अर्बन नक्सली जीएन साईबाबा को हाईकोर्ट से राहत तो मिल गई, लेकिन उसका नेक्सस जानना भी जरूरी है

पुलिस के द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार जीएन साईबाबा प्रतिबंधित माओवादी-नक्सली आतंकी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य है। जेएनयू के गिरफ्तार छात्र ने बताया था कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादी आतंकियों और शहरी नक्सल-आतंकी जीएन साईबाबा के बीच "कुरियर" का काम करता था।

The Narrative World    06-Mar-2024   
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वर्ष
2014 में पुलिस अधिकारियों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र हेमंत मिश्रा को प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन से संपर्क रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था। इस दौरान पुलिस ने गिरफ्तार कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हेमंत मिश्रा से लंबी पूछताछ की थी, जिसमें उसने माओवादियों से संबंधों को स्वीकार किया था। इस पूछताछ में एक नाम ऐसा आया था, जिसने सभी को चौंका दिया था। वह नाम था दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईबाबा का।


दरअसल वामपंथी कार्यकर्ता और तथाकथित माओवादी सहयोगी हेमंत मिश्रा ने जीएन साईबाबा और माओवादियों को बीच संबंध होने की पुष्टि की थी। केवल इतना ही नहीं, पुलिस द्वारा पूछताछ में हेमंत मिश्रा ने यह भी बताया था कि बस्तर के भीतर अबूझमाड़ के जंगलों में जीएन साईबाबा और माओवादियों के बीच मुलाकात भी हुई थी।


जब पुलिस ने हेमंत मिश्रा से इस मुलाकात की अधिक जानकारी ली, तब वामपंथी कार्यकर्ता हेमंत ने बताया कि माओवादियों से साईबाबा की मुलाकात उसने ही करवाई थी। वामपंथी कार्यकर्ता और तथाकथित नक्सली सहयोगी हेमंत मिश्रा के द्वारा दी गई इस जानकारी के आधार पर पुलिस ने मई 2014 में जीएन साईबाबा को दिल्ली से गिरफ्तार किया था।


पुलिस ने इस पर प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन से संबंध रखने का आरोप लगाया था। इसके बाद पुलिस ने जिस तरह से जांच की तब यह जानकारी सामने आई कि साईबाबा ने वर्ष 2012 में प्रतिबंधित कम्युनिस्ट आतंकी संगठन रेवल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट की कांफ्रेंस में हिस्सा लिया था।


इस पूरे मामले को लेकर जब पुलिस अदालत पहुंची तब जिला अदालत की सुनवाई के दौरान पुलिस के वकील ने कोर्ट में यह बयान दिया था कि साईबाबा उसे प्रतिबंधित संगठन के डिप्टी जॉइंट सेक्रेटरी के रूप में कार्य कर रहे थे।


इसके अलावा कोर्ट में वकील के द्वारा या आप भी लगाया गया कि साईबाबा ने एक भाषण में कहा था कि नक्सलवाड़ी लोकतांत्रिक सरकार की व्यवस्था को खत्म करने का एकमात्र रास्ता है।


आज दरअसल इस जीएन साईबाबा की बात इसलिये हो रही है, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने माओवादियों से संबंध के मामले में जीएन साईबाबा को बरी कर दिया है।


उच्च न्यायालय ने 5 मार्च, मंगलवार को यह फैसला सुनाया है। नागपुर के केंद्रीय जेल में बंद जीएन साईबाबा एवं अन्य लोगों पर लगे माओवादी संबंध के आरोपों को लेकर उच्च न्यायालय का कहना है कि पुलिस उन पर लगे आरोप को साबित करने में विफल रही है।


साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की अपील पर फैसला नहीं कर लेता तब तक आरोपी को 50,000 के जमानत राशि पर रिहा किया जा सकता है। इस पूरे मामले को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने तत्काल सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।


दरअसल इस फैसले से पहले वर्ष 2022 में भी मुंबई हाई कोर्ट में साईबाबा को रिहा करने का आदेश दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा था कि आरोपियों के विरुद्ध गंभीर किस्म के अपराध हैं और इस पूरे फैसले पर एक विस्तृत जांच की आवश्यकता है, क्योंकि उच्च न्यायालय ने आरोपियों के विरुद्ध गंभीर अपराध को देखते हुए मामले की मेरिट पर विचार नहीं किया है।


यह पूरा मामला 2014 से चल रहा था, जब पुलिस ने जीएन साईबाबा को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद वर्ष 2017 में उसपर यूएपीए के तहत चार्जशीट फाइल की गई थी। इसके बाद वर्ष 2017 में गडचिरोली जिला न्यायालय ने साईबाबा समेत अन्य आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

क्या जीएन साईबाबा की कहानी ?


साईबाबा एक तथाकथित माओवादी समर्थक है जो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हुआ करता था। जीएन साईबाबा नामक यह शहरी माओवादी इस देश के लिए इतना खतरनाक है कि देश की एक अदालत ने इस माओवादी आतंकवादी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

मुख्यधारा की मीडिया और वामपंथी प्रोपेगेंडा समूह में जीएन साईबाबा को जनजाति समाज के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के रूप में पेश किया जाता रहा है। लेकिन वास्तव में जीएन साईबाबा इस देश का एक खूंखार नक्सली माओवादी आतंकी है।

जीएन साईबाबा 2017 में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और माओवादी आतंकियों से संबंधों के चलते दोषी पाया गया था। इसके बाद जीएन साईबाबा को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। जीएन साईबाबा को महाराष्ट्र पुलिस ने दिल्ली के उसके घर से 9 मई 2014 को गिरफ्तार किया था।

“पुलिस के द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार जीएन साईबाबा प्रतिबंधित माओवादी-नक्सली आतंकी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य है। जेएनयू के गिरफ्तार छात्र ने बताया था कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादी आतंकियों और शहरी नक्सल-आतंकी जीएन साईबाबा के बीच "कुरियर" का काम करता था।”


इसके अलावा माओवादी आतंकी कोबाड गांधी, बच्चा प्रसाद सिंह और प्रशांत राही ने भी पूछताछ में शहरी माओवादी आतंकी जीएन साईबाबा का नाम लिया था। शहरी नक्सली जीएन साईबाबा देश के लिए इतना खतरनाक है, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि उसे नागपुर में उसी अंडा जेल में 14 महीने रखा गया था जहां कसाब को कैद करके रखा गया था।

वहीं पूर्व में वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट और वामपंथी विचारक, पत्रकार, साहित्यकार, नक्सलवादी विचारक, स्टैंड अप कॉमेडियन समेत बॉलीवुड के बी ग्रेड कलाकारों ने शहरी नक्सल जीएन साईबाबा के रिहाई के लिए मुहिम चलाने की कोशिश की थी।