विवाह और ब्रह्मांड के आरंभ की दिव्य रात्रि : महाशिवरात्रि

जनजातीय अवधारणा - जय सेवा. जय बड़ा देव.जोहार.सेवा जोहार -का मूल-कोयापुनेम अर्थात् मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता, में निहित है, जो "वसुधैव कुटुम्बकम् " के रुप में भारतीय संस्कृति में शिरोधार्य है।

The Narrative World    08-Mar-2024
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महाशिवरात्रि महापर्व केवल शिव-पार्वती का विवाह ही नहीं वरन् सृष्टि के आरंभ की रात्रि है। अहोरात्र! महाशिवरात्रि! वस्तुतः आदि शक्ति का एकाकार स्वरूप, अर्धनारीश्वर के रूप में अभिव्यक्त, दो स्वरूपों में पृथक-प्रेम-फिर मिलन का संदेश दर्शन है। पुन: एकाकार हो जाना, यही तो जीवन का रहस्य है। यही सत्य है, यही सुंदर है, यही शिव है। इसीलिये सनातन धर्म शाश्वत है। दुनिया में विविध धर्म हैं, परन्तु शायद ही इनके अधिष्ठाताओं ने नारी शक्ति को अभिव्यक्त किया हो। शक्ति के दो स्वरूपों के मधुर मिलन की रात्रि पर विश्व कल्याण निहित है।


वहीं दूसरी ओर जनजातीय अवधारणा - जय सेवा. जय बड़ा देव.जोहार.सेवा जोहार -का मूल-कोयापुनेम अर्थात् मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता, में निहित है, जो "वसुधैव कुटुम्बकम् " के रुप में भारतीय संस्कृति में शिरोधार्य है। विश्व में भारत से ही जनजाति समाज का आरंभ हुआ और उनके हमारे आदि देव एक ही हैं, अर्थात् अद्वैत है। हमारा मूल एक ही है, बड़ा देव ही महादेव हैं, इसलिए विघटनकारी तत्वों की बाँटने की कोशिश सफलीभूत नहीं होगी।


"शम्भू महादेव दूसरे शब्दों में शम्भू शेक के आलोक में महादेव की 88 पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है - प्रथम-शंभू-मूला, द्वितीय-शंभू-गौरा और अंतिम शंभू-पार्वती ही हैं" शंभू मादाव का अपभ्रंश - महादेव ही है।


महाशिवरात्रि को सृष्टि का आरंभ का होता है, क्योंकि आज के दिन ही प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, उर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ लिंग से सृष्टि का शुभारंभ होता है। विज्ञान भी इसी सिद्धांत के आलोक में आगे बढ़ता है,फलस्वरूप विश्व के निर्माण की बिग बैंग थ्योरी तथा डमरु से दोलन सिद्धांत अर्थात् पल्सेटिंग थ्योरी का जन्म हुआ।


शिव ही सृष्टि है,शिव में ही सृष्टि है! ऋग्वेद की सृष्टि के सृजन के रहस्य का विकास शिव में ही निहित हो जाता है।


"सृष्टि से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं,अंतरिक्ष भी नहीं था, आकाश भी नहीं,छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था,उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था "...सृष्टि का कौन है कर्ता, कर्ता है व अकर्ता, ऊँचे आकाश में रहता, सदा अध्यक्ष बना रहता, वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता, है किसी को नहीं पता, नहीं है पता,... वो था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान, वही तो सारे भूत जगत का स्वामी महान्, जो है अस्तित्व में धरती आसमान धारण कर, ऐंसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर... जिस के बल पर तेजोमय है अम्बर, पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर, स्वर्ग और सूरज भी स्थिर, गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर, व्यापा था जल इधर-उधर नीचे ऊपर, जगा चुके वो एकमेव प्राण बनकर किस देवता की उपासना करें हवि देकर,


ओऽम! सृष्टि निर्माता स्वर्ग रचियता पूर्वज रक्षा कर, सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर, फैली हैं दिशायें बाहू जैंसी उसकी सब में सब पर, ऐंसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर... ऐंसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर "ऐंसे ही देवता की उपासना करें हवि देकर" का तात्पर्य वस्तुतः शिव से ही है तब यही था शिवलिंग, यही पिंडी पूजन का निहितार्थ है। यहीं हिरण्यगर्भ से सृष्टि का निर्माण हुआ।

विश्व के निर्माण का मूलाधार शिवलिंग है।


वस्तुतः ॐ वेदों में ब्रह्म के रुप में ब्रह्मांड की ध्वनि का द्योतक होकर अभिव्यक्त है, और अनुसंधान में ॐ की व्युत्पत्ति भगवान् शिव के श्रीमुख हुई है। इसलिए बीज मंत्र "ॐ नमः शिवाय" है।


गत वर्ष जमीयत उलेमा--हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने यह दावा कर विवाद खड़ा कर दिया था कि 'ओम् और अल्लाह एक ही हैं' अब ॐ और अल्लाह की तुलना कर एक बताना मदनी के मानसिक दिवालिया पन और अज्ञानता का द्योतक था , क्योंकि सनातन धर्म अनादि है और इस्लाम मजहब तकरीबन 1500 वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आया है। शब्दों के अर्थ नितांत विपरीत हैं इसलिए एक होने का प्रश्न ही नहीं उठता है।


अल्लाह शब्द अल + इलाह शब्दों से बना है। इलाह शब्द का अर्थ सेमेटिक भाषाओं में ओर इब्रानी भाषा और पवित्र ग्रन्थों में भी देखा जा सकता है, जिस का अर्थ स्थूल रूप से "पूज्य या‌ उपास्य" है अल्लाह का मतलब होता है कि इसके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं। इसलिए अल्लाह और इस्लाम की अवधारणा एकनिष्ठ है, जबकि ॐ के आलोक में सनातन धर्म की अवधारणा सर्वसमावेशी है। अतः तुलना किसी भी तरह नहीं की जा सकती है।


ॐ शब्द, अल्लाह शब्द से भिन्न अर्थ में होकर सर्वव्यापी है। ॐ की ध्वनि स्वयं में शाश्वत है। इसके बिना संपूर्ण ब्रह्मांड अधूरा है। अगर मंत्रोच्चारण करते समय ॐ की ध्वनि उच्चारित न की जाए तो मंत्रोच्चारण अधूरा रहता है। इसका नाद सभी से अलग विशेष है, जब आप ध्यान की चरम अवस्था में पहुंचते हैं, तब आपको ॐ की ध्वनि स्वयं सुनाई देने लगती है।


ॐ भगवान शिव का पर्याय है, उनका प्रतीक है, ॐ की ध्वनि शांत भी है और तीव्र भी है। ॐ का महत्व शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है, केवल इसकी अनुभूति की जा सकती है। ओ, , और म, तीन अक्षरों से बने ॐ की महिमा अपार है। यह तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ तीनों लोकों का भी प्रतीक है। शास्त्रों में ॐ की ध्वनि के सौ से भी अधिक अर्थ विभिन्न संदर्भों शिरोधार्य हैं इसलिए ॐ का अर्थ मदनी जैंसे तथाकथित विद्वानों की समझ से परे है।


अखंड मंडलाकार बृहद

ब्रम्हांड का आकार शिव लिंग सदृश्य है अतः सम्पूर्ण सृष्टि की आराधना शिव आराधना में समाहित है। "ॐ नमः शिवाय" बीज मंत्र है।

।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥


महाशिवरात्रि महापर्व की अनंत कोटि शुभकामनाएं


लेख

डॉ. आनंद सिंह राणा

विभागाध्यक्,ष इतिहास विभाग

श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर

इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।