लोकसभा चुनाव 2024 और उत्तर प्रदेश की राजनीति

श्रीराम मंदिर, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर, श्री कृष्ण जन्मभूमि, तीन तलाक, समान नागरिक संहिता, सुद्रढ़ कानून व्यवस्था, भारतीय संस्कृति का पुनुरुथान, दिखावे और मुफ्त की राजनीति पर अंकुश आदि मुद्दों पर बीजेपी के रुख को स्पष्ट करने में मोदी के बाद योगी जी का कोई जबाब नहीं है।

The Narrative World    02-May-2024   
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सनातन संस्कृति के प्रतीक श्री राम चंद्र की जन्मभूमि अयोध्या वाले उत्तर प्रदेश से ही देश की राजनीति की दिशा तय होती आई है और इस बार भी होगी। साथ ही भविष्य में होने वाले बदलावों का भी रुख ज्ञात होगा। इसका कारण सिर्फ देश में सबसे अधिक लोकसभा सीटों का प्रदेश होना नहीं है, वरन देश की राजनीति में काबिज भारतीय जनता पार्टी के मुख्य मुद्दों का उत्तर प्रदेश से आत्मीय संबंध का भी होना है।

जिस कांग्रेस काल की असफलताओं और नाउम्मीदी के कारण बीजेपी को 2014 से लगातार बहुतमत हासिल होता आया है, उस कांग्रेस के अधिकतर शीर्ष नेता और सरकार प्रमुख, उत्तर प्रदेश से ही आयें हैं। विपक्ष के मुख्य चेहरे के दावेदार राहुल गाँधी भी संभवतः पुनः उत्तर प्रदेश से किस्मत अजमाने की ठान चुकें हैं। आज प्रदेश की 66 सीटों पर काबिज एनडीए गठबंधन पुनः 75 से अधिक सीटों पर विजय प्राप्त करने जा रहा हैं।


श्रीराम मंदिर, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर, श्री कृष्ण जन्मभूमि, तीन तलाक, समान नागरिक संहिता, सुद्रढ़ कानून व्यवस्था, भारतीय संस्कृति का पुनुरुथान, दिखावे और मुफ्त की राजनीति पर अंकुश आदि मुद्दों पर बीजेपी के रुख को स्पष्ट करने में मोदी के बाद योगी जी का कोई जबाब नहीं है।


योगी जी उस परंपरा के अनुयायी हैं, जिसे सनातन संस्कृति और भारतीयता का मुकुट मानने वाली बीजेपी, अपनी स्थापना के साथ ही अपना लक्ष्य मान कर, हासिल करने में लगी हुई है। भारतीय संस्कृति के सनातन रूप की रक्षा का बेड़ा गोरक्षनाथ मठ ने 1800 . के भी पहले से उठाये हुए है। मठ के उतराधिकारी योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में यह दूसरा कार्यकाल अधिक सफल हुआ है।


नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत छवि से नाराज और निराश हो रहे भाजपाई और अन्य दलीय लोग भी, योगी जी में उनका विकल्प तलाशने लगे हैं। स्वच्छ और साफ राजनीति की छवि वाले योगी जी को भविष्य में बीजेपी का मुख्य चेहरा बनना तय है, क्योंकि बीजेपी को उनसे अच्छा नेतृत्व कोई नहीं दिखता जो सिर्फ उनके लक्ष्य के लिए राजनीति को साध सके। निःसंदेह नरेंद्र मोदी पुनः बहुमत पाने जा रहे हैं, पर उत्तर प्रदेश, देश की राजनीति में दीर्घकालिक प्रभाव की छाप भी छोड़ने को तैयार है।


लोकतंत्र और भारतीय राजनीति


दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों की राजनीति से बहुत ही अलग किस्म की राजनीति वाला देश अपना भारत है। उसमें भी उत्तर प्रदेश की राजनीति के असली रुख को समझना सदा से उम्दा से उम्दा राजनीतिक पंडितों के लिए कठिन रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति ने अब तक देश की राजनीति को दशा और दिशा देती रही है।


भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में सत्ताधारी दल होने के नुकसान का होना एक सच्चाई है, जिससे बीजेपी भी बच नहीं सकती है। जैसा कि 2017 की विधान सभा के लिए हुए चुनावों में बीजेपी ने 312 सीटें जीती थी और 2022 के विधान सभा चुनावों में घटकर 255 सीटों पर आ गई थी, किंतु लोक सभा चुनावों में स्थिति अलग रहती है। इसीलिए इस बार के चुनावों में बीजेपी के लिए सत्ताधारी दल होने के नुकसान की भरपाई उत्तर प्रदेश में योगी जी की छवि से हो जाएगी, साथ ही बीजेपी के चुनावी रणनीतिकारों के कौशल पर भी संदेह के कोई कारण नहीं दिख रहे हैं।


यद्यपि इस चुनाव में सबसे अधिक नुकसान एक खास लॉबी को होने वाला है। जिस प्रकार से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में एक लॉबी देश के अन्य बीजेपी नेताओं की बढती लोकप्रियता को दबाने की कोशिश करती जा रही है और योगी जी की बढ़ती शक्ति के सन्मुख असहाय दिखती है, उससे यही संकेत मिल रहे हैं।


यही कारण है कि एक दुसरे के धुर विरोधी दल और राजनेता एक साथ गठबंधन में आ चुके हैं। किंतु देश की आम जनता इनके कारनामों से परिचित और होशियार हो चुकी है। हालांकि ऐसे समय में नुकसान मात्र अवसरवादी गुटों का होने वाला है, फिर वह चाहे सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के, तो जाहिर है सत्ता की मलाई को कोई अकेले नहीं खा सकता है। चूँकि इस लॉबी का चरित्र एक सा अंग्रेजियत परस्त है, इसीलिए सनातन संस्कृति के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ योगी जी को ही इसका अधिक लाभ मिलने वाला है।


लोक सभा चुनाव और उत्तर प्रदेश


जैसे-जैसे चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे उत्तर प्रदेश राजनीति के आखाड़े में तब्दील होता जा रहा है। भाजपा काअबकी बार चार सौ पारका सपना और विपक्ष काभाजपा भगाओ देश बचाओका दावा बिना उत्तर प्रदेश की जनता के साथ के असंभव है। श्रीराममंदिर निर्माण में बढ़ चढ़ कर भागीदारी करने वाली बीजेपी हिंदुत्व और सनातन संस्कृति को मुख्य मुद्दा बनाये हुए है, वहीं सनातन को खुल के गाली देने और चुनौती देने वालों को साथ रख कर तथा रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा में निमंत्रण को अस्वीकार कर देने वाले विपक्ष ने भी श्रीराम का आशीर्वाद लेकर चुनाव में जी जान लगाये हुए है।


राहुल गाँधी अमेठी से और प्रियंका गाँधी रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इससे पूर्व 2019 के चुनाव में कांग्रेस यहाँ एक ही सीट जीत पाई थी। वहीं सपा मात्र 5 सीटों पर विजय हो पाई थी। जिसमें से 2 सीटें बीजेपी ने उपचुनाव में सपा से पुनः जीत गई थी। ऐसे में चुनावी नतीजे अधिक रोचक होने वाले हैं।


वहीं बहुजन समाज पार्टी, बीजेपी के लिए कमजोर सीटों पर लड़ाई को त्रिकोणीय कर दे रही है। जैसा कि 2014 के लोक सभा चुनावों में लगभग 20% मत प्राप्त करके भी बसपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी, वहीं बसपा ने सपा के साथ गठबंधन कर 2019 के लोक सभा चुनावों में 10 सीटें जीतीं और यह गठबंधन भी टूट गया था। आज बसपा अकेले चुनाव मैदान में हैं और रालोद बीजेपी के साथ है।


उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनावों के सभी सातों चरणों में मतदान होगा। अभी तक दो चरणों में आठ-आठ करके कुल 16 सीटों पर मतदान हो चुका है और सभी उम्मीदवारों की किस्मत 4 जून का इंतजार कर रही है।


बाकि सीटों पर क्रमशः तीसरे चरण में 10 सीटों पर 7 मई को (संभल, हाथरस, आगरा, फतेहपुर सिकरी, फिरोजाबाद, एटा, बदायूं, आंवला, बरेली), चौथे चरण में 13 सीटों पर 13 मई को (शाहजहांपुर(sc), लखीमपुर खीरी, सीतापुर, धौरहरा, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फरुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपूर, अकबरपुर, बहराइच), पांचवे चरण में 14 सीटों पर 20 मई को (मोहनलालगंज, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, जालौन, झाँसी, हमीरपुर, बाँदा, फतेहपुर, कौशाम्बी, बाराबंकी, फ़ैजाबाद, कैसरगंज, गोंडा), छठे चरण में 14 सीटों पर 25 मई को (सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, अम्बेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीरनगर, लालगंज(sc), आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर, भदोहीं) और सातवें चरण में 13 सीटों पर 1 जून को (महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव(sc), घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज(sc)) मतदान होने हैं।


