'पारसी' और 'कैथोलिक ईसाई' ब्लडलाइन वाले राहुल गांधी को हिंदुओं की जाति जनगणना करानी है

बीते डेढ़ वर्षों से राहुल गांधी हिन्दु समाज को बांटने के लिए समाज के भीतर की जातियों में फूट डालने का प्रयास कर रहे हैं। एक समय था, जब अंग्रेज कैथोलिक ईसाइयों ने भारतीय समाज के बीच फूट डालकर शासन किया था, अब एक बार फिर उसी "कैथोलिक ब्लडलाइन" (सोनिया गांधी मूल रूप से कैथोलिक ईसाई है) से जुड़े एक नेता राहुल गांधी फिर हिंदुओं को बांटकर भारत में राज करना चाहते हैं।

The Narrative World    07-Mar-2024   
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2014 से पहले कांग्रेस पार्टी से चुने हुए प्रधानमंत्री कहते थे कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुस्लिमों का है। यही कांग्रेस पार्टी दंगों में हिंदुओं को बेवजह शामिल करने के लिए कानून लाना चाहती थी। इसी कांग्रेस पार्टी ने हिंदुओं को बदनाम करने के लिए 'हिंदु आतंकवाद' और 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्द गढ़ें।


वहीं 2014 के चुनाव से पहले मुस्लिमों के एकमुश्त वोट के लिए 'सुपर पीएम' सोनिया गांधी जामा मस्जिद के इमाम से मिलने भी पहुंच गई थी। फिर 2014 के चुनाव हुए, जिसने पूरे भारत को यह बताया कि यहां अब तुष्टिकरण की राजनीति नहीं चलेगी।


कांग्रेस पार्टी ने वर्षों तक हिंदुओं को जातियों में बांटकर और मुस्लिमों को एकजुट कर अलग-अलग वोट बैंक बना रखे थे, और इन्हीं वोट बैंकों के माध्यम से वो अपनी सत्ता को बरकरार रखती थी। और तो और जब कांग्रेस पार्टी ने हार की समीक्षा की, तब भी यह बात सामने आई कि मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था।


फिर समय बितने लगा और राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली और 'हिन्दु दिखने' का प्रयास किया। ध्यान रहे, राहुल गांधी ने केवल हिन्दु दिखने का प्रयास किया, हिन्दु समाज की आध्यात्मिकता और भावनात्मकता को कभी नहीं समझा।


गांधी ने मंदिरों के चक्कर लगाए, यात्राएं की और देवस्थानों में माथा टेका। लेकिन बात वही थी, उन्होंने हिन्दु समाज की आध्यात्मिकता को नहीं समझा था, यही कारण है कि उनका यह 'चुनावी हिन्दु' का प्रयोग असफल रहा, और कांग्रेस एक बार फिर 2019 के आम चुनाव में बुरी तरह से हारी।


इस हार के बाद कांग्रेस पार्टी बैचेन हो चली थी, नेताओं की उम्मीद खत्म हो चुकी थी, और हताश-निराश राहुल गांधी की अमेठी की हार ने उन्हें पूरी तरह से बैकफुट पर धकेल दिया था। इसके बाद शुरू हुआ देश को बांटने का खतरनाक षड्यंत्र।


पहले शाहीन बाग में मुस्लिमों को भड़काया गया, राहुल गांधी इन लोगों के साथ भी खड़े थे। फिर किसान आंदोलन के नाम पर देश में हिंसा हुई, कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी इसमें भी उपद्रवियों के साथ थे। इस आंदोलन के नाम पर सिख और जाट समाज को सनातन संस्कृति से अलग करने का षड्यंत्र रचा गया।


लेकिन जैसे-जैसे राहुल गांधी और उसके नेक्सस के सारे दांव फेल होते गए, वैसे-वैसे ही राहुल गांधी ने समाज को बांटने के लिए नई साजिश शुरू कर दी। इस बीच अब राहुल गांधी ने नया शिगूफा छेड़ा है 'जाति जनगणना' का।


