लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की भूमिका

एक बात तो यहां पर साफ है कि भाजपा जहां सिर्फ एक चेहरे पर, सिर्फ मोदी लहर के दम पर इस चुनाव को लड़ रही है, वहीं कांग्रेस और इंडी गठबंधन, सामूहिक बल से चुनाव लड़ रही है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा की बीजेपी अब तक का अपना सबसे सरल चुनाव लड़ने जा रही है और कांग्रेस अब तक का सबसे कठिन। मध्य प्रदेश में भी लगभग यही स्थिति देखी ज रही है।

The Narrative World    12-Apr-2024   
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शीघ्र ही भारतीय लोकतंत्र अपने
18 वें लोकसभा चुनावों का साक्षी बनने जा रहा है। निर्वाचन आयोग के द्वारा चुनावों की तारीखें और अन्य चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण निर्देशों की घोषणा के साथ ही विश्व के सबसे बड़े और जीवंत लोकतंत्र के सबसे प्रमुख महोत्सव का शंखनाद किया जा चुका है। ऐसे में भारत का हृदय माने जाने वाले मध्य प्रदेश में भी चुनावी हलचल तेज हो गई है या कहें की और तीव्र हो गई है। मध्य प्रदेश में हाल में ही विधानसभा चुनाव पूर्ण हुए हैं, और लोकसभा चुनावों की गतिविधियां प्रारंभ हो गई है। चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता लागू कर दी गई है और विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा अपने प्रत्याशी घोषित किए जा चुके हैं। कुछ दलों के द्वारा तो घोषणा के बाद प्रत्याशी बदले भी जा चुके हैं। देश भर में सात चरणों में चुनाव होना नियत हुआ है और मध्य प्रदेश में चार चरणों में चुनाव तय हुए हैं, जिसकी घोषणा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार, नवनियुक्त अतिरिक्त चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह सिंधू द्वारा 16 मार्च को की गई है। चुनावों के परिणाम 4 जून 2024 को घोषित किए जाएंगे।


यह भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाला आम चुनाव होगा, जो कुल 44 दिनों तक चलेगा। ऐसे में मध्य प्रदेश की राजनैतिक स्थिति, चुनावी मुद्दों, चुनाव आयोग की तैयारियाँ, संभावित नतीजों, मतदाताओं के अधिकार आदि विषयों पर चर्चा किए जाने का उत्तम समय भी आ चुका है।


मध्य प्रदेश में चुनाव के संबंधित महत्वपूर्ण तिथियाँ


पहले चरण में 19 अप्रैल को जनजाति बाहुल्य क्षेत्र शहडोल, मंडला, छिंदवाड़ा, सीधी, बालाघाट और प्रदेश के सबसे बड़े शहर और न्यायिक राजधानी जबलपुर में वोट डाले जाएंगे।


दूसरे चरण यानी 26 अप्रैल को टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा, होशंगाबाद और बैतूल में मतदान होगा।


इसके बाद तीसरे चरण में 7 मई को मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, राजगढ़ समेत प्रदेश की राजधानी भोपाल में मतदान होंगे।


वहीं, चौथे चरण में 13 मई को मालवा क्षेत्र के देवास, मंदसौर, रतलाम, धार, खरगोन, खंडवा, प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी उज्जैन और प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में मतदान किया जाएगा।


मध्य प्रदेश की राजनैतिक स्थिति


मध्य प्रदेश में वर्तमान में 29 लोकसभा सीटों में से 28 बीजेपी के पास है और एक सीट कांग्रेस के पास है। मध्य प्रदेश की राजनीति हमेशा से ही प्रमुखतः दो राजनैतिक दलों पर ही केंद्रित रही है। ऐसे में क्षेत्रीय दलों एवं निर्दलीयों का होना या ना होना अधिक मायने नहीं रखता है।


