वर्तमान का वेनेजुएला हो या क्यूबा, दोनों देशों ने कम्युनिस्ट विचारधारा की नीतियों को ना सिर्फ राजनीतिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी अपनाया था, जिसका परिणाम यह निकला कि यह दोनों देश आज आर्थिक रूप से अत्यधिक कमजोर हो चुके हैं। वेनेजुएला जैसा देश, जो प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है, वह भी लगभग कंगाल हो चुका है।
वहीं पूर्व में सोवियत संघ और शीत युद्ध के समय पूर्वी यूरोप के वो देश जो कम्युनिस्ट शासन में थे, उनके भी हालात बदतर हो चुके थे। लेकिन अपनी कम्युनिस्ट आर्थिक नीति को छोड़ने के बाद चीन ने जरूर सफलता हासिल की, और अब उसी राह में वियतनाम भी चलने लगा है।
हालांकि चीन की अर्थव्यवस्था भी अब ढलान की ओर है, क्योंकि उसकी कम्युनिस्ट नीतियां इतनी प्रभावी नहीं कि वो चीन को लंबे समय तक शीर्ष में टिकाए रख सके।
कम्युनिज़्म की नीतियों के कारण जहां बड़े-बड़े देश और समृद्ध एवं संपन्न अर्थव्यवस्थाएं गर्त में चली गईं, वहीं भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां अभी भी इसे आदर्श मानकर चल रहीं हैं, जिसका परिणाम एकमात्र कम्युनिस्ट शासित प्रदेश केरल में देखने को मिल रहा है।
पश्चिम बंगाल को 4 दशकों में एक समृद्ध प्रदेश से बीमारू राज्य के रूप में तब्दील कर देने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने केरल की अर्थव्यवस्था को भी लगभग शून्य कर दिया है।
केरल की आर्थिक स्थितियों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां की कम्युनिस्ट सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को भी पार कर लिया है।
केरल की सत्ता में स्थापित सीपीआईएम (CPIM) की सरकार की नीतियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी जमकर लताड़ लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि केरल की खराब आर्थिक हालत के लिए कम्युनिस्ट सरकार का कुप्रबंधन ही जिम्मेदार है।
न्यायालय ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया है, जिसमें कम्युनिस्ट सरकार ने और अधिक कर्ज लेने को लेकर मांग की थी। बीते सोमवार (1 अप्रैल, 2024) को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केरल सरकार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका के बाद से अभी तक केरल सरकार को 13,608 करोड़ की सहायता मिल चुकी है।
दरअसल केरल की वामपंथी सरकार ने जिस तरह से अपनी विफल कम्युनिस्ट नीतियों को अपनाया है, उसने पूरे राज्य में आर्थिक बदहाली पैदा कर दी है। सरकार के कई विभागों के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन तक अटकी हुई है।
केरल राज्य की स्थिति कुछ ऐसी हो चुकी है कि आने वाले समय में यदि इसमें सुधार नहीं किया गया तो इसकी हालत भी श्रीलंका और वेनेजुएला जैसी हो सकती है। दो माह पूर्व यह जानकारी भी सामने आई थी कि केरल के खर्चे बीते कुछ समय में बेतहाशा बढ़े हैं। वहीं राजकोषीय घाटा भी तेजी से बढ़ा है।
प्रदेश की कम्युनिस्ट सरकार अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन देने के लिए भी कर्ज के सहारा ले रही है। आंकड़ों की बात करें तो राज्य की जीडीपी का लगभग 40% कर्ज है, जो कम्युनिस्ट और कांग्रेस सरकार के कुप्रबंधन को दिखाता है।
दरअसल इसी कम्युनिस्ट सरकार ने कोरोना काल के दौरान भी जमकर पीआर का प्रोपेगेंडा चलाया था, जिसमें केरल की व्यवस्था को एक आदर्श व्यवस्था के रूप में पेश किया जा रहा था।
सिर्फ इतना ही नहीं, केरल के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पी विजयन को देश का प्रधानमंत्री बनाने की बात कही जा रही थी। यह सबकुछ सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम की मीडिया के माध्यम से किया जा रहा था, ताकि यह बताया जा सके कि कम्युनिस्ट नीतियों के कारण केरल एक आदर्श राज्य बन गया है। किंतु इस प्रोपेगेंडा की हवा जल्द ही निकली और केरल की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई।
वहीं जिस आर्थिक स्थिति को लेकर केरल की वाहवाही की गई, उसकी हकीकत भी अब सबके सामने आ चुकी है। केरल की कम्युनिस्ट सरकार की नीतियों ने आज पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था को निचले स्तर पर ला दिया है, वहीं प्रदेश में बेरोजगारी और पलायन भी अपने चरम पर है।