“बीते डेढ़ वर्षों से राहुल गांधी हिन्दु समाज को बांटने के लिए समाज के भीतर की जातियों में फूट डालने का प्रयास कर रहे हैं। एक समय था, जब अंग्रेज कैथोलिक ईसाइयों ने भारतीय समाज के बीच फूट डालकर शासन किया था, अब एक बार फिर उसी 'कैथोलिक ब्लडलाइन' (सोनिया गांधी मूल रूप से कैथोलिक ईसाई है) से जुड़े एक नेता राहुल गांधी फिर हिंदुओं को बांटकर भारत में राज करना चाहते हैं।”

 


राहुल गांधी की हिंदुओं को बांटने की यह साजिश जिस तरह से चल रही थी, उससे ना सिर्फ भारत का समाज टूटता बल्कि देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति भी आ सकती थी।


अपनी भारत जोड़ो यात्रा को भी राहुल गांधी कुछ ऐसे ही षड्यंत्र के साथ बनाया था, कि इसके समापन के साथ भारत के अलग-अलग वर्गों के बीच देश और उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध अविश्वास पैदा कर उन्हें अराजक स्थिति में विरोध प्रदर्शन के लिए मजबूर कर दिया जाए।


दरअसल राहुल गांधी का एजेंडा दिल्ली को चारों ओर से एक बार फिर चोक करने का था। योजना यह थी कि एक तरफ जहां पंजाब और हरियाणा से उपद्रवी सिंघु बॉर्डर को घेर लेंगे, वहीं दूसरी ओर NH24 को पश्चिम यूपी के किसानों द्वारा घेर लिया जाएगा।


इसके अलावा जिस तरह से केंद्रीय गृहमंत्री ने CAA के नोटिफिकेशन जारी करने की बात कही थी, उसे लेकर भी योजना बनाई थी। इनकी साजिश थी कि जब देश की राजधानी को दोनों ओर से किसान के भेष में उपद्रवी घेर लेंगे, तब ये एक और शाहीन बाग खड़ा कर दिल्ली के भीतर ही अराजकता पैदा कर देते।



वहीं यह षड्यंत्र केवल यहीं तक नहीं रुकता, जिस प्रकार से विदेशों में कुछ खास पत्रकारों, कोचिंग संस्थाओं के मालिकों और अन्य लोगों की ब्रेन स्टॉर्मिंग हुई है, उसी योजना को यहाँ एक्जीक्यूट किया जाना था।


इसके तहत हरियाणा के रेसलर जंतर-मंतर पहुंचते, कोचिंग संस्थानों के भड़काए हुए नौजवान बेरोजगारी के नाम पर चलो दिल्ली का नारा देते और धीरे-धीरे एक माह के भीतर ही दिल्ली चोक कर जाती।


फिर यही पत्रकार पूरे देश में मोदी विरोध का नैरेटिव गढ़ते। और फिर इन सब के बीच एंट्री होती, मोहब्बत के मसीहा राहुल गांधी की। जो न्याय यात्रा कर दिल्ली पहुँच, सभी को न्याय दिलाने का वादा करते और फिर सभी समूह उसके लिए वाहवाही करते।


यह पूरा प्लान, बिल्कुल बढ़िया चल रहा था, लेकिन इस बीच कुछ चीजें ऐसी हुईं जो इन्होंने सोचा भी नहीं था। इसमें सबसे पहले खेल हुआ पश्चिम यूपी में। जैसे ही चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न देने की घोषणा हुई, वैसे ही जयंत चौधरी ने भावुकता से एनडीए का दामन थाम लिया। इसके चलते पश्चिम यूपी का पूरा मोबलाइजेशन रुक गया और NH 24 ब्लॉक नहीं हो पाया।


फिर इन षड्यंत्रकारियों के लिए आउट ऑफ सिलेबस आये मनोहर लाल खट्टर। दरअसल इन उपद्रवियों ने सोचा था कि पिछली बार की तरह इस बार भी पंजाब के उपद्रवी हरियाणा के किसानों को भड़काकर उनका उपयोग कर लेंगे और हरियाणा सरकार को दिल्ली बॉर्डर खोलना पड़ेगा। लेकिन मनोहर लाल खट्टर ने इस अराजक गिरोह को शंभू बॉर्डर से हरियाणा में घुसने ही नहीं दिया। इसके अलावा हरियाणा के किसानों को विश्वास में लिया और उन्हें आंदोलन से दूर रखा।


