हाल ही के वर्षों में भारत में अस्थिरता लाने से लेकर देश में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों में देखा गया है कि विभिन्न वर्गों से जुड़े लोग एक तरह का नैरेटिव चलाने का प्रयास कर रहे हैं, जो ना सिर्फ किसी एजेंडे के तहत चलाया जा रहा है बल्कि इसमें विदेशी शक्तियों के होने की संदिग्धता भी नजर आती है।
कई बार हमने यह भी देखा है कि इनमें से एक डिजिटल मीडिया के पत्रकार के रूप में हमारे सामने नैरेटिव परोस रहा होता है, तो दूसरा मेनस्ट्रीम मीडिया में 'एनालिस्ट' बनकर विमर्श खड़ा कर रहा होता है। वहीं इनमें से कोई शिक्षक बनकर युवाओं के बीच अपना संदेश दे रहा होता है, तो कोई तटस्थ 'यूट्यूबर' बनकर वीडियो बना रहा होता है।
देखा जाए तो ये सभी लोग 'निष्पक्षता' का चोला ओढ़कर हमारे बीच एक ऐसी लाइन खींचने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे ना सिर्फ समाज में निराशा भरने लगे, बल्कि वर्तमान स्थिति-परिस्थिति को लेकर भी आक्रोश बढ़ने लगे।
सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि विदेशों में बैठी शक्तियां भारत को विकसित होने से रोकने के लिए तमाम तरह के षड्यंत्र रचती हैं, जिनमें भारत में अस्थिरता लाने से लेकर विभिन्न प्रकार के आंदोलन और विरोध प्रदर्शन होते हैं। कभी किसी पर्यावरणविद के नाम पर तो कभी किसानी के नाम पर, इस तरह के आंदोलन विकास की गति एवं विकास कार्यों को रोकने के लिए किए जाते हैं।
जब इन आंदोलनों एवं एजेंडे को अंजाम दिया जाता है, तब मीडिया स्टूडियो में बैठा पत्रकार, साहित्य और स्तंभ लिखने वाला लेखक, सोशल मीडिया में लिखने वाला इंफ्लुएंसर और युवाओं को शिक्षा देने वाला एजुकेटर, ये सभी उक्त विषयों से सम्बंधित नैरेटिव गढ़ने का प्रयास करते हैं, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों हो सकती हैं।
लेकिन क्या आपने बीते कुछ वर्षों में कुछ चुनिंदा लोगों के इन तमाम मुद्दों पर विचार सुने हैं, जो देश में हुई विभिन्न घटनाओं पर लिखते या बोलते रहे हैं ? इन लोगों में लल्लनटॉप के सौरभ द्विवेदी से लेकर दृष्टि आईएएस के विकास दिव्यकिर्ति जैसे लोग भी शामिल हैं।
देखिए, पूरी कहानी कुछ इस तरह है कि भारत के बाहर अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय में बीते 2 वर्षों से 'सोशल मीडिया एंड सोसायटी इन इंडिया' के नाम से वर्कशॉप आयोजित किया जा रहा है, जिसमें भारत से लगभग 20-25 लोगों को आमंत्रित किया जाता है।
इस वर्कशॉप को जॉयोजित पॉल द्वारा आयोजित किया जाता है, जो पूर्व में माइक्रोसॉफ्ट में एनालिस्ट रह चुका है, और वर्तमान में मिशिगन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर है।
जॉयोजित ने इससे पहले भी कुछ वर्कशॉप आयोजित किए हैं, जिसके माध्यम से उसने भारत से 20-30 लोगों बुलाकर उन्हें भारत में 'राजनीतिक विमर्श के लिए सोशल मीडिया का उपयोग' करने पर विस्तृत जानकारी दी थी। इसके पिछले वर्कशॉप येल विश्वविद्यालय और व्हार्टन विश्वविद्यालय जैसे स्थापित संस्थाओं के सहयोग से हुए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 'भारत में सोशल मीडिया के राजनीतिक उपयोग' पर वर्कशॉप लेने वाला जॉयोजित स्वयं हिन्दु राष्ट्रवाद का विरोधी है, साथ ही भारत के प्रति बुरी नज़र रखने वाले जॉर्ज सोरोस प्रशंसक है। इसके अलावा यह राहुल गांधी का भी बड़ा प्रशंसक है, लेकिन मोदी का धुर विरोधी है।
गौरतलब है कि यह वर्कशॉप बीते 8 और 9 अप्रैल को आयोजित की गई, जिसमें कांग्रेस से जुड़े एनालिस्ट से लेकर तमाम वामपंथी पत्रकार और विचारक इसमें शामिल हुए।
अब आप समझ सकते हैं कि विदेशों में होने वाले इन वर्कशॉप्स के माध्यम से कैसे ये पूरा एक समूह भारत में नैरेटिव गढ़ने का प्रयास करता है।
दरअसल ऊपर जो आपने नाम पढ़ें वो वर्ष 2024 में हुए वर्कशॉप में शामिल थे, लेकिन इससे एक वर्ष पहले हुए वर्कशॉप में कुछ ऐसे नाम शामिल थे जिन्हें पढ़कर ना सिर्फ आप चौंक जाएंगे, बल्कि उनके द्वारा की जा रही तमाम गतिविधियों को आप एक नजरिए से भी देख पाएंगे।
अब उपरोक्त नामों पर गौर कीजिए, आखिर पिछले एक वर्षों में इन सभी लोगों ने आपके सामने किस-किस प्रकार के कंटेंट रखें हैं ? एक तरफ लल्लनटॉप जो तथाकथित निष्पक्षता का चोला ओढ़कर एजेंडा परोस रहा है, तो वहीं दूसरी ओर विकास दिव्यकिर्ति युवाओं के बीच नैरेटिव तैयार कर रहे हैं।
आरफा जैसे लोग तो खुलकर द वायर में कम्युनिस्ट और इस्लामिक एजेंडा फैला रहे हैं, तो दूसरी ओर अभिनंदन सेखरी जैसे लोग भारत की आंतरिक सुरक्षा का मजाक उड़ा रहे हैं।
यूट्यूब में न्यूट्रल बनकर मोहक मंगल जैसे लोग अपने वीडियो से लोगों को मैन्यूपुलेट कर रहे हैं, तो दूसरी ओर रोफाल गांधी जैसे ट्विटर हैंडल खुलकर कांग्रेस की ओर से कंटेंट बना रहे हैं। कुल मिलाकर देखें तो ये सभी के सभी एक ही दिशा में, एक ही एजेंडे के तहत, कार्य कर रहे हैं, लेकिन तरीका सभी का अलग-अलग है।
पिछले कुछ समय में लल्लनटॉप के प्लेटफॉर्म पर आपको कितने ही ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जो एक पक्षीय नजर आएंगे। मूकनायक के पटल पर मीना कोटवाल आपको दलित समाज की हितैषी बनकर एक पक्षीय बात करती हुई नजर आएंगी।
दरअसल यह सबकुछ एक एजेंडे के तहत किया जा रहा है। इन सभी लोगों की रिपोर्ट्स, वक्तव्य, कथन या इनके द्वारा किए जा रहे आह्वान से समझ आता है कि कैसे विदेशी भूमि से भारत के राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें ना सिर्फ विदेशी शक्तियां शामिल हैं, बल्कि वो लोग भी शामिल हैं जो हमारे सामने निष्पक्ष और तटस्थ होने का स्वांग रचते हैं।
नोट - इस वर्कशॉप से जुड़ी पूरी जानकारी इनके वेबसाइट पर उपलब्ध है, जिसे आप यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं