शनिवार, 11 अक्टूबर 2025 को केरल हाईकोर्ट ने एक सनसनीखेज फैसले में मुनंबम की 404 एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने की केरल वक्फ बोर्ड की साज़िश को ध्वस्त कर दिया।
इस फैसले ने न केवल लगभग 600 परिवारों को बेदखली की तलवार से राहत दी, बल्कि वक्फ बोर्ड की कथित 'जमीन हड़प' की साजिश और राज्य की कम्युनिस्ट सरकार की नाकामी पर सवालिया निशान लगा दिया।
कोर्ट ने इस कदम को 'मजहबी आवरण में जमीन हड़पने की चाल' करार देते हुए चेतावनी दी कि अगर ऐसी मनमानी जारी रही तो ताजमहल, लाल क़िला या यहां तक कि खुद कोर्ट भी वक्फ संपत्ति घोषित हो सकती है।
इस मामले की जड़ें 1902 में ट्रावणकोर शाही परिवार द्वारा दी गई जमीन के पट्टे और 1950 में फारूक कॉलेज को दान किए गए एक साधारण गिफ्ट डीड में हैं, जिसे वक्फ बोर्ड ने 2019 में अचानक वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया।
जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस श्याम कुमार वीएम की हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि यह जमीन कभी वक्फ के लिए समर्पित नहीं की गई थी और 69 साल बाद यह दावा 'अनुचित, मनमाना और अमान्य' है।
कोर्ट ने पाया कि वक्फ बोर्ड के पास कोई वैध वक्फ डीड नहीं है, और यह कदम स्थानीय निवासियों को बेदखल करने की एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था। मुनंबम के लोग जो दशकों से इस जमीन पर रह रहे थे, उन्होने फैसले का जश्न मनाया, लेकिन यह सवाल अब भी कायम है कि क्या वक्फ बोर्ड की यह साज़िश देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा नहीं बन गई है।
वक्फ बोर्ड का यह कथित जिहादी पैटर्न कोई नई बात नहीं है। देश भर में, चाहे वह तमिलनाडु का तिरुचेंथुराई गांव हो, जहां 1500 साल पुराना सुंदरेश्वर मंदिर वक्फ बोर्ड के दावे में फंस गया, या फिर गुजरात और कर्नाटक में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे, हर जगह वक्फ बोर्ड की मनमानी देखी गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 8.72 लाख वक्फ संपत्तियों में से 58,889 पर अतिक्रमण के आरोप हैं और 13,200 कानूनी विवादों में उलझी हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि केरल में कम्युनिस्ट सरकार, जो खुद को धर्मनिरपेक्षता का ठेकेदार बताती है, ने इन गैरकानूनी दावों को बढ़ावा दिया।
2019 में वक्फ बोर्ड का यह कदम राज्य सरकार की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था, जहां स्थानीय निवासियों की आवाज दबाई गई और जांच आयोग की नियुक्ति को भी एकल न्यायाधीश ने आरम्भ में रद्द कर दिया था, जिसे अब हाईकोर्ट ने पलट दिया। यही कारण है कि अब कम्युनिस्ट सरकार की दोहरी नीति और वक्फ बोर्ड की जिहादी साजिश पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
राज्य में लंबे समय से कम्युनिस्ट शासन ने अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को वोट बैंक की राजनीति का हथियार बनाया है। 1961 का अग्रेरियन रिलेशंस बिल हो या वर्तमान में वक्फ विवाद, कम्युनिस्टों ने हमेशा सुधारों को टालकर अपनी सत्ता बचाने की कोशिश की है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, जो केंद्र सरकार ने पारित किया, जो स्पष्ट तौर पर वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगाने की कोशिश करता है, उसका भी केरल की पी विजयन सरकार ने विरोध किया था।
यह साफ है कि वक्फ बोर्ड का मकसद मजहबी स्थलों की रक्षा नहीं, बल्कि जमीन हड़पने की साजिश है, और इसमें कुछ सरकारों का मौन समर्थन शर्मनाक है। हाईकोर्ट की टिप्पणी कि "अगर ऐसी मनमानी दावों को मंजूरी दी गई, तो ताजमहल या कोर्ट भी वक्फ हो सकता है", एक जोरदार चेतावनी है।
यह फैसला न केवल मुनंबम के लिए जीत है, बल्कि पूरे भारत की उस आवाज का प्रतीक है जो वक्फ बोर्ड की जिहादी नीतियों और कम्युनिस्ट सरकार की निष्क्रियता से त्रस्त है।