घिसी पिटी कसर इन उपद्रवियों ने खुद के षड्यंत्र को उजागर कर पूरी कर दी। खालिस्तानियों ने खुलकर भारत विरोधी बयान दिए, नारे लगाए, पाकिस्तान के प्रति प्रेम दिखाया और हिंदुओं के प्रति घृणा दिखाई। इसके चलते इन्हें कोई समर्थन भी नहीं मिला। वहीं केंद्र सरकार ने भी CAA का नोटिफिकेशन जारी नहीं किया, जिससे शाहीन बाग वाला मोबिलाइजेशन रुक गया।

लेकिन जब ये सब साजिश विफल हो गई, तब राहुल गांधी ने दोबारा जाति के आधार पर बांटने की रणनीति पर जोर देना शुरू कर दिया। इसी कड़ी में राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में जनजाति समाज को भी भड़काने का काम किया।


राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में कहा कि भाजपा ने जनजाति समाज को धोखा दिया है। वहीं उन्हें वनवासी कहे जाने पर भी आपत्ति जताई, हालांकि यह उनकी समझ भी दर्शाता है कि वो वनवासी शब्द को लेकर शब्दार्थ के रूप में समझते हैं।


वहीं मप्र में जाति जनगणना पर उनकी टिप्पणी के बाद भोपाल के भाजपा विधायक ने जो प्रश्न पूछा है, वह विचारणीय है। भाजपा विधायक ने कहा कि 'राहुल गांधी पहले अपनी जाति के बारे में बताएं', दरअसल यह एक ऐसा प्रश्न है जो जरूर पूछा जाना चाहिए।


यदि हम राहुल गांधी की ब्लड लाइन देखें तो वह फिरोज़ जहांगीर से आती है। दरअसल फिरोज़ जहांगीर एक पारसी व्यक्ति थे, जिनकी इंदिरा गांधी से शादी हुई थी। अर्थात इंदिरा ने एक पारसी परिवार में विवाह किया था।


इसके बाद इंदिरा के बेटे राजीव गांधी, जो एक पारसी पिता के बेटे थे, ने कैथोलिक ईसाई महिला एंटोनिया मायनो (सोनिया गांधी का विवाह पूर्व नाम) से विवाह किया था।


इसका सीधा मतलब यह है कि राहुल गांधी जो एक पारसी फिरोज़ के पोते हैं, और कैथोलिक ईसाई के बेटे हैं, वो खुद की जाति भी नहीं बता सकते। ऐसे में यह भी दिखाई देता है कि कैसे राहुल गांधी भारत की आत्मा के साथ खिलवाड़ कर इसे खंडित करना चाहते हैं।


भले मध्यप्रदेश में राहुल गांधी जनजाति समाज के हितैषी होने का दिखावा कर रहे हों, लेकिन सच्चाई यही है कि राहुल गांधी जिस कांग्रेस पार्टी की अगुवाई करते हैं, उसी कांग्रेस पार्टी ने कभी जनजातीय हितों की ओर ध्यान नहीं दिया।


जनजाति समाज के लिए पहली बार अलग मंत्रालय भी आजादी के 50 साल बाद अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में बना। जब कांग्रेस की बारी आई तो उन्होंने छत्तीसगढ़ जैसे जनजातीय बाहुल्य राज्य में एक ईसाई को मुख्यमंत्री बनाकर भेजा। वहीं देश को पहला जनजाति राष्ट्रपति भी भाजपा की मोदी सरकार ने दिया।


कुल मिलाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि राहुल गांधी देश, समाज और राष्ट्र को खंडित करने की योजना से कार्य कर रहे हैं, जो ना सिर्फ भारत राष्ट्र के लिए, बल्कि आपके और मेरे लिए भी खतरनाक है।