हालांकि दोनों ही पार्टियां विपक्षी पार्टी के किसी बागी कार्यकर्ता को वोट काटने के हिसाब से निर्दलीय चुनाव लड़ने को प्रेरित करती रही हैं, और ऐसा होता भी रहा है, परंतु पिछले कुछ दशकों में ऐसे निर्दलीयों का प्रबल प्रभाव चुनाव पर पड़ता नजर नहीं आया है।


इस बार देश भर में विपक्षी दलों के गठबंधन को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने एक सीट समाजवादी पार्टी को दी है। इस एक खजुराहो की सीट पर भी सपा प्रत्याशी मीरा यादव का पर्चा खारिज हो चुका है, जिसे वे न्यायालय में चुनौती देंगी। संभवतः चुनाव के पूर्व ही बीजेपी अपनी पहली सीट जीत चुकी है।


हाल में ही संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी एकतरफा बहुमत से अपनी सरकार बना चुकी है और कांग्रेस पार्टी को शर्मनाक हार झेलना पड़ी है। विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद से ही कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का भाजपा में शामिल होने का सिलसिला लगातार जारी है और अब तक हजारों कांग्रेसी कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।


बीजेपी ने कांग्रेस के एक लाख के लगभग कार्यकर्ताओं को शामिल करने का लक्ष्य कर रखा है, जिसका प्रभाव यह रहा कि पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एवं उनके पुत्र नकुलनाथ भी कुछ दिनों तक दिल्ली में डेरा डालकर बैठ गए थे। इस दौरान कयास लगाए जा रहे थे कि वे भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले जाएंगे, परंतु बीजेपी के राज्य स्तर के नेतृत्व ने ऐसा होने नहीं दिया।


मध्य प्रदेश की राजनीति में सबसे रोचक चुनाव छिंदवाड़ा की सीट पर देखने को मिलेगा, जहां पर एक तरफ कमलनाथ की प्रतिष्ठा होगी, वहीं दूसरी ओर दो वर्षों का बीजेपी का सतत परिश्रम। बीजेपी ने कुछ ही दिनों में छिंदवाड़ा से कांग्रेस के विधायक, महापौर और कई बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है।


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विधानसभा चुनावों के बाद से ही यह साफ हो चुका था कि कमलनाथ का राजनैतिक सफर अब समाप्त हो चुका है और उन्हें पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी हटा दिया था। यदि छिंदवाड़ा की सीट कांग्रेस हार जाती है तो यह तय समझे कि इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे के रूप में जाने जाने वाले कमलनाथ के राजनैतिक कैरियर पर पूर्णविराम लग जाएगा। पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा चुनाव में राऊ सीट से हारे जीतू पटवारी के नेतृत्व पर भी कई प्रश्न चिन्ह खड़े हो जाएंगे।


भाजपा जहां एक ओर डबल इंजन की सरकार के फायदे गिना रही है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी के सभी स्टार प्रचारक राम मंदिर के मुद्दे को भी अच्छी तरह से बुनाने में लगे हुए हैं। बीजेपी ने विकसित भारत 2047 का स्वप्न भी जनता के सामने रखा है और अपने कुशल शासन का विश्वास दिलाकर जनता का मत हासिल करना चाह रही है।


बीजेपी ने महिला वोट बैंक की शक्ति को देखकर राष्ट्रीय स्तर पर महिला शक्ति वंदन अधिनियम को पारित कर महिला वोट को लुभाने का पूरा प्रयास किया है। वहीं राज्य के स्तर पर लाडली बहना योजना बीजेपी के लिए महिला वोट को सुनिश्चित कर रही है। बीजेपी इस बार 400 पार का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिसमें मध्य प्रदेश की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।


वहीं दूसरी ओर कांग्रेस जातीय जनगणना जैसे विभाजनकारी मुद्दों के साथ चुनाव में आइ है, और तो और गरीब महिलाओं को प्रतिवर्ष 1 लाख रुपए देने जैसे अव्यावहारिक वादे कर रही है। कांग्रेस के द्वारा बीजेपी के तीसरी बार सरकार में आने को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया जा रहा है, जो कांग्रेस ने पिछले चुनाव में भी कहा था। इसके अलावा ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप भी बीजेपी पर लगाया जा रहा है, जिससे आम जनता पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।


