भ्रष्टाचार के आरोपी केजरीवाल गिरफ्तार : शराब घोटाले से विदेशी कनेक्शन तक, जानिए सबकुछ

दिल्ली सरकार द्वारा लाए गए आबकारी नीति 2021-22 में अरबों रुपये के घोटाले सामने आए हैं, जिसके बाद से ही आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारियां हो रही हैं। इससे पहले बीते वर्ष दिल्ली के उपमुख्यमंत्री एवं आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया, आप के सांसद संजय सिंह भी गिरफ्तार हो चुके हैं।

The Narrative World    22-Mar-2024   
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दिल्ली के चर्चित शराब नीति घोटाले के मामले में अंततः ईडी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया है। गुरुवार
(21 मार्च, 2024) देर शाम ईडी की टीम केजरीवाल के घर दसवां समन लेकर पहुँची थी, जिसके बाद एजेंसी ने पूछताछ की और फिर केजरीवाल को हिरासत में ले लिया।


बीते 2 नवंबर 2023 से लेकर 21 मार्च 2024 के बीच केजरीवाल को ईडी में 9 समन जारी किए थे, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री एक बार भी ईडी के सामने पेश नहीं हुए, और हर बार किसी ना किसी बहाने से ईडी के नोटिस को नजरअंदाज किया।


भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हुए अरविंद केजरीवाल ने हाईकोर्ट में भी गिरफ्तारी से सुरक्षा के लिए अपील की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। हालांकि केजरीवाल अब इससे बचने के लिए शुक्रवार की सुबह सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचने वाले हैं।


दिल्ली सरकार द्वारा लाए गए आबकारी नीति 2021-22 में अरबों रुपये के घोटाले सामने आए हैं, जिसके बाद से ही आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारियां हो रही हैं। इससे पहले बीते वर्ष दिल्ली के उपमुख्यमंत्री एवं आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया, आप के सांसद संजय सिंह भी गिरफ्तार हो चुके हैं।


“मनी लॉड्रिंग के मामले में ईडी इस मामले की जांच कर रही है, जिसके तहत आरोपियों की गिरफ्तारी में अरविंद केजरीवाल का नाम खुलकर आया है। बीते सप्ताह ही तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी के कविता की भी इसी मामले में गिरफ्तारी हुई है।”


ईडी के आरोपों के अनुसार इस मामले के आरोपियों के केजरीवाल से सीधे संबंध थे, और इन्हें फायदा पहुंचाने के लिए ही यह आबकारी नीति दिल्ली में लाई गई थी। हालांकि यह केवल एक ऐसा मामला नहीं है जिसे लेकर केजरीवाल को संदिग्ध तरीके से देखा जा रहा है, इससे पहले भी केजरीवाल की सभी गतिविधियां विदेशी एजेंसी और संस्थाओं से जुड़ी हुई दिखाई देती है।


विदेशी संस्थाओं और एजेंसियों से केजरीवाल के सम्बंध


केजरीवाल का विदेशी संस्थाओं से पुराना संबंध है। ऐसे आरोप भी लगते रहे हैं (अभी भी लगते हैं) कि केजरीवाल अमेरिकी खुफिया संस्था सीआईए के एजेंट हैं। अरविंद केजरीवाल के सीआईए से संबंध, अरुण राय की भूमिका, एनजीओ का मायाजाल से लेकर अन्ना आंदोलन और आम आदमी पार्टी के सफर की घटनाएं ना सिर्फ संदिग्ध है, बल्कि भारत विरोधी शक्तियों का समर्थन भी इसमें देखा जा सकता है।


अरविंद केजरीवाल को वर्ष 2006 में नौकरी छोड़ने के बाद ही 'रैमन मैग्सेसे' पुरस्कार दिया गया है, दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2006 में ही केजरीवाल को यह पुरस्कार 'उभरते नेतृत्व' के लिए दिया गया था। यह गौर करने वाली बात है कि केजरीवाल ना इस दौरान किसी पार्टी से जुड़े थे, ना आंदोलन से, ना किसी राजनीतिक इकाई से और ना ही उन्हें देश में कोई खास पहचान थी। लेकिन इसके बावजूद उन्हें 'उभरते नेतृत्व' के लिए रैमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया था।


अब ऐसा है कि, वर्ष 1957 से रैमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया जा रहा है, जिसमें पर्दे के पीछे से फोर्ड फाउंडेशन और रॉकफेलर ब्रदर्स फंड की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह पुरस्कार मुख्य रूप से उन्हें दिया जाता है जो अपने देश में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाते हैं, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित की ओर प्रभावित कर सकते हैं, देश की चुनी हुई सरकारों को भ्रष्टाचार या अन्य मुद्दों को लेकर अस्थिर कर सकते हैं या देश में राजनीतिक के साथ-साथ सामाजिक अस्थिरता भी खड़े कर सकते हैं।


वर्ष 2006 में अरविंद को केजरीवाल को यह पुरस्कार दिया गया था, और ऐसा माना जा सकता है कि सीआईए ने भारत में भी अपना एक 'रैमन मैग्सेसे' खड़ा करने की योजना से यह किया है, क्योंकि इसके बाद केजरीवाल की संस्था और फोर्ड फाउंडेशन के संबंध और इनके बीच के वित्तीय लेनदेन सामने आए हैं।


दरसअल वामपंथी कार्यकर्ता अरुणा राय के अरविंद केजरीवाल से बहुत अच्छे संबंध रहे हैं। अरुणा राय भी भारत में 'एनजीओ मायाजाल' की एक महत्वपूर्ण इकाई है। केजरीवाल ने एनजीओ की व्यवस्थाओं को लेकर सारे गुर अरुणा राय से सीखा है।


अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2002 में फोर्ड फाउंडेशन से अपने एनजीओ 'सम्पूर्ण परिवर्तन' के लिए बड़ी रकम हासिल की थी। फोर्ड फाउंडेशन ने केजरीवाल की संस्था को उस दौरान 80,000 डॉलर दिया था। यह वह दौर था जब केजरीवाल स्वयं एक शासकीय कर्मचारी थे, अतः यह एक गैर कानूनी कृत्य था।


केजरीवाल ने 'अध्ययन अवकाश' लेकर भी अपने एनजीओ के लिए कार्य किया जोकि एक गैरकानूनी कृत्य था। वहीं वर्ष 2006 में विश्व बैंक ने केजरीवाल की संस्था को फंड दिया और इसके बाद केजरीवाल ने अपनी नौकरी छोड़ दी, हालांकि उनका त्यागपत्र तब तक स्वीकार नहीं हुआ था।


इसके बाद वर्ष 2006 में ही केजरीवाल को रैमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया। इसके बाद केजरीवाल ने एक और एनजीओ का गठन किया जिसका नाम है 'कबीर', दस्तावेजों के अनुसार इसका गठन 15 अगस्त 2005 को किया गया है, इस दौरान भी केजरीवाल शासकीय नौकरी में थे।


फोर्ड फाउंडेशन ने अपने वित्तीय दस्तावेजों में इस बात का उल्लेख किया था कि उन्होंने केजरीवाल की संस्था 'कबीर' को वर्ष 2005 में 1,72,000 डॉलर और वर्ष 2008 में 1,97,000 डॉलर का अनुदान दिया था।


इसके अलावा केजरीवाल ने वर्ष 2004 में 'अशोका' नामक संस्था से भी फेलोशिप हासिल किया था। अशोका एक अमेरिकी संस्था है जो शीत युद्ध के समय से ही अमेरिका के लिए विश्वभर में मानव संसाधन एकत्रित करने का प्रयास कर रही है, जो अमेरिकी नीतियों का पक्ष ले सके।


अमेरिकी संस्थाओं के साथ-साथ अमेरिकी पक्षधर नीदरलैंड दूतावास की ओर से भी केजरीवाल की संस्था को अनुदान प्राप्त हुए थे। दरसअल नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के माध्यम से संबंधित देशों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां के विभिन्न एनजीओ को अनुदान देती है।