इनमें से अधिकतर सीटों पर बीजेपी को टक्कर नाममात्र की मिल रही है। पिछले विधान सभा चुनावों में बीजेपी का साथ छोड़ने वाले और सपा का साथ देने वाले पुनः बीजेपी के साथ आ चुकें हैं। ऐसे में अभी तक के रुझानों में बीजेपी अपने दावों पर खरा साबित हो रही है, बाकि अंतिम परिणामों के लिए बस इतना हीहोइहे सोई जो राम रची राखा'


उत्तर प्रदेश में विधान सभा और लोक सभा चुनाव


हिंदी पट्टी के राज्यों में लोक सभा और विधान सभा चुनावों में मतदाताओं का रुख अक्सर भिन्न भिन्न रहता है। उत्तर प्रदेश की जनता 2012 में सपा को राज्य की सत्ता और 2014 में भाजपा को केंद्र की सत्ता सौपती है। पुनः 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को राज्य की सत्ता सौंपने के साथ 2019 के लोक सभा चुनावों में बीजेपी की सीटें कम कर देती है, जिसका कारण सपा और बसपा के परंपरागत मतदाताओं का मिल जाना था। वहीं 2022 के विधान सभा चुनावों में बीजेपी की सीटों में कटौती करते हुए सत्ता तो सौपती है किंतु सपा और रालोद के मिलने से, सपा को 55 से 111 सीटें देती है।


2017 में सत्ताधारी पार्टी होते हुए समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर मात्र 54 सीटें ही प्राप्त कर पाई थीं। बाद में 2022 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से परहेज किया था और प्रदर्शन अच्छा किया था। अब पुनः सपा और कांग्रेस साथ आयें हैं, ऐसे में चुनावी नतीजों पर कोई खास असर होते हुए नहीं दिख रहा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के अधिकांश मतदाता परंपरा से हट कर मतदान से परहेज करते हैं। अक्सर नतीजे चुनावी रणनीति के कारण बदलते हैं।

ऐसे में 2022 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ रही रालोद और सुभासपा भी साथ छोड़कर एनडीए के साथ आ चुकीं हैं। मोदी और योगी की जोड़ी का जादू बरकरार है। परिवर्तन की लहरमतदान प्रतिशत के घटने के साथकमजोर हो चुकी है। तब यह सुनिश्चित दिख रहा है कि बढ़त तो बीजेपी को ही मिल रही है।

इस बार के लोक सभा चुनावों के साथ ही उत्तर प्रदेश की चार विधान सभाओं में उपचुनाव भी साथ ही साथ होने जा रहे हैं। चौथे चरण में शाहजहांपुर की ददरौल सीट पर 13 मई को, पांचवे चरण में लखनऊ की लखनऊ पूर्व सीट पर 20 मई को, छठे चरण में बलरामपुर की गैसेंडी सीट पर 25 मई को, सातवें चरण में सोनभद्र की दुद्धी सीट पर 1 जून को मतदान होंगे। इसका असर लोक सभा के चुनावों में बीजेपी को बढ़त पाने में दिखेगा।


निष्कर्ष


अंत में यही कहना ठीक होगा कि जब आज के दौर में राजनीति का मतलब ठगना और छलना ही बन गया है तो ऐसे में उत्तर प्रदेश सहित हिंदी पट्टी के राज्यों में मतदाता किसी अन्य दल द्वारा ठगे और छले जाने से अच्छा बीजेपी को चुनना पसंद करेगें। वैसे भी यह समाजअच्छे दुल्हे के साथ भूत प्रेतों वाली बारातका दिल से स्वागत करने वाली है। इसीलिए एक बार फिर बीजेपी मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता को सँभालने जा रही है। साथ ही उत्तर प्रदेश के मतदाता बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के लिए योगी जी की दावेदारी को सुनिश्चित करने जा रहे हैं।


लेख


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संदीप कुमार सिंह

यंगइंकर

प्रयागराज, उत्तरप्रदेश