कांग्रेस, जनता को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि बीजेपी का तीसरी बार चुना जाना देश के लोकतंत्र और संविधान के लिए हानिकारक होगा। परंतु कांग्रेस ऐसा करने में सफल होती नजर नहीं आ रही है। पिछले वर्ष से शुरू भारत जोड़ो यात्रा का कांग्रेस को विपरीत प्रभाव ही देखना पड़ रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में नुकसान ही झेलना पड़ा है। कांग्रेस ने इस बार अपने घोषणा पत्र का नाम न्याय पत्र रखा है और वह बीजेपी के घोषणापत्र जारी न करने को भी मुद्दा बनाने में लगी हुई है।


मध्य प्रदेश में जनजातीय मतदाताओं की संख्या भी अधिक है, जिन्हें लुभाने का प्रयास सभी पार्टियों द्वारा करा जा रहा है। द्रौपदी मुर्मू को देश के राष्ट्रपति के पद पर स्थापित कर बीजेपी जनजातीय मतदाताओं को एक सकारात्मक संदेश दे चुकी है। इसके अलावा बिरसा मुंडा जयंती को राज्य स्तर पर अवकाश घोषित कर और प्रमुख मार्गो को भील स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रख बीजेपी जनजातीय मतदाताओं के निकट आने का प्रयास कर रही है। इसमें इंदौर के प्रमुख चौराहा भंवरकुवा का नाम टांटिया भील के नाम पर रखा जा चुका है।


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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार दक्षिण भारत में बीजेपी को सफल करने के प्रयासों में लगे हुए हैं और वह मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सामान्य से कम प्रचार कर रहे हैं। इन राज्यों में बीजेपी की स्थिति पूर्व से ही अच्छी है और ऐसे में अधिक प्रचार करने की आवश्यकता भी नहीं है। पर यह देखने वाली बात रहेगी कि कहीं बीजेपी का यह आत्मविश्वास, अतिआत्मविश्वास साबित होकर विपरीत परिणाम ना दे दे। बीजेपी के मतदाताओं में एक मुद्दा यह भी है कि बीजेपी भी अब मुफ्त की राजनीति जिसे प्रधानमंत्री स्वयं रेवड़ी कल्चर की संज्ञा दे चुके है, में लगी हुई है।


चुनावी प्रक्रिया एवं राजनैतिक दलों और चुनाव आयोग की तैयारियाँ


वर्ष 2014 के बाद से ही हर चुनाव में विपक्षी दलो ने ईवीएम द्वारा चुनाव की प्रक्रिया पर प्रश्न उठाए हैं, जिसके जवाब में चुनाव आयोग प्रतिवर्ष सफाई देता आया है और पिछले कुछ वर्षों से ईवीएम के साथ वीवीपैट की सुरक्षा भी चुनाव आयोग ने मुहैया करना शुरू की है। बता दें 100% ईवीएम के साथ वीवीपैट की सुविधा की मांग करते हुए एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।


आचार संहिता लगने के बाद से ही चुनाव आयोग ने प्रशासन अपने हाथ में ले लिया है और सुरक्षा बलों को भी तैनात कर दिया है, ताकि सुरक्षा के साथ साथ सहजता के साथ चुनाव कराए जा सके। अपने पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ऐसे क्षेत्रों को चिन्हांकित कर चुका है जहां अतिरिक्त बलों की आवश्यकता होती है और वहां पर अत्यधिक सुरक्षा रखी जाएगी।


चुनाव के पूर्व ईवीएम को बूथों तक पहुंचाना एवं चुनाव के बाद ईवीएम को निर्धारित स्थान पर वापस पहुंचाना और चुनाव के पश्चात मतों की गणना करना आदि कार्यों के लिए शासन के अफसरों को चुनाव आयोग अपने काम निर्धारित करने जा रहा है।