'पायनियर' की एक रिपोर्ट के अनुसार नीदरलैंड दूतावास ने तत्कालीन गुजरात सरकार (नरेंद्र मोदी तब मुख्यमंत्री थे) को अस्थिर करने के लिए विभिन्न भारतीय गैर-सरकारी संस्थाओं को वर्ष 2008-2012 के बीच लगभग 9 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग की थी। दिलचस्प बात यह है कि यह फंडिंग 'हिवोस' नामक एक डच एनजीओ से की गई थी और इस संस्था को भी फोर्ड फाउंडेशन के द्वारा अनुदान दिया जाता है।


नीदरलैंड की संस्था द्वारा दिए गए अनुदान में अरविंद केजरीवाल की संस्था भी शामिल थी। 'हिवोस' के बारे में यह भी जानना आवश्यक है कि यह विभिन्न देशों के उन संस्थाओं को फंडिंग करती है जो अपने देश में अमेरिकी-यूरोपीय नीतियों के हित मे कार्य कर सकते हैं। इ


सके अलावा एक संस्था और है जिसका नाम है 'पनोस', यह एशियाई देशों में मीडिया को फंडिंग करती है, ताकि यूरोपीय और अमेरिकी हितों का पक्ष लिया जा सके। इस संस्था का गठन अमेरिका और यूरोपीय देशों ने कर रखा है। अब जानने वाली बात यह है कि इस 'पनोस' नामक संस्था में भी फंडिंग फोर्ड फाउंडेशन द्वारा ही किया जाता है, और दक्षिण एशिया में इस समय इसके करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं।


ऐसा माना जाता है कि पिछले 10 वर्षों में जिस तरह से अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी के गठन और दिल्ली में हुए विधानसभा सभा चुनावों से लेकर विभिन्न राज्यों के चुनाव और लोकसभा चुनावों के दौरान मीडिया में अरविंद केजरीवाल के उभार के पीछे इसी 'पनोस' के माध्यम से फोर्ड फाउंडेशन की बड़ी भूमिका है।


विदेशी शक्तियों द्वारा देश को अस्थिर करने के लिए 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का चाल चला था ताकि केजरीवाल को स्थापित किया जा सके। इसके लिए पहके रामदेव बाबा का उपयोग करने का भी विचार था लेकिन उन्होंने संदिग्ध गतिविधियों को देखते हुए केजरीवाल के रास्ते से खुद को अलग कर लिया था।


इसके बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और चारों ओर मीडिया ने केजरीवाल को ईमानदारी का मसीहा बनाकर पेश किया, ठीक उसी तरह जिस तरह से फिलिपींस में मैग्सेसे को सीआईए ने किया था। यह पूरी गतिविधियां वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले की जा रही थी, ऐसा अनुमान था कि आम आदमी पार्टी इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका में रहेगी, लेकिन चुनाव के नतीजों ने इस पूरे षड्यंत्र की दिशा ही बदल दी। इस दौरान अमेरिकी संस्थाओ ने केजरीवाल को आंदोलन से लेकर पार्टी गठन करने और चुनाव लड़ने के लिए फंड दिया।


दरअसल केजरीवाल अमेरिका के उसी 'कल्चरल कोल्ड वॉर' के हथियार हैं, जिसके माध्यम से अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान विभिन्न देशों में अपनी नीतियों को लागू करने के लिए तरह तरह के षड्यंत्र रचे। यही कारण है कि जब देश की सेना जब पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक करती है तो केजरीवाल उसका सबूत मांगते हैं।


यही कारण है कि जब भारत में पड़ोसी इस्लामिक मुल्कों में प्रताड़ित होने वाले हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लिए सीएए लाया जाता है तो उसके विरुद्ध देश की राजधानी में आंदोलन होता है और हिंदु विरोधी दंगा होता है, जिसमें केजरीवाल की पार्टी के लोग गुनाहगार साबित होते हैं। वर्तमान में पंजाब में खालिस्तानी भावनाओं को तूल देने से लेकर विभिन्न देशविरोधी गतिविधियों में शामिल केजरीवाल क्या सच में विदेशी संस्था के एजेंट हैं , और यदि यह सच है तो देश के जन-जन तक इसकी सच्चाई पहुंचनी चाहिए।