़ रही है।


केरल कांग्रेस ने चुनाव आयोग से अपील करते हुए कहा है कि केरल में मतदान की तारीख को आगे बढ़ाया जाए, क्योंकि शुक्रवार को जुमे का दिन है और इसे इस्लाम में सप्ताह का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।


खबर के अनुसार मुस्लिम मतदाताओं को होने वाली परेशानियों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कांग्रेस पार्टी ने ये मांग की है। वहीं कांग्रेस की वैचारिक सहयोगी पार्टी आईयूएमएल (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) भी इसी मुद्दे को उठा रही है।


यह वही मुस्लिम लीग है, जो पाकिस्तान निर्माण के समय जिन्ना के मुस्लिम लीग का हिस्सा थी, जिसे विभाजन के बाद जिन्ना ने भारत में ही सक्रिय रहने का निर्देश दिया था।

“ध्यान से समझे, तो यह दिखाई देता है कि किसी जमाने में भारत का विभाजन कराने वाली मुस्लिम लीग और आज की कांग्रेस पार्टी के विचार पूरी तरह से एक जैसे हो चुके हैं। कांग्रेस पार्टी मुस्लिम तुष्टिकरण में इतना घुस चुकी है कि उसे अब भारत का दूसरा समाज दिखाई देना ही बंद हो चुका है।”


यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति अपनाई है, कांग्रेस पार्टी नेहरू के जमाने से ही इस नीति पर चल रही है। बीते दो दशकों की बात करें तो इसमें 10 वर्षों के कांग्रेस कार्यकाल एवं 10 वर्षों के भाजपा कार्यकाल के दौरान कांग्रेस द्वारा पक्ष एवं विपक्ष में रहते हुए लिए गए नीतिगत फैसले इन बातों की पुष्टि भी करते हैं।


इसका एक बड़ा दस्तावेजी उदाहरण कांग्रेस पार्टी की अपनी समीक्षा बैठक से भी सामने आया है। जब कांग्रेस वर्ष 2014 में लोकसभा का चुनाव बुरी तरह से हार कर बैठी थी, तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने हार की समीक्षा रिपोर्ट तैयार कर यह बताया था कि 'मुसलमानों के प्रति कांग्रेस की अति तुष्टिकरण की नीति ने पार्टी को हार के इस अंजाम तक पहुंचाया है।'


यह सोनिया गांधी के नेतृत्व में चल रही उस कांग्रेस सरकार की नीतियां थी, जिसमें मनमोहन सिंह कहते थे कि 'देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है।'


इसके अलावा बीते वर्ष हुए कर्नाटक चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिम तुष्टिकरण का गेम खेला था, जिसमें उसे सफलता मिली थी। लेकिन कांग्रेस को यह लगने लगा था कि यह रणनीति देश के अन्य हिस्सों में भी उसी तरह कारगर होगी, लेकिन कांग्रेस पार्टी यहां विफल हुई।


2023 के अंतिम महीनों में जब 5 राज्यों के चुनाव हुए तो एक तरफ जहां मध्यप्रदेश में भाजपा को प्रचंड जीत मिली, वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थापित सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा।


इन सब के बाद एक बार फिर कांग्रेस इस्लामिक तुष्टिकरण के उसी जिन्न के साथ लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है, जिसका साफ उद्देश्य है कि वह भारत में मुस्लिम मतदाताओं के लिए 'डिफॉल्ट पार्टी' बनना चाहती है।


हालांकि कांग्रेस की इस तुष्टिकरण की नीति ने भारत के मतदाताओं को सोचने, समझने एवं विचार करने के लिए पर्याप्त अवसर दे दिया है, यही कारण है कि अब सोशल मीडिया से लेकर गली-मोहल्लों की चर्चाओं में यह पूछा जा रहा है कि 'मुस्लिमों का जुमा कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है, तो हिंदुओं की शक्ति के विरुद्ध राहुल गांधी क्यों लड़ना चाहते हैं।'


यह भी पूछा जा रहा है कि क्या कभी कांग्रेस ने मंगलवार या शनिवार को हिंदुओं की आस्था का ध्यान रखते हुए कोई फैसला लिया है ? यदि ऐसा नहीं है, तो आज कांग्रेस को शुक्रवार को होने वाले मतदान से क्या समस्या है ? आखिर यह एक लोकतांत्रिक देश है, जहां किसी एक मजहब की आस्थाओं के लिए क्या चुनाव रोक दिया जाएगा ?


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