वहीं दूसरी ओर पार्टी कार्यकर्ता भी अपने-अपने बूथों के निकट रहने वालों उनकी पार्टी के समर्थकों को बूथों पर लाने का पूरा प्रयास करेंगे। ऐसे वरिष्ठ नागरिक एवं दिव्यांगजन, जो बूथ पर जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते हैं उनके लिए चुनाव आयोग घर पहुंच सेवा प्रदान करेगा ताकि कोई भी नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न रह जाए। इसके लिए चुनाव आयोग को पूर्व में सूचना देनी होगी।


चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता के नियमों का पालन करवाने का भी पूरा प्रयास करा जा रहा है। पिछले वर्षों में यह देखा गया है कि चुनावों में तय सीमा से ऊपर खर्च किया जा रहा है और इसे रोकने में चुनाव आयोग असफल रहा है। इसलिए हर बार अपने पूर्व के अनुभवों को ध्यान में रख कर चुनाव आयोग पहले से बेहतर तैयारी करता है और इस बार भी सुचारू रूप से चुनाव कराने के अपने कर्तव्य के निर्वहन में चुनाव आयोग कार्यरथ है।


चुनावी नतीजे के आंकलन


भाजपा स्वयं के लिए 370 से अधिक सीटें और एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटों पर जीतने का लक्ष्य रख रही है। वहीं कांग्रेस का मानना है कि भाजपा 180 सीटों तक सिमट जाएगी और कांग्रेस एवं इंडी गठबंधन मिलकर सरकार बनाने में कामयाब होंगे। कई न्यूज़ एजेंसियों द्वारा भी ओपिनियन पोल के माध्यम से चुनावी नतीजों का आंकलन किया गया है और अधिकतर न्यूज़ एजेंसियों का मानना है की तीसरी बार भाजपा सरकार बनाने जा रही है और बहुमत का आंकड़ा भाजपा अपने ही बल पर प्राप्त कर सकती है एवं एनडीए 350 से अधिक सीटों पर विजयी हो सकती है। मध्य प्रदेश की देखें तो सभी न्यूज़ एजेंसियां या तो 28 सीटें बीजेपी को और एक कांग्रेस को या सारी 29 सीटें बीजेपी को मिलने का अनुमान लगा रही है।


इस अनुमान की बीजेपी तो सरहाना कर रही है, वहीं कांग्रेस सारी मीडिया एजेंसियों पर भाजपा के प्रभाव में काम करने का आरोप लगा रही और इन आंकड़ों को झूठला रही है। भौतिक स्थिति देखे तो बीजेपी का 28 सीटें लाना तो तय ही नजर आ रहा है, सिर्फ एक छिंदवाड़ा की सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। पर यह आंकड़े आने वाले दिनों में बदलते रहेंगे और यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कौन सी पार्टी अपने समर्थकों को बूथ पर ले जाने में सफल रह पाती है।


एक बात तो यहां पर साफ है कि भाजपा जहां सिर्फ एक चेहरे पर, सिर्फ मोदी लहर के दम पर इस चुनाव को लड़ रही है, वहीं कांग्रेस और इंडी गठबंधन, सामूहिक बल से चुनाव लड़ रही है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा की बीजेपी अब तक का अपना सबसे सरल चुनाव लड़ने जा रही है और कांग्रेस अब तक का सबसे कठिन। मध्य प्रदेश में भी लगभग यही स्थिति देखी ज रही है।


मतदाताओं से यही अपेक्षा है कि वे पूरे उत्साह के साथ लोकतंत्र के इस महोत्सव में भाग लें और अपने मत का सही प्रयोग कर कर्तव्यनिष्ठ नागरिक होने का उदाहरण प्रस्तुत करें। अच्छे मतदाता ही अच्छी सरकार का चुनाव कर सकते हैं। मतदान के लिए लोगों को जागरूक करना हम सभी की संयुक्त जिम्मेदारी है। उम्मीद है की चुनाव हिंसा रिक्त होंगे और संविधान और लोकतंत्र को बल प्रदान करने वाले होंगे।


लेख

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मानस जैन

यंगइंकर

विधि छात्र

उज्जैन, मध्यप्रदेश